चीन ने भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट प्रॉजेक्ट्स के एक बड़े हिस्से की फंडिंग करने की चाहत फिर दोहराई है। हालांकि उसका पिछला ऑफर सरकार ने ठुकरा दिया था। सरकार टेलिकॉम या पावर जैसे संवेदनशील सेक्टर्स में चीन की एंट्री से सिक्योरिटी के मोर्चे पर पैदा होने वाली चिंताओं को लेकर नर्वस थी। हालांकि इससे चीन पर कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने अपनी कंपनियों तथा वर्कर्स को भारत के रेल, रोड, पावर इंफ्रास्ट्रक्चर और टेलिकॉम सेक्टर्स से जोड़ने की मुहिम में ढिलाई नहीं बरती है।
चीन के एक वर्किंग ग्रुप ने फरवरी के पहले हफ्ते में पांच साल का ट्रेड ऐंड इकनॉमिक कोऑपरेशन प्लान भारत सरकार को सौंपा था। भारत ने 2012-2017 की 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इंफ्रास्ट्रक्चर में एक लाख करोड़ डॉलर के निवेश का लक्ष्य तय किया है। चाइनीज वर्किंग ग्रुप ने इसके 30 पर्सेंट हिस्से यानी करीब 300 अरब डॉलर की फंडिंग का प्लान पेश किया। यह भारत के सामने किसी भी देश की ओर से आया सबसे बड़ा ऑफर है। यह जापान की ओर से दिए गए फंड से ज्यादा है, जो परंपरागत रूप से भारत के महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट्स की फाइनैंसिंग करता रहा है।
मामले की जानकारी रखने वाले एक गवर्नमेंट ऑफिशल ने ईटी को बताया कि कॉमर्स डिपार्टमेंट चीन के इन्वेस्टमेंट प्रपोजल पर चर्चा के लिए अगले हफ्ते इंटर-मिनिस्ट्रियल मीटिंग बुला सकता है। इस बैठक में भारत अपनी पसंद के वे सेक्टर्स चुन सकता है, जिनमें चीन को निवेश करने की इजाजत दी जा सकती है। चीन के पास 3.8 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा का कैश रिजर्व है। दूसरे देशों के साथ उसके ट्रेड सरप्लस के कारण इसमें इजाफा हो रहा है। चीन इस रकम को इन्वेस्ट करना चाहता है। वह अपने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में बड़ी रकम लगा चुका है और अब उसकी नजर दूसरे देशों पर है। वह पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और साउथ अफ्रीका सहित दुनिया के कई विकासशील देशों में पैसे लगा रहा है। इससे उन देशों में चीन और उसकी कंपनियों का महत्व बढ़ रहा है।
इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में भारत की जरूरतें काफी ज्यादा हैं और चीन को इसमें बड़ा मौका दिख रहा है। चीनी वर्किंग ग्रुप ने भारत सरकार को जो प्लान सौंपा है, उसमें रेलवेज, रोड्स, टेलिकॉम, न्यूक्लियर पावर और सोलर पावर सहित कई सेक्टर्स को इन्वेस्टमेंट के लिए चुना गया है।
सरकारी अधिकारी ने बताया कि चीन ने भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में इन्वेस्टमेंट करने की गहरी इच्छा दिखाई है। हालांकि हमें यह देखना है कि इस ऑफर का कैसे फायदा लिया जा सकता है। हमें उन सेक्टर्स की पहचान करनी है, जिनमें हमें फायदा हो सकता है। इनमें आईटी, फार्मा जैसे सेक्टर्स हैं।
चीन का जोर रेलवे पर ज्यादा है, खासतौर से इलेक्ट्रिफिकेशन, हाई-स्पीड ट्रेनों, वैगन और गेज कन्वर्जन पर। उसने सीवेज ट्रीटमेंट और टनल बिल्डिंग जैसे क्षेत्रों में भी दिलचस्पी दिखाई है। भारत हालांकि नॉर्थ ईस्ट और जम्मू कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में चीन से इन्वेस्टमेंट नहीं चाहता है।