अखिलेश सरकार को गद्दी पर बने रहने का अब कोई हक नहीं। सरकार का पुलिस एवं प्रशासनिक महकमों पर नियंत्रण खत्म हो चला है। अधिकारी सत्ता पक्ष के माफियाओं, बाहुबलियों व छुटभैये नेताओं के आगे घुटने टेक दिए है। घटित होने वाली घटनाओं के अपराधियों को जेल भेजने के बजाएं ऐसी कौन सी मजबुरिया पुलिस के सामने आड़े आ रही जो उन्हें बचाने में ही अपनी इनर्जी जाया करनी पड़ रही है। सरकार व पुलिस प्रशासन से जनता का विश्वास उठ गया है। अगर हर घटनाओं की निदान सीबीआई जांच ही है तो फिर सरकार का क्या मतलब है। बीते वर्ष देशभर में हुई साम्प्रदायिक टकराव की कुल घटनाओं में अकेले एक चैथाई प्रदेश में हुईं। इस साल भी अब तक 65 बड़ी एवं 500 से अधिक छोटी साम्प्रदायिक घटनाएं हो चुकी हैं।
भ्रष्टाचार हो या दंगा-फसाद या फिर सरेराह अपहरण कर किशोरियों संग गैंगरेप या फिर लूटपाट-डकैती, हत्या व फर्जी मुकदमों की फेहरिस्त, सभी में अव्वल। ताबड़तोड़ हो रहे एक घटना की आग बुझने से पहले दुसरेे घटना की चिंगारी भड़कने लगती है। मतलब साफ है सरकार का पुलिस एवं प्रशासनिक महकमों पर नियंत्रण खत्म हो चला है। अधिकारी सत्ता पक्ष के माफियाओं, बाहुबलियों व छुटभैये नेताओं के आगे घुटने टेक दिए है। कहा जा सकता है, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था सरकार नहीं माफिया चला रहे है। जैसा अखिलेश कह रहे है उन्हें या उनकी सरकार को बदनाम करने की साजिश के तहत घटनाएं हो रही या कराई जा रही, को थोड़ी देर के लिए सच मान भी लिया जाएं तो इसका मतलब यह कत्तई नहीं है कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे और निरीह व असहाय जनता हौसलाबुलंद अपराधियों के आतंक से पिसती रहे। कहां है अपराधियों पर नकेल कसने वाली पुलिस। घटित होने वाली घटनाओं के अपराधियों को जेल भेजने के बजाएं ऐसी कौन सी मजबुरिया पुलिस के सामने आड़े आ रही जो उन्हें बचाने में ही अपनी इनर्जी जाया करनी पड़ रही है। चाहे वह मोहनलालगंजकांड हो या बदायूं में दो बहनों संग गैंगरेप या मेरठ में किशोरी संग गैंगरेप के बाद धर्म परिवर्तन या मुजफरनगर, मेरठ, मुरादाबाद, अंबेडकरनगर, बरेली और अब सहारनपुर का दंगा। पुलिस व प्रशासन काफी किरकिरी होने के बाद सीबीआई जांच आदेश पर ही मामला शांत हो रहा है। सरकार व पुलिस प्रशासन से जनता का विश्वास उठ गया है, ऐसा लगता है। अगर हर घटनाओं की निदान सीबीआई जांच ही है तो फिर सरकार का क्या मतलब है। इस जुर्मी सरकार को गद्दी पर बने रहने का बिल्कुल कोई हक नहीं है।
यूपी का सर्वाधिक दिल दहला दने वाली घटना मोहनलालगंज की निर्भयाकांड में किस तरह पुलिसिया की छिछालेदर हुई यह जगजाहिर है। पहले बताया गया गैंगरेप नहीं है, महिला की दोनों किडनी है, आरोपी पकड़ लिया गया है और स्टिंग आपरेशन में खुलासा हुआ कि महिला का पोस्टमार्टम सिस्टमेटिक तरीके से हुआ ही नहीं, फोरेंसिक रिपोर्ट में बताया गया कि महिला के शरीर पर एक-दो नहीं कई हब्सियों के निशान मिले है, पीजीआई चिकित्सक ने रिपोर्ट दी कि महिला एक ने किडनी अपने पति को डोनेट कर चुकी है, शव का पंचनामा पुलिस ने जबरन ढाबा वालों से भरवा लिया और इसका खुलासा होने के बाद जांच कर रही टीम ने न सिर्फ माफी मांगी बल्कि मुख्यमंत्री को सीबीआई जांच का आदेश उस वक्त देना पड़ा जब सारे सबूतों का कबाड़ा निकल चुका है। अमेठी में एक छात्रा को कुछ दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा लेकिन जब कामयाब नहीं हुए तो उसे जिंदा जलाकर मार दिया। कुछ इसी तरह का मामला हरदोई में सामने आया, जहां तीन दरिंदों ने घर में सो रही किशोरी से छेड़छाड़ की कोशिश की। किशोरी ने इसका विरोध किया तो उसे जिंदा फूंक दिया। जिला अस्पताल में इलाज के दौरान किशोरी ने दम तोड़ दिया। परिवारीजनों ने एक को दबोच कर पुलिस के हवाले कर दिया जबकि दो फरार हो गए। वारदात की खबर फैलते ही इलाके में तनाव की स्थिति बन गई। लोगों ने हंगामा करना शुरू कर दिया था। एसएसपी समेत कई थानों की फोर्स मौके पर पहुंची और लोगों को समझा-बुझाकर शांत कराया।
मेरठ में चाहेे वह महिला के संग गैंगरेप के बाद धरम परिवर्तन। सड़़क से लेकर संसद तक हंगामा मचने के बाद भी अखिलेश सरकार मुस्करा रही है। लोकसभा में शून्यकाल के दौरान मसले को लेकर हंगामा भी मचा, सरकार की बर्खास्तगी व राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के नारे भी लगे, सीबीआइ जांच के साथ ही संलिप्त लोगों पर सख्त कार्रवाई की मांग भी उठ। हापुड़ और खरखौदा के सीमावर्ती गांवों में जबरदस्त तनाव है। पीडि़ता की अदालत में बयान के बाद मेरठ कमिश्नर भी विवादों के घेरे में आ गए। पीडि़ता का आरोप है कि कमिश्नर ने उनसे ये जानने की कोशिश की उसने अदालत में बयान किसके दबाव में दिये। पीडि़ता जैसी कोई 40-50 लड़कियों को खाड़ी देशों में भेजे जाने का मामला तो हर किसी को हिलाकर रख दिया है। सरकार पर आरोप है कि एक विशेष वर्ग को संतुष्ट करने के लिए कार्रवाई करने में प्रशासन संकोच करती है।
मेरठ के सरधना थाना क्षेत्र के एक गांव में बदमाशों ने एक कारोबारी के घर में घुसकर दरिंदगी की सभी हदें पार करते हुए दिल्ली के निर्भया व लखनऊ के मोहनलालगंज कांड की याद ताजा कर दीं। बदमाशों ने पूरे परिवार से पहले मारपीट करते हुए लाखों की लूटपाट की फिर पति व बच्चों को बंधक बनाकर उनके सामने ही महिला से सामूहिक दुष्कर्म किया। इसके बाद जो हुआ उससे इंसानियत भी शर्मसार हो गई। बदमाशों ने महिला के नाजुक अंगों पर डंडे से प्रहार कर उसे लहूलुहान कर दिया। इतनी वीभत्स घटना के बाद भी पुलिस का कोई बड़ा अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। मेरठ के कंकरखेड़ा में अपहरण व सामूहिक दुष्कर्म के बाद किशोरी को कैंट स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया। पीडि़ता को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसकी हालत गंभीर है। युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और धर्म परिवर्तन के साथ गर्भाशय से फेलोपियन ट्यूब निकालने के सनसनीखेज मामले में प्रदेश सरकार के घिर जाने पर अफसर पर्देदारी की कोशिश में जुट गई है। लखनऊ के शामली कैराना से 24 जुलाई को अगवा हुई दो बहनों में से दूसरी बहन का शव भी बुधवार की सुबह कुर्बाना के जंगल से बरामद हो गया। दोनों बहनों की रेप के बाद हत्या की गई है। गाजियाबाद के लोनी-इंद्रपुरी लक्ष्मी गार्डन कॉलोनी में एक नाबालिग की मेरठ की ही तर्ज पर रेप के बाद धर्म परिवर्तन कराकर शादी किए जाने का मामला आया है। पीडि़त परिवार का कहना है कि 24 जून को उसकी बेटी लापता हो गई थी। परिजनों ने पड़ोस की एक महिला के साथ रेहान और इकबाल के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था। इन घटनाओं में कार्रवाई के बजाए पुलिस मामले में लीपापोती में जुट गई है।
ताज्जुब इस बात है कि प्रदेश के जिम्मेदार अफसरों ने सांप्रदायिक दंगों के आर्थिक पहलू पर विचित्र सिद्धांत पेश करते हुए बयान दे रहे है कि पिछले साल मुजफ्फरनगर और शामली में दंगे इसलिए हुए क्योंकि यहां के मुसलमान गरीब वर्ग के हैं और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। मेरठ में दंगे इसलिए नहीं भड़के क्योंकि यह संपन्न जिला है और यहां से मलेशिया, फिलीपींस, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये का निर्यात होता है। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि दंगा भड़काने के पीछे कौन लोग थे और इसके पीछे उनका वास्तविक मंतव्य क्या था।
बीते वर्ष देशभर में हुई साम्प्रदायिक टकराव की कुल घटनाओं में अकेले एक चैथाई प्रदेश में हुईं। इस साल भी अब तक 65 घटनाएं हो चुकी हैं। दुखद है कि जितनी चर्चा इन टकरावों को रोकने के लिए होनी चाहिए उससे ज्यादा इनकी विवेचना और विश्लेषण पर हो रही है। सिद्धांत भी अजीबोगरीब प्रतिपादित किये जा रहे हैं। मुलायम के नेतृत्व में राजनीति मूर्छित थी, अखिलेश के युग में वह मृत हो चली है। यह २१वीं सदी का भारत है-बढ़ती अपेक्षाओं का भारत। हर जातीय और मजहबी समुदाय का आंतरिक संतुलन युवाओं की ओर केंद्रित हो गया है और युवा भविष्य चाहते हैं, अतीत नहीं। युवा नौकरियां चाहते हैं, अपनी थाली में चार रोटी चाहते हैं। उनके माता-पिता को दो रोटी ही नसीब हुई थीं। उन्हें टीवी चाहिए और उसे चलाने के लिए बिजली भी। वे अब झूठे वादों पर भरोसा नहीं करने वाले।
आखिर बिजली, पानी और खाने का कोई मजहब नहीं होता। यदि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में शांति और सुशासन उपलब्ध नहीं करा सकते तो बेहतर होगा कि वह किसी और के लिए जगह खाली करें। जनता का विश्वास उठने कराने की नौबत आ रही है रह-रहकर यूपी का दंगों की आग में झुलसना यूपी की अखिलेश सरकार के साथ-साथ तमाम उन राजनीतिक दलों की मंशा पर भी सवालिया निशान लगता है जो शांति और सद्भावना के साथ रहने के लंबे-चैड़े दावे करते नहीं थकते। सहारन, भदोही या या अन्य दंगों को समय रहते रोका जा सकता था, बशर्ते सरकार सोती ना रहती और प्रशासन यूं पंगू बनकर ना बैठा होता। जिस विवादित जमीन को लेकर दो समुदायों में संघर्ष हुआ उसका मामला अदालत में विचाराधीन है और कब्जे को लेकर अनेक खूनी संघर्ष की नौबत आ चुकी है।
---सुरेश गांधी---