Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 79262

एनजेएसी के स्थान पर नया विधेयक लाने से सरकार का फिलहाल इन्कार

$
0
0
government-refuse-on-judges-salary
नयी दिल्ली 07 दिसम्बर, सरकार ने उच्चतम न्यायालय द्वारा निरस्त किये गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून के स्थान पर नया विधेयक लाने से फिलहाल इन्कार करते हुए आज कहा कि संबंधित मामले में अंतिम फैसला आने के बाद ही इस बारे में कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा। विधि एवं न्याय मंत्री डी वी सदानंद गौड़ा ने लोकसभा में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्तें) संशोधन विधेयक, 2015 पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि भले ही उच्चतम न्यायालय ने एनजेएसी कानून और तत्संबंधी 99वां संविधान संशोधन कानून निरस्त कर दिया है, लेकिन कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार को लेकर उसी पीठ द्वारा सुनवाई की जा रही है। सदन ने ध्वनिमत से विधेयक पारित कर दिया। उन्होंने कहा कि जब तक संबंधित मामले का अंतिम फैसला नहीं आ जाता, नया विधेयक लाने के बारे में कोई अंतिम फैसला नहीं किया जा सकता। चर्चा में हिस्सा लेने वाले अधिकतर सदस्यों ने संसद की सर्वानुमति की अनदेखी करके एनजेएसी कानून निरस्त करने पर रोष जताया था और उसके स्थान पर नया विधेयक लाने की सरकार को सलाह दी थी। श्री गौड़ा ने न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता जताते हुए कहा कि सरकार इस बारे में विचार कर रही है और जल्द ही इस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक वेतन एवं सेवा शर्तों की दृष्टि से न्यायाधीशों के साथ लंबे समय से हो रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए लाया गया है। सेवा शर्तों को दुरुस्त करके ही न्यायपालिका में अच्छे न्यायाधीशों को आकर्षित किया जा सकेगा। 


श्री गौड़ा ने न्यायपालिका के प्रभाव में आकर अथवा न्यायाधीशों को लुभाने के लिए विधेयक लाने के विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 और 125 को ध्यान में रखकर न्यायाधीशों के वेतन एवं अन्य सेवा शर्तों में सुधार किया जा रहा है, ताकि उनके साथ भेदभाव न हो। देश के अन्य हिस्सों में उच्च न्यायालयों की पीठें स्थापित करने की मांग के संदर्भ में उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 130 के प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार स्वत: इस बारे में कोई निर्णय नहीं ले सकती, जब तक इसके लिए संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्य के मुख्यमंत्री की सहमति न हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य सरकार के मुख्यमंत्री और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने ऐसी कोई अनुशंसा नहीं की है। विधेयक में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन की ओर से तीन संशोधन दिये गए थे, लेकिन तीनों ही निरस्त हो गए। सदन ने ध्वनि मत से विधेयक पारित कर दिया। 

कांग्रेस के एम आई शानवाग ने हाल के दिनों में प्रचार पाने के लिए न्यायाधीशों द्वारा विवादास्पद टिप्पणी करने की बढ़ती घटनाओं का उल्लेख करते हुए इसे खतरनाक प्रवृत्ति करार दिया। भाजपा के पीपी चौधरी ने संघ लोक सेवा आयोग के प्रमुख और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की तरह ही न्यायाधीशों के सेवानिवृत्ति के बाद पुनर्नियोजन की नीति पर रोक लगाने की मांग की। जद यू के कौशलेन्द्र कुमार ने विधेयक का समर्थन किया। आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने निरस्त एनजेएसी कानून के स्थान पर नया कानून लाने की मांग की, जबकि भाजपा के हुकुमदेव नारायण यादव ने न्यायपालिका में दलितों और पिछड़ों को स्थान नहीं मिल पाने का मुद्दा उठाया। 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 79262

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>