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बिहार विशेष : हरेक साल बेनकाब होता है प्रशासन ...!

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  • - करोड़ों की आबादी को आगाह करने के लिए न तो मौसम विभाग का कोई कार्यालय है और न ही कोई विकसित तंत्र व प्रणाली
  • - आपदा की घड़ी में सड़कों पर मचती भगदड़ और सड़क व टापू सरीखे क्षेत्र में विस्थापितों का डेरा इस बात का द्योतक है कि लोगों को आपदा प्रबंधन का ककहरा तक मालूम नहीं

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कुमार गौरव, सहरसा: आपको षायद साल 2008 में आई प्रलंयकारी बाढ़ (कुसहा त्रासदी) का नजारा याद होगा, कोसी की धार में जहां कई बस्तियां उजड़ गई वहीं दूसरी ओर हजारों लोग काल की गाल में समा गए। इसके ठीक तीन साल बाद यानी 2011 में आए भूकंप का नजारा भी याद होगा, दिन रविवार (18 सितंबर) था और षाम के तकरीबन 06 बजकर 15 मिनट हो रहे थे। धरती 35 सेकेंड क्या डोली अपने साथ कई सवालों को संग ले आयी। 35 सेकेंड तक सड़कों पर अफरा तफरी का माहौल बना था और देष-विदेष से लोग इंटरनेट व मोबाइल पर अपने रिष्तेदारों से संपर्क साधने की जुगत में लगे हुए थे। गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 35 सेकेंड की इस त्रासदी के दरम्यान 212,000,000 ट्वीट्स पर गमों का सैलाब सा उफन पड़ा था, और लोग अपने संदेषों में सिर्फ भूकंप की ही चर्चा करते दिख रहे थे। कमोबेष यही हाल 2015 का भी था जब नेपाल के तराई क्षेत्र में आए भूकंप से कोसी क्षेत्र की धरती कांपी और आमजन सड़कों पर डरे सहमे नजर आ रहे थे यह सिलसिला एकाध सप्ताह तक चला और लोग प्रतिदिन भूकंप के झटकों का इंतजार करते और थोड़ी बहुत कंपन होते ही सड़क पर दौड़ पड़ते। कोसी क्षेत्र की अमूमन हरेक गलियों में ऐसा नजारा आम हो चला था। भूकंप के बाद लोग अपने रिष्तेदारों का ही कुषलक्षेम पूछते दिखते थे। हरेक चैक चैराहे पर बुजुर्ग यही चर्चा करते दिख रहे थे कि षुक्र मनाइये कि 1934 वाला भूकंप नहीं आया, वरना नजारा कुछ और ही होता। आफत को भांप राज्य सरकार आनन फानन में भूकंप रोधी भवन निर्माण संबंधी कानून को हरी झंडी तो जरुर दिखा दी लेकिन षायद सूबे में लचर आपदा प्रबंधन को दुरुस्त करने की कवायद भूल गई। तभी तो कोसी क्षे़त्र के अमूमन तीनों जिलों में आपदा प्रबंधन के नाम पर महज खानापूर्ति ही की जा रही है। अब जबकि पांचवीं बार नीतीष कुमार मुख्यमंत्री चुन लिए गए हैं और आपदा प्रबंधन मंत्री के तौर पर मधेपुरा के राजद विधायक प्रो चंद्रषेखर को सेवा करने का मिला है, ऐसे में लोगों में उम्मीद जगी है कि आपदा प्रबंधन के नाम पर बेहद पिछड़े कोसी क्षेत्र को बेहतर और हाइटेक सुविधाएं मयस्सर होंगी। साथ ही आमजनों के अलावे किसानों को भी ससमय तमाम जानकारियां उपलब्ध होंगी। 

एक रिपोर्ट की मानें तो भूकंप के सबसे संवेदनषील क्षेत्रों में सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया व कटिहार को भी षामिल किया गया है। वहीं सेसमिक मैप जोन आॅफ इंडिया में बिहार का कोसी क्षेत्र मसलन सहरसा, सुपौल व मधेपुरा को जोन-5 में रखा गया है। मसलन क्षेत्र में किसी भी वक्त आफत की घंटी बज सकती है। बहरहाल बात तो हो गयी कभी कभार धरती डोलने की यानी भूकंप की। अब बात करते हैं हरेक साल आने वाली आफत यानी बाढ़ की। भले ही यह समस्या आमजनों को बेहद पीड़ा देने वाली व दुखद हो, लेकिन प्रषासनिक अमला इन तमाम समस्याओं से कोई इत्तेफाक नहीं रखता है। तभी तो लाखों की आबादी को पूर्वानुमान के आधार पर आगाह करने के लिए कोसी क्षेत्र में न तो मौसम विभाग का कोई कार्यालय है और न ही कोई विकसित तंत्र या संबंधित प्रणाली। आपदा प्रबंधन के नाम पर क्षेत्र में महज खानापूर्ति ही की जा रही है। आपदा की घड़ी (भूकंप) में सड़कों पर मचती भगदड़ व बाढ़ के दिनों सड़क व टापू सरीखे क्षेत्र में विस्थापितों का डेरा इस बात का द्योतक है कि लोगों को आपदा प्रबंधन का ककहरा तक मालूम नहीं। कोसी प्रमंडल के गांवों में गर्मी की रातें अक्सर आफत लेकर आती हैं और महज एक चिंगारी से सैकड़ों घर स्वाहा हो जाते हैं। लोगों का आसियाना पल भर में राख हो जाता है और उन्हें आर्थिक तौर पर काफी नुकसान होता है। बावजूद इसके कोसी क्षेत्र में अगलगी की समस्या से निपटने के लिए बेहतर दमकल की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पायी है। हरेक साल लाखों की आबादी बरसात के दिनों बाढ़ से जूझने के बाद गर्मी के दिनों अगलगी की समस्या से निपटने के लिए रातभर जागते हैं और बचाव के उपाय ढूंढ़ते रहते हैं। यह सिलसिला कई दषकों से जारी है और अब तक न तो किसी सफेदपोषों ने और न ही किसी प्रषासनिक पदाधिकारियों ने ही इस दिषा में सार्थक प्रयास किया है। जबकि कोसी की धरती ने कई नेताओं को राश्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। अनुमान लगाया जा सकता है कि कोसी प्रमंडल की लाखों की आबादी कैसे और क्यों बेबसी और जीवट मानव सभ्यता के लिए जानी जाती है। 

आष्चर्य की बात तो यह है कि प्रषासनिक आला अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि क्षेत्र में आपदा प्रबंधन के नाम पर कुछ खास प्रगति नहीं हुई है। हरेक साल बाढ़ के दिनों प्रषासन बेनकाब होता है और लचर प्रषासनिक व्यवस्था की पोल भी खुलती है लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं होता है। बता दें कि आपदा प्रबंधन के नाम पर समय समय पर लोगों को नुक्कड़ नाटक और सरकारी तौर पर आपदा से बचने के उपाय बताए जाते हैं ताकि लोग तत्काल अपनी रक्षा कर सके। पूरे राज्य में पटना और मुजफ्फरपुर के अलावा सहरसा में ही एयर बेस (आपदा) बनाए गए हैं ताकि लोगों को समय पर सारी सुविधाएं मयस्सर हो सके लेकिन जब आपदा की बारी आती है तो सारी सुविधाएं और दावे धरे के धरे रह जाते हैं और कोसी क्षेत्र के लोगों को मिलती है तो बस बेबसी और जीवट मानव सभ्यता। 

रोडमैप तैयार कर होगी त्वरित कार्रवाई:षुक्लपक्ष से विषेश बातचीत के दरम्यान आपदा प्रबंधन मंत्री, बिहार प्रो चंद्रषेखर कहते हैं कि आपदा प्रबंधन को ले जल्द ही रोडमैप तैयार कर अमल में लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार के दिषा निर्देषों को गंभीरता से अमल में लाया जाएगा ताकि बिहार प्रदेष खासकर कोसी क्षेत्र के लोगों को ससमय और बेहतर जानकारियां उपलब्ध हो सके। उन्होंने षुक्लपक्ष द्वारा पेष किए गए सुझाव का भी स्वागत करते हुए कहा कि जल्द ही कोसी क्षेत्र में दमकल विभाग की गाडि़यों को न सिर्फ दुरूस्त किया जाएगा बल्कि गाडि़यों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी। उन्होंने अगलगी से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए दस किलोमीटर की दूरी पर सब स्टेषन बनाए जाने की भी बात कही और इसे अमल में लाए जाने का आष्वासन दिया ताकि प्रभावितों को ससमय दमकल की सुविधाएं नसीब हो सके।   

लगाए जाते हैं कैंप: वरीय उप समाहर्ता (आपदा, सुपौल) कहते हैं कि नेषनल डिजास्टर रेस्क्यू फोर्स (एनडीआरएफ) की टीम द्वारा आपदा के दिनों जगह जगह कैंप लगाए जाते हैं। साथ ही हरेक पंचायत से पांच व्यक्तियों को प्रषिक्षित करने का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हालांकि उन्होंने संसाधनों की कमी का भी रोना रोया। कहते हैं कि पूर्वानुमान संबंधी जानकारी के लिए कोसी क्षेत्र को जल संसाधन विभाग पूर्णिया पर ही निर्भर होना पड़ता है। लिहाजा, अनुमान लगाया जा सकता है कि लाखों की आबादी को आगाह करने के लिए प्रषासन कितना सतर्क है।

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