अमेरिकी सिख संगठन 'सिख्स फॉर जस्टिस' (एसएफजे) ने मानवाधिकार उल्लंघन के एक मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को छूट देने के अमेरिकी सरकार के सुझाव को वाशिंगटन की एक अदालत में चुनौती दी है। अमेरिकी न्याय मंत्रालय ने दो मई को वाशिंगटन की संघीय अदालत में एक हलफनामा देकर कहा था कि अमेरिकी सरकार ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस पद पर रहते हुए छूट देने का निर्णय किया है और सरकार चाहती है कि अदालत भी इसे मान्यता प्रदान करे।
हलफनामे में कहा गया था कि अमेरिकी सरकार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को छूट देने को लेकर दृढ़ संकल्प है और यह संकल्प प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों की प्रासंगिकता, अमेरिका की विदेश नीति के क्रियान्वयन तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर अमेरिकी रुख पर आधारित है। इस हलफनामे में हालांकि यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ अभियोक्ता के दावे में कितना दम है, अमेरिका इस पर कोई विचार व्यक्त नहीं करता।
अमेरिकी सरकार के इस हलफनामे को चुनौती देते हुए एसएफजे ने सोमवार को न्यायालय में कहा कि मनमोहन सिंह अब भारत के प्रधानमंत्री नहीं रह गए हैं और इसलिए उन्हें 'किसी विदेशी सरकार के प्रमुख'के रूप में छूट प्राप्त नहीं है। इसके अतिरिक्त, विदेशी अधिकारियों द्वारा 'पद पर रहते हुए'किया गया अपराध विदेशी संप्रभुता उन्मुक्ति अधिनियम (एफएसआईए) के दायरे में भी नहीं आता।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रधान वैधानिक सलाहकार ने अप्रैल में न्याय मंत्रालय से अदालत में 'छूट पर राय'रखने और मनमोहन सिंह के खिलाफ मामले को खारिज करने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा था। वाशिंगटन की संघीय अदालत ने वर्ष 1990 के दशक में पंजाब में आतंकवाद विरोधी कई अभियानों को सरकारी अनुदान देने के आरोप में मनमोहन सिंह को सम्मन जारी किया था। अरोप है कि अभियानों के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में कई हजार लोग मारे गए।
मनमोहन सिंह के खिलाफ मामला सितंबर 2013 में उनकी अमेरिका यात्रा के दौरान एलियन टॉर्ट क्लेम्स एक्ट (एटीसीए) और टॉर्चर विक्टिम प्रोटेक्शन एक्ट (टीवीपीए) के तहत दर्ज किया गया था।