इस संसार में दो तरह के इंसान हैं एक अच्छे और दूसरे बुरे। मनुश्य के एक दूसरे से प्यार, मोहब्बत, दोस्ती, भाईचारे और रिष्ते-नातों की वजह से ही आज इस दुनिया का अस्तित्व है और आगे भी रहेगा। भगवान ने हमारे षरीर के अंदर एक दिल दिया है जो हमारी भावनाओं को काबू में रखता है और जो इंसान को इंसान बनाए हुए है। सुख और दुख, अमीरी और गरीबी जिंदगी के अलग-अलग पहलू हैं। अगर कोई मनुश्य अमीर है तो उसे इस बात का एहसास ज़रूर होना चाहिए कि एक गरीब मनुश्य कितनी परेषनियों में अपनी जिंदगी गुज़र बसर करता है। अगर उस मनुश्य को इस बात का एहसास नहीं तो वह मनुश्य होकर भी जानवर के समान है। आज दौलत और दुनिया की चकाचैंध ने इंसान को अंधा बना दिया है। गरीबी का दर्द क्या होता है यह एक गरीब के सिवा कोई नहीं जान सकता। गरीबी इंसान को लाचार और मजबूर बना देती है। इंसान के सोचने समझने की ताकत खत्म हो जाती है। आज अमीर तो अमीर हमारी सरकार भी गरीबों की आवाज नहीं सुन पा रही है। इस बारे में अगर जम्मू प्रांत के सीमावर्ती जि़ले पुंछ की बात की जाए तो यह जि़ला हर लिहाज़ से पिछड़ा हुआ है। यह इलाका 90 के दषक में मिलिटेंसी का षिकार होने के बाद तकरीबन 15 सालों तक इसकी चपेट में रहा। इसकी वजह से यह इलाका आज भी तमाम मूलभूत सुविधाओ से वंचित है और इलाके में बेरोज़गारी और गरीबी एक गंभीर समस्या है।
रोज़गार न होने की वजह से इलाके के लोग गरीबी के स्तर पर आकर खड़े हो गए है। इन लोगों के पास न रहने के लिए घर है और न ही पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी। स्थिति का जायज़ा लेने के लिए मैंने पुंछ जि़ले की तहसील मेंढ़र के एक अति पिछड़े गांव टोपा ठेर का दौरा किया। इस गांव में लोगों की दयनीय स्थिति को बयान करने के लिए मेरे पास षब्द नहीं है। इस गांव में मेरी मुलाकात मोहम्मद रियाज़ (43) से हुई तो उन्होंने मुझे अपनी दर्दभरी कहानी सुनायी। मोहम्मद रियाज़ का कहना है कि आज से तकरीबन 10 साल पहले मिलीटेंट्स ने आग लगाकर मेरे घर को जला दिया गया था। लेकिन आज तक सरकार की ओर से मुझे कोई मुआवज़ा नहीं मिला है। वह आगे बताते हैं कि मिलीटेंटों ने मेरे जिस्म को बेरहमी से गोलियों से छलनी कर दिया गया था। लेकिन किसी तरह मैंने मौत को मात दे दी। इनका बच्चा 11वीं कक्षा में पढ़ता है और अपनी पढ़ाई को पूरा करने के लिए वह जम्मू में मज़दूरी करता है। एक ओर सरकार बाल मजदूरी का रोकने की बात करती है वहीं दूसरी ओर बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की स्थिति को देखकर आंखे मूंद लेती है। मोहम्मद रियाज़ की सज़ा आखिर इनके बच्चों को क्यों मिल रही है? उन्होंने अपनी कहानी इस दुखभरे अंदाज़ में मेरे सामने बयान की जिससे मुझे यह महसूस हुआ कि उन्हें आज तक धोखे के सिवा कुछ नहीं मिला है। इस गांव में मोहम्मद रियाज़ जैसे न जाने कितने लोग हैं जो गरीबी की वजह से गुमनामी के साए में जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
यहां के लोगों ने देष के लिए खून बहाया है और आगे भी बहाते रहेंगे। बावजूद इसके आज भी यह गांव सरकार की अनदेखी का षिकार है। जब कभी भी यहां के लोगों ने राजनेताओं और सरकार से क्षेत्र के विकास और रोज़गार की मांग की है तो यहां की जनता को धोखे के सिवा कुछ नहीं मिला है। जब भी यह गरीब सरकार से कोई मांग करते हैं तो सुनने में आता है कि फंड नहीं आया। बाद में पता चलता है कि फंड तो आया था मगर उसका बंदरबांट हो गया। छत पर साए के लिए इन लोगों ने डीसी साहिब से मांग की थी। इस पर उन्होंने कहा था कि हम आपकी मदद ज़रूर करेंगे। आप लोगों को मेंढ़र के बाज़ार में रहने के लिए जगह दी जाएगी। लेकिन आज तक उसका कुछ अता पता नहीं है। गरीब आदमी सबसे अपील करता फिरता है कि मेरी मदद की जाए ताकि मैं अपना घर बना सकूं। लेकिन गरीब आदमी की कोई सुनता ही कहां है। एक गरीब आदमी जिसे दो वक्त की रोटी मुष्किल से मिलती है, बेटी की षादी के लिए दर दर मांगना पड़ता है, ऐसे में वह घर कैसे बनाए। जब मैं गांव में स्थिति का जायज़ा लेने के लिए गयी थी तो कुछ असहाय लोगों ने मुझसे हाथ ज़ोड़कर कहा था कि हम गरीबों की सुविधाओं के लिए आप सरकार से मांग करो। षायद राजनेता आपकी सुन लें हमारी तो वह सुनते नहीं हैं। हिंदुस्तान तरक्की कर रहा है और बहुत जल्द सुपर पावर बन जाएगा। आमतौर से अखबारों में पढ़ने और न्यूज़ चैनल पर देखने को मिलता रहता है। लेकिन ग्रामीण भारत की स्थिति आज भी वैसी ही है जैसी आज़ादी से पहले थी। मैं अपने लेख के माध्यम से सरकार से उन गरीबों की ओर से अपील करती हंू कि गरीबों की दर्दभरी आवाज़ को जल्द से जल्द सुना जाए और उनकी समस्याओं का समाधान किया जाए क्योंकि इन गरीबों का दर्द बड़ा बेदर्द है।
रिज़वाना मारूफ खान
(चरखा फीचर्स)