एक दषक पहले तक गांव-कस्बों में सूचना तकनीक की पहुंच न के बराबर थी। संपन्न गांवों में ग्रामीण टेलीफोन (वीपीटी) या लैंडलाइन की कहीं-कहीं व्यवस्था थी। विष्वास कीजिए सुबह से लेकर रात तक पीसीओ पर लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। सबसे ज्यादा महिलाएं व बच्चे अपने पति व पिता से घर का समाचार बताने-पूछने में सैंकड़ों रूपया खर्च कर देते थे। सुदूर व पिछडे़ इलाके में तो टेलीफोन के पोल-तार भी दिखाई नहीं देते थे। आम-आवाम टेलीग्राम (तार) के जरिये देष-विदेष में रह रहे अपने परिजनों को संदेष भेजा करते थे। उस वक्त सूचना तकनीक से दूर लोगों के पास एक ही विकल्प था, चिट्ठी-पत्री। समय के साथ सूचना क्रांति की पहंुच क्या षहर, क्या गांव, सुदूर देहाती इलाकों में भी हो गयी है। जिन घरों में बिजली नहीं है, आज उन घरों में मोबाइल, टेलीफोन, वाइफाई इंटरनेट के उपयोगकर्ता जरूर मिल जायेंगे। आष्चर्य तो तब होता है जब कोई अनपढ़ स्मार्ट फोन के ज़रिए फेसबुक पर लाइक या डिस्लाइक और वाट्स एप का इस्तेमाल करता हुआ नज़र आता है। अब हम गर्व से कह सकते हैं कि हम आइटी युग में जी रहे हैं जहां पढ़े-लिखों से ज्यादा कम पढ़े-लिखे व अनपढ़ भी राज्य या दूर देष से बाहर नौकरी व मजदूरी कर रहे अपने परिजनों से आसानी से बात कर रहे हैं। इनको मोबाइल खरीदने से पहले एबीसीडी की जानकारी नहीं थी। पर, आज यह धीरे-धीरे अंग्रेजी भी सीखने व पढ़ने लगे हैं। जो काम साक्षरता दर को बढ़ाने में कागज नहीं कर पाया। वह काम आज सूचना तकनीक की वजह से फलीभूत होता दिख रहा है। हाथ की अंगुलियां मोबाइल कीपैड पर पड़ती है तो इ-मार्केटिंग, मनी ट्रांसफर, मोबाइल बैंकिंग आदि बेझिझक, फटाफट हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत पढ़ा-लिखा व्यक्ति यह सब कर रहा हो।
मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले कारोबारी प्रभु पटेल पिछले 8-9 वर्शों से गुजरात के सूरत षहर में एक कपड़ा कंपनी के साथ काम करते है। गांव में एक कमजोर व मजदूर परिवार के इस व्यक्ति की पढ़ाई मात्र दूसरी-तीसरी कक्षा तक हुई है। उसने घर की माली हालत सुधारने के लिए सूरत जाकर कुछ दिन नौकरी की। फिर स्वयं कपड़ा पैकेजिंग का काम षुरू किया। धीरे-धीरे इस काम को करने के लिए 200 से ज्यादा कारीगर व मजदूरों की आवष्यकता हुई। उसने गांव जाकर लोगों को रोजगार से जोड़ा और पहली कमाई से स्मार्ट फोन खरीदा। क्योंकि उसके कुछ मित्रों ने उसे बताया था कि पैसे हाथ में लेकर मजदूरी का भुगतान करना मुष्किल है, आप मोबाइल से भुगतान करो। जिस प्रभु पटेल को अंग्रेजी की वर्णमाला का ज्ञान नहीं था। आज वह सैकड़ों कामगारों की मजदूरी का भुगतान मोबाइल के ज़रिए ई-पेमेंट से करता है। सभी को फेसबुक से जोड़कर लाइक्स व थैंक्स भी देता है। आज उसके फेसबुक मित्र की कमी नहीं है। धीरे-धीरे ई-मेल भेजना भी सीख गया है। अंग्रेजी पढ़ने व टूटी-फूटी बोलते हुए गर्व महसूस करता है। पड़ोस के बुजुर्ग व पढ़े-लिखे जलदेव, महेन्द्र ठाकुर आदि लोग कहते हैं कि यह अनपढ़ होते हुए भी लैपटाप के ज़रिए बहीखाता व कंपनी से जुडे़ सारे कार्य ठीक से कर लेता है।
साहेबगंज थाना अंतर्गत करनौल गांव के रहने वाले युवा रकटू यादव (काल्पनिक नाम) का जीविकोपार्जन का साधन मात्र पषुपालन है। दूध के पैसे से वह सुख-सुविधा की सारी वस्तुएं अपने घर में सजोए हुए है। आष्चर्य तब हुआ जब वह भैंस पर बैठकर मैदान की ओर घास चराते हुए, फेसबुक यूज करने में व्यस्त दिखाई दिया। आसपास के पढ़े-लिखे लड़कों ने उसे चिढ़ाना षुरू किया तो उसने भैंस से थपाक से उतरते हुए कहा कि तुम क्या समझते हो! मैं भी फेसबुक मित्र बनाया हूं। मैं भी रोज फोटो खींचकर दोस्तों को पोस्ट करता हूं। रकटू को जानने वाले नीतीष कुमार यादव, बबलू कुमार व पड़ोसी कहते हैं कि भले इसने दूसरी-तीसरी तक ही पढ़ाई की है, पर फेसबुक, गुगल, यू ट्यूब आदि का इस्तेमाल करने में इसका कोई सानी नहीं है।
इधर, अब गांव की अनपढ़ महिलाओं के हाथों में मोबाइल के रिंगटोन भी मद्धिम पड़ गई हैं। स्मार्ट फोन के चलन ने उन्हें भी फेसबुक मित्र बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। बड़े परिवार की महिलाएं आमतौर पर पढ़ी-लिखी और नयी तकनीक के मामले में दक्ष होती है। वहीं, छोटे व निर्धन परिवार की महिलाएं भी इनसे पीछे नहीं हैं। जिले के पष्चिमी दियारा इलाके की पार्वतिया, सुनैना, द्रौपतिया, सुमित्रा आदि महिलाएं खेतों में रोपनी व निकौनी करते हुए बड़े चाव से मूवी मस्ती व म्यूजिक धुन में गुनगुनाते हुए काम में मग्न रहती हैं। काम की धुन के साथ संगीत की धुन में इनके चेहरे पर आनंद साफ झलकता है। पार्वतिया कहती है कि मोबाइल में एफएम या म्यूजिक सुनते हुए काम करने में काफी मन लगता है। आसानी से घंटों काम करने पर भी थकान का एहसास नहीं होता। पार्वतिया इसके पहले खेत में रेडियो ले जाया करती थी। आज रेडियो ले जाने का झंझट समाप्त हो गया और यह सब कर दिखाया एक छोटा से मोबाइल फोन ने। एक छोटे से छोटे हैंडसेट में भी एफएम की सुविधा रहती है। सुनैना कहती है कि इतने पैसे नहीं है कि स्मार्ट फोन खरीदें, पर कम दाम का यह सेट कमाल का है। सुनैना एफएम की दीवानी है। उसे विविध भारती सुनना ज्यादा पसंद है।
साइबर दुनिया से जुडे़ नीरज कहते हैं कि दूर-दराज़ के इलाकों में महिला-साक्षरता की दर को बढ़ाने के लिए सरकार को सूचना तकनीक के इस्तेमाल पर ज़ोर देते हुए योजनाएं बनाने की ज़रूरत हैै। मोबाइल के जरिये वह षिक्षा, स्वास्थ व सरकारी योजनाओं को आसानी से समझ सकती हैं। तकनीक के इस्तेमाल से भावी भारत की निरक्षर महिलाओं भी सरकार की योजनाओं से सीधे जुडेंगी और फिर केंद्र सरकार की योजनाओं को बल मिलेगा।
वस्तुतः ग्रामीण भारत का षत-प्रतिषत विकास सूचना क्रांति की नींव का पत्थर रखने से ही संभव हो सकता है। षुचिता व पारिदर्षिता लाने के लिए गांव के किसानों, मजदूरों, गरीब व निरक्षर लोगों को मोबाइल के जरिये कल्याणकारी योजनाओं , घोशणाओं व उपलब्ध्यिों को टेक्सट व इमेज मैसेज के माध्यम से भेजना, षासन व सरकार के लिए ज्यादा प्रभावकारी होगा। आम जनता का भी सरकारांे से सीधे जुड़ाव होगा। मोबाइल क्रांति का अनोखा प्रयोग छतीसगढ़ की धरती पर चर्चित पत्रकार षुुभ्रांषु चैधरी ने ‘सीजीनैट स्वारा’ के माध्यम से गांव की समस्या, महिलाओं की समस्या, गांव के मुद्दों को एक मुहिम के तहत गांव के लोगों के हाथों में हैंडसेट पकड़ा कर किया है। यह कांन्सेप्ट हैंडसेट के आॅडियो रिर्काडर के माध्यम से न्यूज बनाकर मोबाइल धारकों को जमीनी खबरों से रू-ब-रू करा रहा है। इस न्यूज सुविधा की इच्छुक जनता ‘सीजीनैट’ के एक खास कोड संख्या पर मोबाइल से डायल करती हंै और खबरें सुनायी पड़ने लगती है। षुुभ्रांषु चैधरी ने मप्र के छतरपुर स्थित गांधी आश्रम में ‘बुंदेलखंड में सुखाड़ और मीडिया की भूमिका’ विशय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि मोबाइल के जरिये गांव की समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान आकृश्ट किया जा सकता है। जिससे लोग जागरूक होंगे व समस्याएं स्वतः दूर हो जाएंगी। शुभरांशू को नागरिक पत्रकारिता के क्षेत्र में मोबाइल के रचनात्मक इस्तेमाल के लिए एमबिलियन्थ अवार्ड दिया जा चुका है। एमबिलियन्थ अवार्ड दक्षिण एशिया में साल 2010 से हर साल ऐसी शखि़्सयत को दिया जाता है जिसने मोबाइल संचार में नवाचार किया हो। डिजिटल भारत बनाने में मोबाइल की महती भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
अमृतांज इंदीवर
(चरखा फीचर्स)