जी हां, गांवों में प्रधानी का चुनाव क्या है, वोटरों की लाटरी लग गयी है। कहीं लिट्टी-चोखा, मुर्गा-दारु का दावत चल रहा है तो कहीं पूरा का पूरा एकजूट होकर वोट की कीमत मांग रहा है। प्रत्याशी भी प्रधान बनने के लिए मान-मनौउअल के बीच वोटरों की हर इच्छा पूरी करते नजर आ रहे है। आलम यह है कि एक-एक वोट की बोली लग रही है
यूपी के गांवों में प्रधानी चुनाव की विसात बिछ चुकी है। नामांकन के बाद प्रत्याशी मैदान मारने के लिए हर हथकंडे अपनाते हुए वोटरों पर दिल खोलकर मेहरबान है। कहीं लिट्टी-चोखा, मुर्गा-दारु की दावत है तो कहीं एक-एक वोट की कीमत लग रही है। तो कहीं कहीं मंदिर व मस्जिद बनाने के नाम पर लाखों रुपये दिये जा रहे है। आलम यह है कि प्रत्याशी हाथ में मुर्गे, बकरे और दारू की बोतल लिए गांव के पगडंडियों की खाक छान रहे है। इस खेल में राजनीतिक दल से लेकर पुलिस व प्रशासन कुंडली मारे बैठे हैं तो समाज सुधारक भी चुप हैं। कहा जा सकता है गांवों में बसने वाला लोकतंत्र इस घिनौने खेल बर्बाद हो रहा है। इसकी बड़ी वजह है उन सियासी दलों का जिन्हें प्रधानी के जरिए अपना वोट बैंक जुटाने का फिक्र है। मतलब साफ है ग्राम प्रधानी चुनाव में जो नंगा नाच या यूं कहें नोटों के इस दंगल में विकास की बात बेमानी हो जायेगी। गांव विकास के नाम पर मिलने वाले लाखों-करोड़ों का बंदरबांट करने की नींव चुनाव से पहले ही रख दी गयी है। जो जितेगा वह विकास के पैसे से ही अपनी भरपाई करेगा और जो हारेगा वह दी गयी रकम की वसूली के लिए कुछ भी कर गुजरने पर आमादा होगा। यानी एक तरफ विकास के नाम पर धनराशि की बंदरबांट तो दुसरी तरफ गांव-गांव में खून-खराबा का ताना-बाना बुना जा रहा है।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की नींव पंचायती राज व्यवस्था है। देश में सबसे अधिक पंचायतें उत्तर प्रदेश में हैं। विडम्बना देखिए की इसी नींव को चुनावों में मुर्गा-दारू व पैसे से सींचा जा रहा है। देखा जाय तो 14वीं पंचवर्षीय योजना के तहत इस बार यूपी के गांवों में विकास के लिए 2015 से 2020 तक तकरीबन 35,775 करोड़ रुपए खर्च होने है। मनरेगा में ही हर ग्राम पंचायत को 10 लाख रुपए मिलेंगे। खास बात यह है कि ग्राम पंचायतों की विकास की योजनाएं ग्राम पंचायत स्तर पर ही बनाने की योजना है। मतलब कुल मिलाकर पैसे का खेल है। चुनाव बाद जो पंचायतें गठित होंगी, वे भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी होगी। परिणाम क्या होंगे यह समय बताएगा। लेकिन इनसे विकास की उम्मीद करना बेमानी है। फिरहाल, अभी तक तो लोकसभा-विधानसभा चुनाव में ही धनबल और बाहुबल लड़े जाते रहे हैं। लेकिन पंचायत चुनाव ने इन चुनावों को भी पीछे छोड़ दिया है। प्रत्याशी दिल खोलकर पैसे लूटा रहा है तो बिकने वाला वोटर डंके की चोट पर कह रहा है उसकी कीमत क्या है। यह सब रात के अंधेरे में नहीं, दिन के उजाले में हो रहा है। भारत की राजनीति ने शायद ऐसी मंडिया नहीं देखी होंगी और ऐसा बाजार भी नहीं देखा होगा, जहां नीलामी और बिकने का ऐसा उत्सव खुल्लमखुल्ला मनाया जा रहा हो। तमाम गांवों में घूमने व चुनाव को समझने के बाद कहा जा सकता है कि पंचायतों के चुनाव में पैसे का जो जहर घुला है, वह न सिर्फ पंचायती राज व्यवस्था को ही बर्बाद कर डालेगा बल्कि लोकतंत्रिक मूल्यों को भी नष्ट कर देगा।
प्रत्याशियों के लिए इस समय जात-पात से ऊपर वोटर भगवान बना बैठा है। लोकतंत्र के इस उत्सव में भक्त भगवान् को मानने के लिए हर जुगत भिड़ा रहे हैं। लेकिन गांव के वोटर रूपी भगवान भी प्रत्याशियों की खूब परीक्षा ले रहे हैं। भगवन को मनाने के लिए मुर्गा-दारू की दावतें दी जा रही हैं। कच्ची पक्की सब तरह की। ज्यादातर पंचायतों में दारू की नदियां बह रही हैं। यह हैसियत पर निर्भर है कि कौन देशी ठर्रा पिला रहा है और कौन विलायती। वोट की नगद कीमत तय की जा रही है। घर के सदस्यों के अनुसार पैसे भिजवाये जा रहे हैं, हलवाइयों के पौ बारह हैं। समाजसेवा, दयालुता व दरियादिली ऐसी की किसी गरीब के बेटा-बेटी के फटे जूते, कपड़े व स्वेटर देखकर प्रत्याशियों की आंखों से आंसू बह निकलते हैं। तुरंत ही साथ चल रहे समर्थकों को आदेश दे देते हैं कि जाओ स्वेटर लाकर दो आकर। गांव वालों की मजा है। मतदाताओं को इस बात की चिन्ता नहीं, कि जो पैसा बांट कर चुनाव जीतेंगे, वह पांच साल तक जमकर सरकारी पैसे की लूट भी करेंगे। प्रत्याशियों ने कच्ची-पक्की अंग्रेजी हर तरह की दारू की व्यवस्था कर रखी है। पुलिस प्रशासन के डंडे के बाद भी हजारों लीटर अवैध शराब पकड़ी जा रही है। गांवों में तो दारू को लेकर नारे भी बने हुए हैं. ‘कच्ची दारु कच्चा वोट, पक्की दारु पक्का वोट, इंग्लिश दारु सॉलिड वोट.’। यानी एक-एक प्रत्याशी 10 से 20 लाख खर्च कर प्रधानी कब्जाने की होड़ में है। यानी लोकतंत्र पैसातंत्र में बदल रहा है, जो खतरनाक है। हाल यह है कि कहीं-कहीं चुनाव प्रचार के दौरान बांटी गई शराब लोगों की जान ले ले रही है।
जहां तक विकास की बात है इस बार पंचायतों को तकनीकी सहायता के लिए ग्राम पंचायत रिसोर्स ग्रुप का गठन क्लस्टर स्तर पर किया जाएगा। 10 ग्राम पंचायतों के समूह को मिलाकर एक क्लस्टर बनाया जाएगा जो कि एक समन्वय इकाई की तरह कार्य करेगा। जिलाधिकारी द्वारा प्रत्येक क्लस्टर पर एक प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। ग्राम पंचायतों को पंचायतीराज और ग्राम्य विकास विकास से सचिव स्तर के दो कर्मचारी, 18 सफाई कर्मचारी तथा मनरेगा के तहत संविदा पर 10 कर्मचारी दिए जाएंगे। प्रति 12 ग्राम पंचायतों के क्लस्टर पर स्वास्थ्य विभाग के 12 एनएनएम, 12 आशाएं तथा आईसीडीएस की 24 महिलाएं एवं बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मदद करेंगी। यही नहीं ग्राम्य विकास विभाग से संविदा पर तकनीकी सहायक, पुशपालन विभाग से एक एलईओ तथा साक्षरता एवं वैयिक्तक शिक्षा विभाग से 12 साक्षरता प्रेरक दिए जाएंगे। स्वच्छ भारत मिशन पर 1533 करोड़, पंचायत भवन पर 20.53 करोड़, अंत्येष्टि स्थलों के विकास पर 100 करोड़, सीसी रोड व केसी ड्रेन नाली पर 450 करोड़, एसबीएम योजना के तहत प्रति ग्राम पंचायत प्रति वर्ष 15 लाख रुपए यानि 5 वर्ष में 75 लाख रुपए, चयनित ग्राम पंचायत भवन निर्माण के लिए 20.53 करोड़ रुपए यानि 5 साल में पूरे प्रदेश के लिए 102.65 करोड़ रुपए, 14 वें वित्त आयोग के तहत प्रति ग्राम पंचायत 6.54 लाख रुपए और 448 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष, राज्य वित्त आयोग से प्रति ग्राम पंचायतों को मिलेगा प्रति वर्ष औसतन 4.19 लाख रुपए, बीएचएसजी फंड के तहत प्रति ग्राम पंचायत को मिलेगा 10000 रुपए, मनरेगा से मिलेगा 438005.54 लाख रुपए मिलेगा।
(सुरेश गांधी)