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बिहार : ..और अब गांधीगिरी के दम पर बदलेंगे ‘पठन पाठन‘

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  • - विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए नियम यदि सही तरीके से लागू कर दिये जाएं तो बेहतर होगा पठन पाठन 
  • - विवि में षैक्षणिक कैलेंडर सही तरीके से लागू नहीं होने के कारण तीन वर्श के कोर्स को पूरा करने में करीब पांच वर्षों का इंतजार करना पड़ता है

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कुमार गौरव/गौतम राय, सहरसा:भले ही सूबाई सरकार दुरूस्त पठन पाठन के लाख दावे पेष करे लेकिन भूपेंद्र नारायण मंडल विष्वविद्यालय, लालूनगर मधेपुरा की स्थिति लापरवाही व लेटलतीफी से बेहद चिंतनीय होती जा रही है। हालांकि विभागीय पदाधिकारियांे की अपनी राय है और वे कुछ और ही दलील पेष करते हैं। विवि अंतर्गत महाविद्यालयों का पठन पाठन दिनोंदिन गिरता ही जा रहा है। यही कारण है कि अब छात्रों ने उग्र प्रदर्षन नहीं करने की ठानी है। अब सड़कों पर और विवि गेट के सामने धरना प्रदर्षन भी नहीं होगा। छात्र अब गांधीगिरी अपनाएंगे। अब उन्होंने ठान ली है कि गांधीगिरी के दम पर वे न सिर्फ अपना विरोध प्रदर्षन करेंगे बल्कि पठन पाठन दुरूस्त करने हेतु छात्र छात्राओं को भी नियमित रूप से महाविद्यालय आने की अपील करेंगे ताकि 75 फीसदी उपस्थिति के साथ साथ बेहतर पठन पाठन को वे आत्मसात भी कर सके। इसी कड़ी में स्नातक प्रथम वर्श के छात्र जितेंद्र कुमार बेहद संजीदगी के साथ अपनी दलील पेष करते हैं। उनका कहना है कि अब उग्र रूप से नहीं बल्कि गांधीगिरी के दम पर अपनी बात महाविद्यालय प्रबंधन के समक्ष रखी जाएगी। जितेंद्र, अविनाष कुमार, दिलखुष, पायल गुप्ता, चाहत कुमारी, सागर कुमार, आदर्ष कुमार, सन्नी, धीरज कुमार समेत अन्य का कहना है कि विष्वविद्यालय द्वारा बनाए गए नियम यदि सही तरीके से लागू कर दिये जाएं तो बेषक पठन पाठन बेहतर होगा लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। 

बंद हो ट्यूषन प्रथा: वहीं ट्यूषन प्रथा पर तंज कसते हुए जितेंद्र कहते हैं कि महाविद्यालय के सीनियर प्रोफेसर अक्सर क्लास लेने में कोताही बरतते हैं और महीने में एकाध दिन ही दर्षन देते हैं जबकि निजी ट्यूषन के दम पर लाखों के वारे न्यारे करते हैं। ऐसे में गरीब छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होती है। उनके अभिभावकों को निजी ट्यूषन सेंटर में फीस जमा करने में काफी परेषानी होती है। खासकर विज्ञान और वाणिज्य संकाय के छात्रों को तो ट्यूषन फीस देने में तो दिन में ही तारे नजर आने लगते हैं। सहरसा, सुपौल और मधेपुरा जैसे कस्बाई जिलों में पटना सरीखे फीस वसूले जाते हैं। यही नहीं यहां के ट्यूषन सेंटर्स पर तो समय समय पर लुभावने आॅफर्स भी दिए जाते हैं ताकि भीड़ तंत्र को बढ़ावा देकर मोटी फीस वसूली जा सके। सुबह हो या षाम कोसी क्षेत्र की अमूमन हरेक गलियों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए ट्यूषन सेंटर्स पर छात्रों की भीड़ जमने लगती हैं। उन्हें न तो क्वालिटी एजूकेषन की परवाह है और न ही महाविद्यालय में 75 फीसदी उपस्थिति की चिंता।   

क्वालिटी एजूकेषन का नितांत अभाव: इन संस्थानों में क्वालिटी एजूकेषन मसलन फैकल्टी मेंबर हो या न हो, लेकिन हर गली मोहल्ले में कोचिंग संस्थान के बैनर व बोर्ड टंगे जरुर दिख जाते हैं। कारोबार से जुड़े ऐसे लोग पहले घर घर जाकर ट्यूषन पढ़ाते हैं और अपनी पहचान बनाते हैं। तगड़ा नेटवर्क बनने के बाद कारोबारी ट्यूषन सेंटर में क्लास लगाते हैें। आॅल इंडिया काउंसिल फाॅर टेक्नीकल एजूकेषन यानी एआईसीटीई का भी मानना है कि क्वालिटी के बजाए क्वांटिटी का नकारात्मक असर अब देखने को मिल रहा है। उधर, सूबे की राजधानी में भी कमोबेष यही स्थिति है। 5,500 कोचिंग संस्थानों का सालाना टर्नओवर एक हजार करोड़ रुपए का है। इन कोचिंग संस्थानों में करीब साढ़े तीन लाख बैंकिंग, रेलवे, कर्मचारी चयन आयोग समेत अन्य परीक्षाओं के छात्र हैं। जबकि डेढ़ लाख मेडिकल व इंजीनियरिंग के छात्र कोचिंग क्लास ले रहे हैं। आपको षायद याद होगा कि फरवरी 2010 को कोचिंग संस्थानों की मनमानी के खिलाफ पटना में छात्रों का गुस्सा फूटा था। यह गुस्सा कोई अचानक पैदा नहीं हुआ था बल्कि सालों से पनप रहा था। कोचिंग संस्थान की मनमानी के मद्देनजर मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा नई नीति बनाने की घोशणा कर दी गई, लेकिन नीति को सही तरीके से धरातल पर उतारा नहीं जा सका है। यही हाल कमोबेष कोसी प्रमंडल का भी है। कुछेक को छोड़ दे ंतो बाकी संस्थान न तो रजिस्टर्ड हैं और न ही किसी नियमों की पालना ही करते हैं। सुबह हो या फिर षाम बच्चों की लंबी कतार इन कोचिंग संस्थानों के बाहर दिखने लगती है जबकि स्कूल कालेजों में इनकी संख्या आमतौर पर नदारद ही रहती है और विवि में छात्रों का उग्र प्रदर्षन किसी भी वक्त अस्थिरता पैदा कर सकता है।

यहां भी पलायन की समस्या: आमतौर पर लोग रोजी-रोटी की तलाष में पलायन करते हैं लेकिन बीएनएमयू की स्थिति ऐसी है कि यहां के छात्र बेहतर पठन पाठन और समय पर स्नातक/स्नातकोत्तर करने के लिए अन्य विवि का रूख करते हैं। विवि में षैक्षणिक कैलेंडर सही तरीके से लागू नहीं होने के कारण तीन वर्श के कोर्स को पूरा करने में करीब पांच वर्शों का इंतजार करना पड़ता है। न तो समय पर परीक्षा की तिथि घोशित होती है और न ही परीक्षाफल ही घोशित होता है। लिहाजा, छात्रों को इसका भुगतान भुगतना पड़ता है। वहीं 75 फीसदी उपस्थिति के बारे जितेंद्र कहते हैं कि अधिकांष छात्र बीएनएमयू में एडमिषन लेकर अन्यत्र पढ़ाई करने चले जाते हैं और परीक्षा का वक्त निकट आने पर सेटिंग गेटिंग के दम पर न सिर्फ अपना फार्म भरते हैं बल्कि उनकी 75 फीसदी उपस्थिति भी रजिस्टर में अंकित मिलती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि विवि द्वारा बनाए गए नियमों की धज्जियां कैसे उड़ाई जा रही है।

छात्र पढ़ें अथवा करें महाविद्यालय का परित्याग: बीएनएमयू के प्रतिकुलपति जेपीएन झा कहते हैं कि विवि में अध्ययनरत छात्रों की महाविद्यालय से बढ़ी दूरी को कतई बर्दाष्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने सख्त व स्पश्ट लहजे में कहा कि छात्र पढ़ें अथवा महाविद्यालय का परित्याग करें। विवि द्वारा बनाए गए नियमों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अनुपस्थित रहने वाले छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और आर्थिक दंड भी सुनिष्चित की जाएगी। वहीं महाविद्यालयों में षिक्षकों की कमी के बारे श्री झा कहते हैं कि जल्द ही इस दिषा में सार्थक कदम उठाए जाएंगे।     

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