देश का सबसे बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक अपने पांच असोसिएट बैंकों को मिलाने के साथ बैंकिंग इंडस्ट्री में कंसॉलिडेशन की शुरुआत करेगा। बैंक का मानना है कि दो दशक पहले के चीन की तरह भारत जोरदार इकनॉमिक ग्रोथ के मुहाने पर है और ऐसे मोड़ पर वह इकॉनमी की फंडिंग करने की तैयारी कर रहा है।
असोसिएट बैंकों को मिलाने से एसबीआई का असेट बेस बढ़कर 21.90 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। एसबीआई के पास इस वक्त 15,143 शाखाएं हैं और असोसिएट बैंकों को मिलाने से इसमें 5,658 ब्रांचेज का इजाफा होगा। एसबीआई की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा, 'इसके लिए समय बेहद माकूल है। जब मैंने काम संभाला तो एसबीआई में ही कई दिक्कतें थीं। अगर किसी को कुछ करना हो तो पहले तो मदरशिप पर ध्यान देना होगा। मदरशिप की हालत बेहतर हो जाए तो आप दूसरे मोर्चों पर निगाह डाल सकते हैं।'
भट्टाचार्य ने पिछली सरकार के बनाए कई कानूनों में बदलाव की वकालत भी की, जिनमें लैंड ऐक्विजिशन ऐक्ट और कंपनीज ऐक्ट शामिल हैं। बैंकिंग सेक्टर के लिए 50 अरब डॉलर की नई पूंजी की जरूरत के एक अहम मुद्दे पर भट्टाचार्य ने कहा कि इस रकम की जरूरत पिछले पांच वर्षों से महसूस की जा रही है। इकॉनमी की हालत सुधरने के साथ इस सेक्टर की प्रॉफिटेबिलिटी बेहतर होगी और इससे कैपिटल में इजाफा होगा।
ब्लूमबर्ग के डेटा के मुताबिक, भारतीय बैंकिंग उद्योग का मार्केट कैपिटलाइजेशन करीब 185 अरब डॉलर है, जबकि चीन के सबसे बड़े बैंक आईसीबीसी की वैल्यू 217 अरब डॉलर। भट्टाचार्य ने कहा, 'दुनिया के टॉप 10 बैंकों में 3 चीन के हैं। इसकी वजह यह है कि चीन की इकॉनमी बढ़ी और उसे क्रेडिट देने के लिए बैंकों को भी कारोबार बढ़ाना पड़ा। ऐसा ही इंडिया में होगा, अगर इकॉनमी मजबूत हो। यहां बड़े बैंकों की जरूरत पड़ेगी। खुद अपना कारोबार बढ़ाकर ऐसा कर पाना बेहद मुश्किल है, लिहाजा दूसरे बैंकों को अपने साथ मिलाना ही संभवत: सबसे अच्छा तरीका है।'
स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर ऐंड जयपुर और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर एसबीआई के असोसिएट बैंक हैं। इनको मिलाना एसबीआई के लिए आसान नहीं होगा। पिछले एक दशक में बड़ी कोशिश के बाद वह स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक ऑफ इंदौर को ही मिला सका। हालांकि भट्टाचार्य ने कहा, 'अब हम एक जैसे टेक्नॉलजी प्लेटफॉर्म पर हैं। हमारी नीतियां भी लगभग समान हैं। सिर्फ एचआर प्रैक्टिस एक जैसी नहीं है। मेरा मानना है कि मर्जर में इसी पहलू से सबसे ज्यादा दिक्कत आती है।'