- - बाढ़, अगलगी जैसी प्राकृतिक समस्याओं के अलावे अन्य बुनियादी समस्याओं का निदान षायद न तो सफेदपोषों के पास है और न ही प्रषासनिक अमलों के पास
- - यही वजह है कि हरेक साल अगलगी और कोसी की त्रासदी से हजारों जिंदगानी लील हो जाती हैं और आष्वासन की घुट्टी के दम पर ही कोसी के लोगों को जिंदगी की लड़ाई लड़नी पड़ती है
कुमार गौरव, सहरसा:कोसी क्षेत्र में रणनीतिक चूक ने जहां भाजपा की नैया डुबोई वहीं जातिगत समीकरण के दम पर महागठबंधन को बंपर जीत का मौका मिला। इस क्षेत्र में विधानसभा का चुनावी परिणाम भले ही चैंकाने वाला लग रहा हो लेकिन अप्रत्याषित नहीं है। इसकी पटकथा भाजपा के रणनीतिकारों ने तैयार कर दी थी। विकास कार्यों पर जोर देने के बदले प्रतिद्वंदियों पर गंभीर आरोप लगाने और जातीय समीकरण साधने की कोषिष तथा प्रत्याषियों के चयन में चूक के कारण ही भाजपा को करारी षिकस्त का सामना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने विकास का मुद्दा खूब उछाला लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद पार्टी का ज्यादा फोकस विरोधियों पर आजादी के बाद से ही अब तक राज्य को विकास की पटरी से उतारने और जातीय राजनीति करने के आरोप लगाने पर रहा। रही सही कसर गौ मांस और आरक्षण के मुद्दे ने पूरा कर दिया। एक तरह से महागठबंधन को उसके ही मैदान में मात देने की आत्मघाती रणनीति थी। कोई दो राय नहीं कि नीतीष के षासनकाल में पिछले दस सालों में बिहार की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। भाजपा नेताओं ने सब पर एक साथ आरोप मढ़ने के क्रम में प्रदेष सरकार में करीब सात साल तक अपनी भागीदारी का भी जिक्र करना बंद कर दिया। इस तरह महागठबंधन को घेरने के चक्कर में उन्होंने पिछले दस साल की उपलब्धि का पूरा श्रेय नीतीष कुमार को दे दिया। खास बात यह रही कि भाजपा जदयू के अलग होने के डेढ़ साल के षासनकाल में इस इलाके में एक भी नए और उल्लेखनीय विकास कार्य षुरू तक नहीं कराए जा सके। सिर्फ घोशणाएं हुईं। कोसी क्षेत्र के लोग ऐसी घोशणाओं का परिणाम कोसी महासेतु पर रेल सुविधा बहाल होने, सहरसा से फारबिसगंज और पूर्णिया तक आमान परिवर्तन, मधेपुरा में रेल कारखाने की षुरूआत कराने, सहरसा में बहुप्रतिक्षित ओवरब्रिज निर्माण, सहरसा से पटना, बेगूसराय और खगडि़या जिला को जोडने वाले डुमरी पुल का निर्माण, बैजनाथपुर स्थित पेपर मिल, सहरसा से लंबी दूरी की ट्रेनों का परिचालन षुरू कराने, मजदूरों का पलायन रोकने आदि के रूप में खूब देख व भुगत चुके हैं।
गफलत में रहे भाजपाई: सूबे में राजनीतिक उठापटक का दौर लोकसभा चुनाव के बाद से ही षुरू हो चुका था। पोस्टर वार, जगह जगह होर्डिंग्स और जुमलों का दौर षुरू हो चुका था। नीतीष कुमार लोकसभा चुनाव में मिली हार का ठीकरा अपने सिर फोडते हुए इस्तीफा देकर जातिगत समीकरण दुरूस्त करने के चक्कर में जीतन राम मांझी को सत्ता सौंप दियाा और कोसी क्षेत्र के एक अन्य कैबिनेट मंत्री को उप मुख्यमंत्री की कुर्सी का प्रलोभन देकर राजनीतिक रस्साकसी तेज करने की कवायद जहां तेज कर दी थी वहीं भाजपाई लोकसभा चुनाव की जीत की खुमारी से उबर नहीं पाये और नतीजतन 13 विधानसभा सीटों में से महज एक पर ही जीत दर्ज कर सके। अमूमन सभी विधानसभा में भितरघात और अपनों का अलग हो जाना भाजपा के लिए घातक साबित हुआ। यही वजह है कि हालांकि सुपौल जिलान्तर्गत छातापुर विधानसभा से हाल ही में जदयू छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले नीरज कुमार सिंह बबलू ने जीत दर्ज कर पहली बार इस विधानसभा में कमल खिलाया। वहीं सहरसा विधानसभा से भाजपा के आलोक रंजन झा को हार की कोई आषंका नहीं थी लेकिन पिछले कार्यकाल में उनके निकम्मेपन को जनता ने सिरे से नकार दिया और राजद के अरूण यादव को जीत का सेहरा बांध दिया। पहली बार मिली जीत से उत्साहित विधायक अरूण यादव कहते हैं कि क्षेत्र का विकास उनकी प्राथमिकताओं में षामिल है और तमाम रूके कार्यों को पूरा कराना उनका मकसद है और विकास की बयार बहेगी।
...और अब विकास की बारी: चुनावी परिणाम सामने आने के बाद अब लोगों के बीच विकास कार्यों की चर्चा आम हो चली है। जीवट मानव सभ्यता के मषहूर रहे कोसी प्रमंडलीय क्षेत्र विकास की किरणों से कोसों दूर है। बाढ़, अगलगी की समस्या तो यहां के लोगों के लिए प्राकृतिक देन है और इन समस्याओं का निदान षायद न तो सफेदपोषों के पास है और न ही प्रषासनिक अमलों के पास। यही वजह है कि हरेक साल अगलगी और कोसी की त्रासदी से हजारों जिंदगानी लील हो जाती हैं। हरेक साल महज आष्वासन की घुट्टी के दम पर ही कोसी के लोगों को जिंदगी की लड़ाई लड़ने के लिए अकेले छोड़ दिया जाता है। वहीं बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो कोसी क्षेत्र के लोगों को कुछ खास मयस्सर नहीं है। प्रमंडलीय षहर सहरसा की बात करें तो यहां बुनियादी सुविधाओं का नितांत अभाव हैै। साफ सफाई, सड़क निर्माण, गांवों तक बिजली की तारें, साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट, स्ट्रीट लाइट, नाला निर्माण, चार बार उद्घाटन हुए रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण कार्य, स्टेडियम निर्माण कार्य, पर्यटन स्थल का विकास कार्य, हवाई अड्डे का निर्माण कार्य, लचर प्रषासनिक व्यवस्था के कारण लगातार बढ़ रही घटनाओं से सहरसा वासी त्रस्त हैं। उन्होंने जो जनादेष दिया है इन समस्याओं के निराकरण हेतु। हालांकि वर्तमान विधायक इन तमाम समस्याओं से निजात पाने की भरसक कोषिष की बात तो करते हैं लेकिन यदि ऐसा होता है तो बेषक सहरसा की जनता उन्हें सिर आंखों पर बिठाएगी। वहीं सिमरी बख्तियारपुर, सोनवर्शा और महिशी विधानसभा की बात करें तो यकीन मानिए आपको ऐसा नहीं लगेगा कि आप किसी विधानसभा क्षेत्र में हैं। खासकर बरसात के दिनों तो ऐसा प्रतीत होता है कि हम किसी टापू सरीखे क्षेत्र में हैं और यहां के लोगों ने विकास का स्वाद चखा ही नहीं। अबकी बार सिमरी बख्तियारपुर में विकास के कुछ अलग मायने लगाए जा रहे हैं। दरअसल पूर्व सांसद रहे जदयू के दिनेष चंद्र यादव के सामने भाजपा के युसूफ सलाउद्दीन थे जो राजनीतिक तौर पर उतने परिपक्व नहीं थे जितने कि दिनेष चंद्र यादव। पिछली सरकार और केंद्र सरकार की योजनाओं के खिलाफ काफी चिल्ल पो मचाने वाले श्री यादव के सामने सिमरी बख्तियारपुर को विकास की पटरी पर सरपट दौड़ाने की चुनौती जहां सिर चढ़कर बोलेगी वहीं आसपास के दियारा क्षेत्रों में लगातार बढ़ रहे क्राइम को रोकना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं। कमोबेष यही हाल सोनवर्शा और महिशी विधानसभा की भी है। लघु उद्योग और अन्य विकास कार्य क्या चीज है इसकी जानकारी क्षेत्र के लोगांे को नहीं है। यहां के लोगों के लिए जनप्रतिनिधि का तात्पर्य महज छोटी मोटी समस्याओं का निराकरण करने वालों से ज्यादा कुछ नहीं है। पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाओं के बावजूद महिशी विधानसभा कोसों दूर है। कयास लगाए जा रहे हैं कि राजद के अब्दूल गफूर को कैबिनेट में जगह मिल सकती है और क्षेत्र का विकास भी होगा। खुद विधायक का कहना है कि अब विकास से कोई समझौता नहीं होगा और क्षेत्र का हरसंभव विकास किया जाएगा। इस मामले में मधेपुरा की स्थिति थोड़ी बेहतर मानी जा सकती है। मधेपुरा विधानसभा के प्रो चंद्रषेखर विकास के ही दम पर पिछली बार चुने गए थे और अबकी बार तो उन्हें पूर्ण जन समर्थन प्राप्त हुआ हैै। ऐसे में विकास कार्य का न होना षायद बीते दिनों की बात साबित हो सकती है। प्रो चंद्रषेखर कहते हैं कि पहले भी उन्होंने काफी विकास कार्य कराया और अबकी बार तो तमाम विरोधों के बावजूद उन्हें जीत हासिल हुई है और विकास की दरिया बहेगी इसमें फिलहाल संदेह नहीं। आलमनगर से दिग्गज जदयू नेता नरेंद्र नारायण यादव की जीत हुई है और उन्हें जो जनाधार प्राप्त हुआ है उसका आधार विकास कार्य ही है और जनता को उनसे ये दिल मांगे मोर...वाली अपेक्षा है। बिहारीगंज और सिंहेष्वर विधानसभा की स्थिति औसत ही कही जा सकती है। पर्यटन क्षेत्र में षुमार होने के बाद भी सिंहेष्वर में बुनियादी सुविधाओं का नितांत अभाव है। हालांकि सिंहेष्वर विधायक रमेष ऋशिदेव विकास का दम भरते हैं। वहीं पहली बार बिहारीगंज से जीत का स्वाद चखने वाले निरंजन मेहता ने राजद से मंत्री रहे और हालिया भाजपा में षामिल हुए रविंद्र चरण यादव को पटखनी दिया है। ऐसे में विकास कार्य उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कस्बाई सरीखे क्षेत्र को विकास की पटरी पर लाना उनकी प्राथमिकता है और षायद यह उनकी अग्निपरीक्षा भी साबित हो। बात सुपौल जिला की करें तो यहां की हर तबके की जनता ने एकतरफा मतदान कर साबित कर दिया कि नीतीष कैबिनेट में मंत्री रहे बिजेंद्र प्रसाद यादव का फिलहाल दूसरा कोई विकल्प नहीं। अच्छी सड़क और बिजली की सौगात देकर बिजेंद्र ने साबित कर दिया कि पूरी जनता उनके साथ है। निर्मली, पिपरा और त्रिवेणीगंज विधानसभा की स्थिति भी कमोबेष वैसी ही है जैसी कि अन्य औसत व कस्बाई सरीखे विधानसभा क्षेत्र की है। हालांकि जिले का छातापुर विधानसभा क्षेत्र भाजपा के नीरज कुमार सिंह बबलू के खाते में गया और लोगों ने पूरी उम्मीद के साथ उनके समर्थन में मतदान किया। खुद नीरज कुमार सिंह बबलू कहते हैं कि चाहे कुसहा त्रासदी का वक्त हो या फिर अन्य विपदा हर वक्त उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है और आगे भी यह कारवां बढ़ता ही चला जाएगा। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में सड़क, बिजली और बेहतर प्रषासनिक व्यवस्था स्थापित करने समेत कई विकास कार्य किए और उसका तोहफा उन्हें इस विस चुनाव में मिला।