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महिलाओं के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिए कई आदेश.

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2013 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की नियुक्ति, आम आदमी पार्टी की फंडिंग और नोकिया से आयकर विभाग द्वारा 21,153 करोड़ रुपये का कर मांगे जाने जैसे कई मुद्दों को देखा और दिल्ली को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के वास्ते कई आदेश दिए।
   
उच्च न्यायालय ने 16 दिसंबर 2012 को हुई सामूहिक बलात्कार की घटना को लेकर स्वत: संज्ञान लेते हुए न सिर्फ दिल्ली पुलिस की इसकी कमियों के लिए खिंचाई की, बल्कि सरकारी और निजी अस्पतालों को आदेश दिए कि वे आपराधिक मामलों, खासकर बलात्कार पीड़ितों के मामले में उपचार से इनकार नहीं करें।
   
रात में सतर्कता बढ़ाने के लिए पीसीआर वाहनों की संख्या बढ़ाने, सामूहिक बलात्कार के आरोपियों का पता लगाने में विफल रहे पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच, बलात्कार के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों और पीड़ितों के लिए मुआवजे जैसे कदम अदालत के आदेशों पर ही उठाए गए। उच्च न्यायालय ने कुछ खास प्रतिबंधों के साथ सामूहिक बलात्कार मामले की कवरेज के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया को अनुमति देने का साहसिक कदम उठाया और अब यह मामले के चार दोषियों-विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर, पवन गुप्ता और मुकेश की अपील पर हर रोज सुनवाई कर रहा है। निचली अदालत ने इन दोषियों को मौत की सजा सुनाई है।
   
दिल्ली आधारित तहलका पत्रिका के संपादक तरूण तेजपाल ने अपनी पत्रकार सहकर्मी के यौन उत्पीड़न मामले में अपनी संभावित गिरफ्तारी के खिलाफ ट्रांजिट जमानत के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली और फिर गोवा की सत्र अदालत पहुंचे। यौन उत्पीड़न के मामलों पर सख्त रुख अपनाते हुए अदालत ने हालांकि, यह भी कहा कि धन ऐंठने या शादी के लिए विवश करने के वास्ते महिलाओं द्वारा अपने पुरुष मित्रों को प्रताड़ित या ब्लैकमेल करने के लिए बलात्कार विरोधी कानूनों का अक्सर प्रतिशोध लेने और दुश्मनी निकालने के हथियार के रूप में दुरूपयोग किया जाता है।
   
पूर्व रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा की भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के रूप में नियुक्ति का विवाद उच्च न्यायालय तक पहुंचा क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने पूर्व चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी तथा अन्य के आग्रह पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। इस तरह की नियुक्तियों के लिए दिशा निर्देश जारी किए जाने की मांग के साथ जनहित याचिका में कैग के रूप में शर्मा की नियुक्ति को खारिज करने की मांग की गई थी। आरोप लगाया गया था कि वह 2003 से 2007 तक मंत्रालय में संयुक्त सचिव थे और 2011 में रक्षा सचिव बनने से पहले वह 2010 में महानिदेशक (ऐक्विजिशंस) थे। इसमें कहा गया था कि कैग के रूप में वह उनके कार्यकाल के दौरान मंजूर हुए रक्षा सौदों का लेखा परीक्षण करेंगे। उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस याचिका का केंद्र ने जबर्दस्त विरोध किया था।
   
दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अपने प्रदर्शन से राजनीतिक पंडितों को चौंका देने वाली आम आदमी पार्टी से संबंधित मुद्दों ने भी अदालत को व्यस्त रखा। अदालत ने इसकी फंडिंग की केंद्र से जांच करने को कहा और तिपहिया वाहनों पर सरकार विरोधी विज्ञापनों के मुद्दे पर दिल्ली सरकार की अपील पर सुनवाई की।


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