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बिहार : ईसा मसीह की तुलना गोंद से ईसाई समुदाय के द्वारा उपदेशक की हो रही निन्दा

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पटना। किसी कागज आदि को गोंद से जोड़ा जाता है। इसी तरह ईसा मसीह हैं, जो संसार के लोगों को जोड़ने का कार्य करते हैं। पवित्र परमप्रसाद में उपस्थित ईसा मसीह को ग्रहण करके लोग एकमय हो जाते हैं। यह कथन कुर्जी पल्ली के सहायक पल्ली पुरोहित फादर सुशील साह का है। आगे फादर सुशील साह ने कहा कि पश्चिम चम्पारण जिले में है बेतिया। बिहार में आए भयंकर अकाल से बेतिया में रहने वाले लोग तबाह हो गए। तबाही के दंश झेलने वाले धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म अंगीकार कर लिए। अंग्रेजों के समय ईसाई पुरोहितों का बोलबाला था। अंग्रेजों ने पुरोहितों को जमींदार बना दिया। अंग्रेज पुरोहित लगान वसूली का कार्य किया करते थे। एक तो अकाल और द्वितीय लगान देने का बोझ से ईसाई धर्म अंगीकार करने वाले बढ़ई,बनिया,नाई आदि परेशान होने लगे। 

सन् 1874 में ईसाई समुदाय लगान का विरोध किएः 
पश्चिम चम्पारण में है बेतिया। धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने थे। पिछड़ी जाति के लोगों के पास जमीन थी। पेशेवर लघु किसान थे। उस समय जमींदार के रूप में पादरी थे। पादरी ही लगान वसूली किया करते थे। एक ओर भयंकर अकाल और दूसरी ओर लगान देने की मजबूरी से धर्मान्तरित ईसाई बेहाल हो गए। इन लघु किसानों ने निश्चय किया कि पटना धर्मप्रांत के पूर्व बिशप हार्टमन से मिलकर फरियाद करें। बैलगाड़ी की व्यवस्था किए और बेतिया से 200 किलोमीटर की दूरी तय करके पटनासिटी पहुंचे। बिशप हार्टमन के सामने लगान वापसी करने का अनुरोध किए। इस अनुरोध को बिशप हार्टमन ने अस्वीकार किए तब जाकर ईसाइयों ने कहा कि अगर लगान वापस नहीं करेंगे तो फिर से हिन्दू धर्म अंगीकार कर लेंगे। इस धमकी को बिशप ने बेतिया के जमींदार पादरी तक संदेश पहुंचा दिया। बेतिया के जमींदार पुरोहित ने साफ तोर पर कहा कि अगर आप लोग धर्म परित्याग करते हैं तब चर्च में रखे परमप्रसाद को लेकर चले जाएंगे। जब जमींदार पुरोहित परमप्रसाद लेकर जाने लगे तब ईसाई समुदाय ने चर्च के द्वार पर घुटना टेक कर गुहार लगाने लगे कि हमलोग धर्म परित्याग नहीं करेंगे। उपस्थित लोगों ने 141 साल पुरानी बात सुनी। फादर सुशील साह से पूछा गया तो उनका कहना है कि बेतिया के लोग कहते हैं। मगर यह सच्ची बात है। 

आप अखबार में प्रकाशित नहीं कर सकतेः फादर सुशील साह का कहना है कि आप इस बात को अखबार में नहीं डालेंगे। घर वापसी का मुद्दा बन जाएगा। तब पुरोहित को 141 साल की पुरानी बात को उपदेश में बोलना ही नहीं चाहिए। वह भी कहीं और सुनी बातों को हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों के सामने बोले। यहां पर उपस्थित लोग सुने और समझे भी। फिर अखबार में खबर नहीं प्रकाशित करने की बात कर रहे हैं? यह तो ईसाई समुदाय को जानना चाहिए कि उनके पूर्वज क्रांतिकारी थे। एकजूट होकर पुरोहितों के मनमाने का विरोध किए थे। वह आज के पुरोहित और सिस्टर कर रहे हैं। खुद फादर सुशील साह ही कर रहे है। दादागीरी कर रहे हैं कि मैंने आपको नहीं बुलाया है। उनको कहा गया कि आमत्रंण किया गया है। तब जाकर शांत हुए। हां, आज भी पूर्वजों के मार्ग पर चलने की जरूरत है। स्कूलों, काॅलेजों, प्रशिक्षण केन्द्र आदि में पुरोहित और सिस्टरे मनमौजी किया करते हैं। इन लोगों को सबक सीखाने की जरूरत है। बिहारियों के साथ अन्याय हो रहा है। 

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