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उत्तराखंड की विस्तृत खबर (05 सितम्बर)

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नन्दा राजजात ने दिया पहाड़ वासियों को अपनी जड़ों से जुड़ने का सन्देश

uttrakhand news
देहरादून, 5 सितम्बर (राजेन्द्र जोशी) ।देवभूमि उत्तराखण्ड धार्मिक आस्थाओं का भी प्रतीक है। वर्षभर यहां पारम्परिक रितिरिवाजों के अनुसार विभिन्न धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। विषम भौगोलिक स्थिति के वावजूद अपनी मातृभूमि के प्रति लगाव के नाते यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में प्रवासी उत्तराखण्ड वासी अपनी भागीदारी निभाते रहे हैंै। इस वर्ष आयोजित श्री नन्दा देवी राजजात यात्रा में सम्मिलित होने पहुंचे क्षेत्र वासियों की बडी संख्या इस बात का प्रतीक है कि इन पहाडों में उनके पूर्वजों ने जो समृद्व सांस्कृतिक व सामाजिक विरासत की शुरूआत की है, वे उसे आगे बढ़ाने के लिये लालायित हैं। प्रत्येक 12 वर्ष बाद आयोजित होने वाली इस राजजात यात्रा का सामाजिक व सांस्कृतिक सरोकारों को जोड़ने में बड़ा योगदान है। यद्यपि नन्दा राजजात मुख्यतः देवी नन्दा का अपने मायके से ससुराल जाने की यात्रा है, किन्तु यह यात्रा अपने साथ यात्रा मार्ग व पड़ावों के गांवों को ही नहीं अपितु पूरे उत्तराखण्ड़ के जनमानस को अपने साथ जोड रही है। मुख्यतः गढ़वाल के राजवंश के वंशजों के गांव कांसुवा से 17 अगस्त को आरम्भ हुई यह यात्रा जब अपने कुलपुरोहितों के गांव नौटी पहुंचती ह,ै तभी से क्षेत्र का पूरा वातावरण नन्दा की भक्ति में समाया हुआ है। भक्ति की शक्ति का प्रतीक यह आयोजन अपनी पुत्री को ससुराल के लिये विदा करने की तैयारियों ही जैसा है। सभी क्षेत्रवासी अपनी सामथ्र्य व श्रद्वा के अनुसार मां नन्दा की आराधना व सेवा में जुडे है। आज जबकि आधुनिकता के दौर में लोग अपनी परम्पराओं को भूलते जा रहे है ऐसे में श्री नन्दादेवी राजजात यात्रा का पर्व उन्हें अपनी लोक संस्कृति व धार्मिक परिवेश से परिचित कराने में सफल हो रहा है। पलायन पहाड़ की आज बडी समस्या बनी हुई है। हालांकि लगभग तीन चैथायी आवादी बेहतर भविष्य की उम्मीद व आजीविका के लिए शहरों की आवादी का हिस्सा बन गई है। ऐसे में खाली पडे इन गांवों के निवासी अपने गांवों को लौटे हैं, पुराने पडे़ जीर्ण-शीर्ण भवनों को ठीक-ठाक कर रहने लायक बना रहे हैं, मां नन्दा की यह दैविक यात्रा उन्हें अपने पैतृक गांवों में लायी है, इससे कुछ ही समय के लिये सही लगभग सभी गांव आवादी से भरे पडे़ है दशकों बाद लोग एक दूसरे से मिल रहे है अपनी आपबीती व पुरानी यादों को ताजा कर रहे हैं। उम्मीद है मां नन्दा उन्हें अपने गांवों से जुडे रहने का आशीर्वाद देगी ताकि खाली हो रहे गांव पहले की तरह हो सके। यह पर्व महिलाओं के सम्मान से भी जुड़ा है। मातृशक्ति की भक्ति की प्रतीक यह यात्रा देश व दुनियां को महिलाओं के सम्मान का भी सन्देश दे रही है। यह देवी की शक्ति का ही प्रतिफल माना जा रहा है कि यात्रा आरम्भ होने से लेकर आबादी के अपने अन्तिम गांव के पड़ाव तक पहुंचने में न कोई कठिनाई हुई और नही पानी बरसने की विशेष समस्या सामने आयी। इससे हजारों की संख्या में लोगों को इससे जुड़ने का मौका मिला। नन्दा राजजात यात्रा ने पहाड़वासियों को अपनी जड़ों से जुड़ने का सन्देश भी दिया है। इस यात्रा का सुखद पहलू यह भी रहा कि यात्रामार्ग के सीमान्त गांवों में लोग अभी भी अपने पूर्वजों की परम्पराओं को संजोये हुए हैं। गावों की महिलायें हो या पुरूष अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक परिवेश को बनाये हुए है। नौटी ईड़ाबधाणी से लेकर आखिरी गांव वाण तक की यात्रा में विभिन्न पड़ावों व आसपास के ग्राम वासियों ने तन-मन-धन से जिस प्रकार यात्रा की अगवानी की तथा अपनी-अपनी परम्परा व रीतिरिवाजों के साथ देवी नन्दा से आत्मीयता से जुडे़, यह वास्तव में यहां की समृद्व सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत का परिचायक है। तमाम दुश्वारियों के बावजूद भी अपनी जमीन से जुडे़ रहने, अपनी परम्पराओं के निर्वहन में महिलाओं की भागीदारी देखने को मिली। पहाड़ के लगभग हर गांव में शिव व देवी के मंदिर है। ये मन्दिर उन्हें जीवन की कठिनाइयों से उबरने की प्रेरणा देते हैं। यहां के गांवों में भादो का महिना यद्यपि प्रतिवर्ष नन्दामय रहता है। सभी गांवों में देवी नन्दा की पूजा होती है। उसके अपने मायके से ससुराल जाने की परम्पराओं का धार्मिक आयोजन होता रहता है, किन्तु प्रत्येक 12 वर्ष बाद आयोजित होने वाली इस राजजात यात्रा का अपना विशेष महत्व है। यह यात्रा पहाड़ वासियों के लिए आपसी एकता का सन्देश लेकर आयी है। इस यात्रा में जुडे़ लोग धार्मिक यात्रा का साक्षी बनने के साथ ही यहां की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, लोकजीवनशैली तथा लोक संस्कृति से भी रूबरू हुए हैं। इस यात्रा में प्रकृति प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरण विद, जैव व भूविज्ञानी, छायाकार, पत्रकार, वृत्तचित्र निर्माता व सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग अपने-अपने उदे्श्यों की प्राप्ति के लिये यात्रा का हिस्सा बने रहे। साहसिक पर्यटन भी इससे जुड़ा है। बडी संख्या में लोग इससे भी जुडे है। यहां का सुरभ्य प्राकृतिक वातावरण हिमालयी चोटियां व घाटियां सुन्दर मखमली बुग्यालों का आकर्षण उन्हें बार-बार यहां आने की प्रेरणा निश्चित रूप से देंगे। यात्रा में अपने परिवेश, अपने अतीत, अपनी विरासत व युवाओं के अपनों से जुड़ने का अद्भुत मिलन निश्चित रूप से पहाड़ के हित के लिये शुभ संकेत है। यह यात्रा किसी को आध्यात्मिक शान्ति तो किसी को साधना का मार्ग प्रशस्त कर गई है। प्रकृति का यह अनुपम क्षेत्र आत्मिक शान्ति की राह भी लोगों को दिखा गई है। कहा जा सकता है कि इस यात्रा ने प्रवासियों को अपनी माटी से जुड़ने का अवसर दिया, तो बीती आपदा से सहमे लोगों के मन में साहस की नई उमंग भी भरी। अपनी आराध्य देवी अपनी लाड़ली (ध्याणी) के इस उत्सव में जिस तरह आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा उसके चलते यह राजजात वर्षो-वर्षो तक याद रहेगी।

लखवाड़ जल विद्युत परियोजना के निर्माण का हुआ रास्ता साफ

देहरादून, 5 सितम्बर,(निस)। लखवाड़ जल विद्युत परियोजना के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माना है कि लखवाड़ के लिए भी व्यासी परियोजना की तरह ही वन और पर्यावरण क्लियरेंस दिया गया है। इस सिलसिले में मुख्य सचिव सुभाष कुमार शुक्रवार ने नई दिल्ली में वन एवं पर्यावरण सचिव अशोक लवासा से मुलाकात की। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने केन्द्रीय योजना आयोग को लिखे पत्र में साफ किया है कि लखवाड़ परियोजना को दी गई क्लियरेंस मानको के अनुरूप है। इसी तरह की क्लियरेंस व्यासी जल विद्युत परियोजना को भी दी गई थी। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 13 अगस्त 2013 को दिये गये फैसले की परिधि में भी लखवाड़ नहीं आता है। जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर रोक अलकनंदा और भागीरथी पर बनने वाली 24 परियोजनाओं पर लगी थी। इस बारे में कानूनी राय ले ली गई है। मुख्य सचिव सचिव केन्द्रीय योजना आयोग सिंधु खुल्लर से मिलकर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का पत्र सौंपा। सुश्रीं खुल्लर ने मुख्य सचिव को भरोसा दिलाया कि अब स्थिति स्पष्ट हो गई है। जल्द ही इंवेस्टमेंट क्लियरेंस दे दिया जायेगा।  

चर्चाओं का केन्द्र बिन्दु बना उपराष्ट्रपति का उत्तराखण्ड दौरा

देहरादून, 5 सितंबर (निस)। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी  का दौरा कई मामलों में विलक्षण रहा है। इस दौरे में दो विलक्षण ध्रुवों के लोग एक साथ मिले जो अपने आप मेें किसी अजूबे से कम नहीं है। मुस्लिम उपराष्ट्रपति से भेंट करने गए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तराखण्ड प्रांत प्रचारक डाॅ. हरीश। वैसे तो आर. एस. एस. को धुर मुस्लिम विरोधी बताया जाता है परन्तु  उसके प्रांत प्रचारक का इन दोनों संवैधानिक अधिकारियों से मिलना इस बात का संकेत है कि आर एस एस आम धारणा के विपरीत काम करता है। भले ही लोग उसके बारे में तमाम भ्रांतिया उड़ायें पर संघ समाज में कोई भेद नहीं करता।हाँ यह जरूर है कि संध गलत नीतियों का सदैव विरोध करता है। आपको बताते चले कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ट प्रचारक इन्द्रेश कुमार ने जिनकी कश्मीर, नेपाल, तिब्बत जैसे संवदेनशील विषयों पर गहरी पकड़ है ने राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच स्थापित कर इस वर्ग के लोगों को भी संघ से जोड़ने का काम किया है। इसी मुहिम पर उत्तराखण्ड के प्रांत प्रचारक डाॅ. हरीश रौतेला भी अग्रसर हैं। महामहिम उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल से की गई ये संध के प्रांत प्रचारक की यह भेंट भले ही समाचार पत्रों की सुर्खियां न बन पाई हों पर प्रबुद्ध वर्ग की चर्चाओं में जरूर है। कुरैशी समाज का होने के बावजूद राज्यपाल डाॅ. अज़ीज़ कुरैशी ने गौ हत्या रोकने का जो संदेश जनता में दिया है वह अपने आप में उनकी विशेष पहल के रूप में देखा जा रहा है। यह कदम हिन्दू व मुस्लिम समाजों को एक दूसरे के समीप लाये जाने वाला कदम माना जा सकता है। बहुसंख्यक वर्ग गो हत्या का धुर विरोधी है जबकि अल्पसंययक वर्ग इसे अपना अधिकार मानता है जिसके कारण दोनों वर्गो में दूरिया बढ़ी है लेकिन महामहिम अजीज कुरैशी ने उत्तराखण्ड आने के बाद लगभग एक वर्ष पूर्व ही यह बयान दिया था गो हत्या मुस्लिम समाज के लिए उचित नही है। यह बयान उन्होंने कुरैशी समाज की बैठक में दिया था जो इस मामले में सबसे आगे रहता है। भारतीय संविधान में आस्था तथा बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का ख्याल रखने राज्यपाल का यह संदेश अपने आप में बेजोड़ है। डाॅ. अज़ीज़ कुरैशी तथा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी दोनों संवैधानिक पदों पर स्थापित है। साथ ही साथ दोनों दल विशेष से जुड़े है। उसके बाद भी आम जनता का इतना ध्यान रख रहे हैं जो अपने आप में इनकी विशिष्टताआंे को परिभाषित करता है। हिन्दी साहित्य में रहीम, रस्खान जायसी जैसे मुस्लिम कवियों के बारे में कहा गया है कि ‘‘इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिक हिन्दू वारिए।’’ इसका अर्थ यह हुआ कि बहुसंख्यक समाज के देवताओं, पर्वो, मान्यताओं का ध्यान रखने वाले मुस्लिम लोगों पर करोड़ों हिन्दू न्यौछावर किए जा सकते हैं। कवियों के बारे में कही गई यह पंक्ति इन दोनों महामहिम के बारे में कही जा सकती है। कांगे्रसी पृष्ठ भूमि होने के बावजूद इन लोगों को बहुसंख्यक समाज की इतनी चिंता है जो अपने आप में किसी विशिष्ट उपलब्धि से कम नहीं है। आर एस एस को लोग अछूत मानते हैं। लेकिन आर एस एस के प्रांत प्रचारक जैसे पदाधिकारी से इन दोनों महामहिमों का मिलना दोनों की महत्ता बढ़ाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि आर एस एस को वरिष्ठ लोग अछूत नहीं मानते और आर. एस. एस. भी अल्पसंख्यक विरोधी नहीं है। आज भी कांगे्रसी पृष्ठ भूमि के नेता, वामपंथी तथा कथित सेकुलर लोग इस बात को निरंतर उठाते रहते हैं। उनको भाजपा के हर काम में भगवा करण का छाप दिखाई देती है। लेकिन दोनों इन महामहिमों ने  जिस ढंग से डाॅ. हरीश रौतेला से भेंट की वह इनकी तथा डा. हरीश की विस्तृत मानसिकता का प्रतीक है। सच यही है कि राजनीति में कोई अछूत नहीं और कोई विशेष नहीं। जब जहां जैसी व्यवस्था हो तब, तहां, तैसा काम करना चाहिए। कम से कम इस मुलाकात ने तो यही साबित किया है। वैसे भी हिन्दू संस्कृति में अतिथि देवो भवः की कल्पना मानी जाती है। देहरादून में रहकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ट प्रचारक डाॅ. हरीश द्वारा इन अतिथियों से मिलना अपने आप में किसी विशिष्ट घटना से कम नहीं है।

चुनाव जीतने के एक माह बाद रावत ने मुआवजा की राषि आधी कर दी
  • उत्तराखंड जनमोर्चा ने मुख्यमंत्री के खिलाफ किया आंदोलन का ऐलान
  • चुनाव से पहले आपदा प्रभावितों को गले लगाया अब खाई में फेंका

देहरादून, 5 सितंबर (निस)। आपदा प्रभावितों के वोटों से राज्य विधानसभा पहुंचे मुख्यमंत्री हरीष रावत ने चुनाव जीतने के ठीक एक माह बाद गुपचुप तरीके से आपदा प्रभावितों को मिलने वाले मुआवजे की राषि हटाकर आधी कर दी। उत्तराखंड जनमोर्चा ने आज मुख्यमंत्री द्वारा गोपनीय तरीके से कम की गई आपदा राहत राषि के आंकड़े जारी कर मुख्यमंत्री से सवाल पूछा कि आपदा प्रभावितों को वे अपनी जीत का यह कैसा ईनाम दे रहे है। उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री ने पूर्व में जारी मुआवजा नीति को यथावत नहीं किया गया तो आपदा प्रभावितों के साथ मिलकर जनमोर्चा आंदोलन करेगा। उत्तराखंड जनमोर्चा के संयोजक जगत मर्तोलिया ने कहा कि वर्श 2013 में आई भीशण आपदा के बाद 6 जुलाई 2013 को राज्य सरकार ने संख्या 475/गअ के अंतर्गत आपदा राहत राषि में बढ़ोतरी की थी। यह राषि आपदा प्रभावितों को वर्तमान तक मिल रही थी। मुख्यमंत्री ने आपदा प्रभावितों को सुनहरे सपने दिखाकर धारचूला व मुनस्यारी से चुनाव जीतकर आपदा प्रभावितों को जख्म दे दिए है। 22 अगस्त 2014 को संख्या 3823 के अंतर्गत षासनादेष जारी कर आपदा में मृत व्यक्ति का मुआवजा पांच लाख से तीन लाख,  80 प्रतिषत अपंगता की राषि दो लाख से एक लाख, 40 प्रतिषत से 80 प्रतिषत तक की अपंगता की राषि डेढ़ लाख से 75 हजार कर दी है। जबकि पक्का आवासीय भवन पूर्ण क्षतिग्रस्त होने के मुआवजा राषि को दो लाख से घटाकर एक लाख कर दिया है। उन्होंने कहा कि जानलेवा चोट लगने के लिए उपचार हेतु तय की गई राषि भी घटा दी है। कृशि भूमि, फसलों का मुआवजा आदि की राषि भी आधी कर दी है। उन्होंने कहा कि दुधाररू पषु का पहले 20 हजार रूपया प्रति पषु मिलता था जिसे घटाकर 16 हजार 400 रूपया कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि पूर्ण भवन क्षतिग्रस्त होने पर वर्श 2013 के आपदा प्रभावितों को पांच लाख रूपये अतिरिक्त दिए गए थे। इस वर्श पूर्ण भवन क्षतिग्रस्त होने वाले आपदा प्रभावितों को मात्र एक लाख रूपया थमाया जा रहा है। इसके अलावा 15 हजार रूपये की अहैतुक सहायता दी जा रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री से पूछा कि क्या आपदा प्रभावितों की हर वर्श नुकसान की स्थिति बदलती है। चुनाव से पहले आपदा प्रभावितों को गले लगाना और चुनाव के बाद खाई में फेंक देना यही मुख्यमंत्री हरीष रावत की राजनीति है। मर्तोलिया ने कहा कि राज्य के तमाम हिस्सों में संघर्श कर रहे आपदा प्रभावित संगठनों से वार्ता कर मुख्यमंत्री के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन षुरू कर दिया जाएगा। 

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