पालीगंज। एक समय में बंधुआ मजदूर थीं। जब उसे बंधुआ मजदूरी के बंधन से मुक्ति मिली। पट्टा पर खेत ली और खेती करने लगी। और तो और वह कुछेक माह के बाद आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका बनने वाली हैं। अभी तक आप जरूर ही आश्चर्य व्यक्त कर रहे होंगे? यह हम नहीं कह रहे हैं। बल्कि किस्मत की धनी रेवंती देवी कह रही हैं। जो समाज के किनारे ठहर जाने वाले महादलित मुसहर समुदाय के बद मांझी और केसरी देवी की पुत्री हैं। दोनों के 4 संतान हैं। 3 बहन और 1 भाई है।
पटना जिले के नक्सल प्रभावित पालीगंज से रेवंती देवी दानापुर आयीं। गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति की रजत जयंती के अवसर पर आयीं। उसे बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी जी के भाशण ठीक लगा। हमलोग प्रारंभ में बंधुआ मजदूर थे। मां-बाप के साथ बच्चे भी बंधुआगिरी के बंधन में जकड़े थे। प्रगति ग्रामीण विकास समिति के भइया प्रदीप प्रियदर्शी जी खनपुराटाढ़ी मुसहरी में कार्यसेवा शुरू किए। सरकार से संवाद करने के बाद बंधुआ मजदूरी के बंधन से मुक्ति मिली। रेवंती देवी कहती हैं कि गरीबता के कारण मां-बाप बाल्यावस्था में बाल विवाह कर दिए। उस समय 14 साल की थीं। वह अपना पति का नाम अशोक मांझी बताती हैं। परन्तु रेवंती ससुराल नहीं गयीं। नैयर में रह गयीं। इसका नतीजा निकला कि अशोक मांझी ने विवाह विच्छेद कर दिए। वह दूसरी शादी नहीं।
प्रगति ग्रामीण विकास समिति से प्रेरणा पाकर बचत समूह बनाया गया। इसी समूह की राशि से पट्टा पर खेत लेकर खेती किए। हमलोग सभी लोग मिलकर खेती करने लगे। मेहनत रंग लाने लगा। खेत में काम भी करते और पढ़ाई भी शुरू किए। इस बीच एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष पी.व्ही.राजगोपाल जी के बुलाया पर जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा में शिरकत किए। ग्वालियर से दिल्ली तक पांव-पांव चले।
विघालय परित्याग करने से नियमित स्कूल नहीं जाते थे। बाहर से ही फार्म भरे। अन्ततः 2008 में मैट्रिक द्वितीय श्रेणी से उर्त्तीण हो गए। मैट्रिक उर्त्तीण होने के बाद भी पट्टा पर खेत लेकर खेती करना छोड़े नहीं। 2009 में 22 हजार रूपए में 4 बीघा खेत लिए। जो सालाना भुगतान करके खेती कर रहे हैं। इस बीच आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका बनने के लिए आवेदन दिए। 2013 में सेविका के रूप में चयन हो गया है। आंगनबाड़ी का कोड नम्बर 223 है। 40 बच्चों का चयन भी कर लिए हैं। कुछ माह के बाद बच्चों को पढ़ाना शुरू कर देंगे।
रेवंती देवी कहती हैं कि हमलोग पालीगंज प्रखंड के खनपुराटाढ़ मुसहरी में रहते हैं। सरकारी जमीन पर रहते हैं। मगर वासगीत पर्चा निर्गत नहीं किया गया है। 350 घरों की मुसहरी में आठ सौ की आबादी है। अभी यहां से सिर्फ तीन लोग ही मैट्रिक उर्त्तीण हुए हैं। सरकार की ओर से चापाकल गाढ़ा गया है। शौचालय का प्रबंध नहीं किया गया है। पहले लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते थे। मनरेगा लागू होने के बाद पलायन रूका है। 150 घरों को जॉब कार्ड निर्गत किया गया है। मगर आरएसबीवाई से लाभान्वित नहीं करवाया जा रहा है।
आलोक कुमार
बिहार