‘‘अबकी बार मोदी सरकार’’, ‘‘अच्छे दिन आने वाले हैं’’ जैसे नारों के साथ सत्ता में आयी एनडीए सरकार से लोगों को बहुत उम्मीदें हैं। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि मोदी सरकार लोगों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती है। लेकिन अगर मोदी सरकार के षुरूआती एक महीने के कामकाज पर नज़र डालें तो यह सरकार कुछ खास नहीं कर पाई है। हमारे देष के ग्रामीण क्षेत्रों में समस्याओं की एक लंबी सूची है। ग्रामीण इलाके आज भी विकास से कोसों दूर हैं। केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाएं इन इलाकों तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं। ग्रामीण इलाके आज भी षिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सरहदी इलाकों में तो स्थिति और भी ज़्यादा खराब है। अगर हम जम्मू प्रांत के पुंछ जि़ले की बात करें तो यह क्षेत्र आज तक विकास की पटरी पर नहीं आ सका है। भौगोलिक स्थिति अत्यंत जटिल होने की वजह से सरकार की कल्याणकारी योजनाएं पुंछ तक पहुंच ही नहीं पाती हैंै। सरहदी क्षेत्रों में विकास के पहिए को गति देना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। पुंछ जि़ले में वैसे तो बहुत सारी समस्याएं हैं लेकिन यहां सबसे बड़ी समस्या चिकित्सा सुविधाओं की हैं। राज्य के ज़्यादातर अस्पताल अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं।
पुंछ जि़ले की तहसील मेंढ़र के उप जि़ला अस्पताल की हालत भी कुछ इसी तरह की है। इस अस्पताल की हालत को देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि यहां इंसानों का इलाज होता है या जानवरों का। कहने को तो देष तरक्की कर रहा है, पर सवाल यह उठता है कि कहां कर रहा है, अगर कर रहा है तो विकास के नाम पर अभी तक कुछ हुआ क्यों नहीं? सरकार की ओर से सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक उप स्वास्थ्य केन्द्रों पर मुफ्त दवाईयां दी जाती हैं लेकिन वास्तव में यह दवाईयां गरीब लोगों को मिलती कहां हैं? पुंछ में चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए चरखा की कार्यषाला में हिस्सा लेने वाले मोहम्मद षौकत ने चार बार फील्ड विजि़ट किया है। उन्होंने बताया कि फील्ड विजि़ट के बाद लोगों से बातचीत करके मुझे ऐसा लगा कि मेंढ़र में एनएचआरएम का सिस्टम सिर्फ लोगों को बीमार करने के लिए है। अगर मैं कालाबन के प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र की बात करूं तो यहां डाक्टर की जगह सफाई कर्मचारी ड्यूटी करते हैं जो स्वास्थ्य केंद्र दिखाने आने वाले मरीज़ों को एक्सपायर दवाईयां तक दे देते हैं। वहीं तुझयाड़ी की डिस्पेंसरी की इमारत का अभी निर्माण ही नहीं हुआ है जबकि डिस्पेंसरी के लिए आने वाली दवाईयां एक घर में रखी हुई हैं। डाक्टर ड्यूटी पर नहीं और कमरे में पड़ी सारी दवाईयां एक्सपायर, कुछ इसी तरह का हाल है इस डिस्पेंसरी का। इसके लिए कौन जि़म्मेदार है हम या सरकार।
कालाबन के एक स्थानीय निवासी हाजी अज़ीम ने बताया कि एक बार रात को उनकी बच्ची बीमार हो गयी तो वह अपनी बच्ची को आनन फानन में कालाबन पीएचसी लेकर भागे। जैसे ही वह कालाबन पीएचसी पहुंचे तो पता चला कि पीएचसी पर डाक्टर के अलावा और भी कोई दूसरा कर्मचारी मौजूद नहीं था। मजबूरन मुझे अपनी बच्ची को गाड़ी करके मेंढ़र के उप जि़ला अस्पताल ले जाना पड़ा। मैं स्वास्थ्य विभाग से यह सवाल करता हंू कि कालाबन में पीएचसी होने का क्या फायदा है, जब हमें आपातकाल स्थिति में इसका फायदा ही नहीं मिलता है। सिर्फ एक एहसान का टोकरा हमारे सर पर है कि कालाबन में पीएचसी कायम है। कालाबन के पीएचसी के बारे में रमीज़ राजा का कहना है कि पीएचसी पर सभी तरह की दवाईयां मौजूद नहीं हंै। जिसकी वजह से लोगों को ज़रूरत पड़ने पर दवाईयां नहीं मिल पाती हैं और उन्हें परेषानी का सामना करना पड़ता है। वह आगे कहते हैं कि मेरा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से अनुरोध है कि कालाबन पीएचसी पर सभी ज़रूरी दवाईयां उपलब्ध करायी जाएं। इसके अलावा कालाबन पीएचसी को जल्द से जल्द एक एम्बुलेंस दी जाए ताकि रात में बीमार पड़ने पर लोग आसानी से मरीज़ को मेंढ़र अस्पताल ले जा सकें। नाड़बलनोई के रहने वाले मोहम्मद षफीक कहते हैं कि सरहद पर होने की वजह से मौत हमेषा हमारे सर पर मंडराती रहती है, षायद ऐसी जिंदगी जीने की हमें आदत हो गयी है। वह आगे कहते हैं कि अगर हमारे यहां कोई बीमार हो जाता है तो उसे यहां से 20 किलोमीटर दूर मेंढ़र अस्पताल ले जाना पड़ता है। अपनी दर्दभरी दास्तां बताते हुए वह कहते हैं कि मेरी मां अक्सर बीमार रहती है। उन्हें महीने में दो या तीन बार मेंढ़र अस्पताल ले जाना पड़ता है लेकिन आज तक उन्हें अस्पताल से मुफ्त दवाईयां नहीं मिली। उन्होंने यह भी बताया कि हमारे यहां डिस्पेंसरी न होने की वजह से एक गर्भवती महिला की मौत हो गयी थी। अपने गुस्से को प्रकट करते हुए वह आगे कहते हैं कि अगर सरकार को हमारी ज़रा भी चिंता होती तो यहां अब तक डिस्पेंसरी कायम हो चुकी होती।
जब मेंढर के बीएमअ¨ से इस बारे में पूछा गया त¨ उन्ह¨ंने कहा कि यहां स्टाफ की कमी की वजह से मुझे मरीज¨ं क¨ देखना पड़ता है जबकि यह मेरा काम नहीं है। फिर भी व्यवस्था त¨ चलानी है जिस वजह से मैं फील्ड विजि़ट नहीं कर सकता। मैंने यह बात कही कई बार समाचार पत्र¨ं के जरिए सामने लाई। लेकिन वहां इस बात का क¨ई हल नहीं निकला। अब आप ही बताएं अगर मैं भी चेकिंग के लिए चला जाउं त¨ यहां की व्यवस्था कैसे चलेगी। स¨चने की बात है अगर प्रशासन का यह हाल है त¨ बाकी वाल¨ं का क्या हाल ह¨गा।
अज़हर अली ने बताया कि मेंढ़र के उप जि़ला अस्पाल मंे डाक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए मच्छरों को टेªनिंग दी गई है। रात को दोनों मिलकर ड्रिप सेट लगाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि डाक्टर मरीज़ों को लगाते हैं जबकी मच्छर किसी को नहीं छोड़ते और साथ में मलेरिया नाम की बीमारी भी देते हैं। इनको खाना अस्पताल के आगे पीछे जमा हुई बेषुमार गंदगी से मिलता है। वह आगे कहते हैं कि यहां के सफाई कर्मचारी अपनी ड्यूटी इतनी अच्छी तरह से करते हैं कि मरीज़ों को मक्खियों से बचाने के लिए कभी कभी धुंआ भी करना पड़ता है। हमारा नसीब खराब है या यहां का सिस्टम। सवाल यह है कि केंद्र की नई सरकार हमारे लिए कुछ करेगाी या फिर उसके ज़हन में भी यही बात है कि जैसा है वैसे ही चलने दो। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि नई सरकार यहां के लोगों की चिकित्सा संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाती है। फिलहाल तो पुंछ के लोग यह सोचकर जिंदगी के सफर मे आगे बढ़ रहे हैं कि कभी तो यहां स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होंगी।
इरफान याकूब
(चरखा फीचर्स)