जम्मू एवं कष्मीर का किष्तवार इलाका हमेषा किसी न किसी वजह से सुर्खियों में रहता है। तकरीबन 20 साल पहले पहले डोडा जि़ले ( 2007 में डोडा जि़ला तीन जि़लों किष्तवार, रामबन और डोडा में बंट गया था ) को पूरे मुक में कौमी एकता और आपसी सद्भाव के लिए जाना जाता था। इस जि़ले ने कई बदलाव देखे, मगर यहां की धरती को उस वक्त नज़र लगी जब 90 के दषक में मिलीटेंसी का दौर ‘ाुरू हुआ। मिलीटेंसी के दौर ने इस ज़मीन और यहां के लोगों को भी नहीं बख्‘ाा। हालांकि यहां मिलीटेंट इतने सफल नहीं हुए थे लेकिन धीरे धीरे कुछ ऐसे तत्वों और प्रयासों ने लोगों के दिमाग को बदला। मिलीटेंसी के दौर में यहां कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिससे डोडा, किष्तवार और रामबन जि़लों में कौमी एकता और आपसी सद्भाव को गहरा धक्का लगा। इसकी ‘ाुरूवात 13 अगस्त, 1993 को उस वक्त हुई थी, जब किष्तवाड़ के सरथल गांव में मिलीटेंट की गोलियों से 17 हिंदुओं की मौैत हो गयी थी। इसका सबसे बड़ा खामियाज़ा यह हुआ कि दो समुदायों के मधुर संबंधों में कटाक्ष आ गया। पिछले साल ईद के दिन किष्तवाऱ जि़ले में हुए साम्प्रदायिक दंगों में दो लोगों की मौत हो गयी थी। इसके बाद इलाके में कई बार सांप्रदायिक झड़पे भी हुईं। इस दौरान लोगो की दुकानें भी जलायी गईं। इस घटना का असर किष्तवार में ही नहीं बकि अन्य कई जि़लों और खासतौर से श्रीनगर में देखने को मिला। 90 के दषक में मिलीटेंसी के वक्त दोनों समुदायों के बीच उपजा तनाव आज भी किसी न किसी हिंसात्मक घटना के रूप में सामने आ ही जाता है।
मिलीटेंट ने इस इलाके की ‘ाांति को न सिर्फ भंग किया बकि इलाके में आपसी सद्भाव के माहौल को भी काफी ठेस पहुंचाई। इस बारे में रामबन जि़ले के स्थायी निवासी फारूक कटोच कहते हैं ,’’रामबन के बट्टन पंचायत में हर साल नागपंचमी के दिन ‘‘कोठी बाथन’’ मेला लगता था और इसमें बड़ी तादाद में हिंदू और मुस्लिम षिरकत करते थे। यह मेला कौमी एकता और आपसी सद्भाव की एक जीती जागती मिसाल हुआ करता था। इस मेले की खासियत यह थी कि इसमें पूरे रामबन के हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदायों के लोग इलाके में खुषहाली और फसल की अच्छी पैदावार के लिए नई फसल से थोड़ा सा अन्न देवता को खुष करने के लिए भेंट चढ़ाते थे। लेकिन मिलीटेंसी की वजह से इस परंपरा ने भी दम तोड़ दिया। ’’मिलीटेंसी के दौरान दोनों समुदायों के बीच उपजे तनाव ने मुस्लिम समुदाय के बीच इस बात को जन्म दिया कि अब इसकी ज़रूरत नहीं है और इस्लाम धर्म ऐसा करने की इजाज़त नहीं देता। ऐसी बहुत सारी परंपराएं थी जो दो समुदायों को आपस में बांधे हुए थी। लेकिन कुछ परंपराओं का अब अस्तिव ही नज़र नहीं आता।
रामबन में मिलीटेंसी के दौरान दोनों समुदायों को जोड़ने वाली बहुत सारी परंपराएं ज़मीदोज़ हो गयी लेकिन दषहरे के दौरान होने वाली रामलीला आज तक चली आ रही है। हिंदू समुदाय के लोग बड़े धूमधम से राम लीला आयोजन करते हैं, मगर उसमें मुस्लिम नौजवानों की कमी के चलते रामलीला की वह बात नहीं जो पहले हुआ करती थी। बनिहाल के एक निवासी जो अब रामबन कस्बे में आकर बस गए हैं, कहते हैं कि हमारे गांवों के उपरी क्षेत्र में एक इलाका है जिसे लोग देवता के नाम से जानते हैं। इस गांव की ज़्यादातर आबादी मुस्लिम है। इस गांव के प्रति लोगों की आस्था थी, जिसकी वजह से लोग इसे देवता के नाम से जानते थे। लेकिन मिलीटेंट ने इसका कड़ा विरोध किया और मूर्ति पूजा की निंदा की, जिसकी वजह से समुदायों के आपसी संबंधों पर गहरा असर पड़ा। जम्मू कष्मीर सूफी संतों की सरज़मीन भी रही है। सूफी संतों की दरगाहें देष में हमेषा से ही आपसी सद्भाव और कौमी एकता की जीती जागती मिसाल रही है। मिलीटेंसी से पहले रामबन और किष्तवार की दरगाहों पर सभी धमोंर् के लोग बिना भेदभाव के हाजि़री देने आते थे। लेकिन मिलीटेंसी के दौर ने इन दरगाहों से इनके अकीदतमंदों को छीन लिया। इस बारे में किष्तवार में स्थित ‘ााह फरीद–उद–दीन बगदादी दरगाह के खादिम कहते हैं कि दरगाह पर मिलीटेंसी से पहले सभी धर्मों के अकीदतमंदों की बड़ी तादाद देखने को मिलती थी, लेकिन अब वह बात नहीं।
किष्तवार के स्थानीय निवासी नरेष कुमार भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। इसके विपरीत जम्मू प्रांत के वह इलाके जो मिलीटेंसी के दौर से अछूते रहे, उन इलाकों में कायम दरगाहों पर आज भी अकीदतमंदों का तांता देखा जा सकता है। इन इलाकों से दो बार लोगों का पलायन हुआ एक मिलीटेंसी से पहले और दूसरा मिलीटेंसी के बाद। मिलीटेंसी से पहले पलायन करने वाले लोगों ने अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पलायन किया था। इसके विपरीत इलाके में मिलीटेंसी के दौरान पलायन करने वाले लोगों में हिंदू और मुस्लिम दोनों तरह के लोग ‘ामिल थे। यह लोग अपनी जान बचाकर उन इलाकों में जाकर बस गए थे ,जहां इनकी जिंदगी आसानी से गुज़र सके और इनके बच्चे अच्छी तालीम हासिल कर सकें। अलग अलग धर्मों और अलग अलग धारणाओं के यह लोग जब दूसरी स्थानों पर जाकर बसे तो इन लोगों के आपसी भेदभाव और विचारधारा के चलते वहां का समाज भी कई हिस्सों में बंट गया। मिलीटेंसी के दौर में जो कुछ हुआ वह एक बुरे सपने की तरह है। यहां की आवाम अतीत से उठकर वर्तमान में एक सुखद जीवन जीने की चाह रखती है। यहां की आवाम को इस बात की उम्मीद ज़रूर है कि यह इलाका अपने अतीत से सीख लेते हुए विष्वपटल पल पर आपसी सद्भाव और कौमी एकता की जीती जागती मिसाल बनकर फिर से उभरेगा।
डाक्टर संदीप सिंह
(चरखा फीचर्स)