नयी दिल्ली, 15 दिसंबर, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि देश से गरीबी मिटाने का एक ही तरीका है कि अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़े और जो जीएसटी जैसे सुधारवादी विधेयकों को रोक रहे हैं वे देश में गरीबी को बनाये रखना चाहते हैं। श्री जेटली ने लोकसभा में चालू वित्त वर्ष की अनुदान मांगों और 2012-13 की अतिरिक्त मांगों पर हुयी चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि 1991 के बाद देश की संसद ने कभी भी अर्थव्यवस्था में सुधारों से संबंधित विधेयकों को नहीं रोका है लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि जीएसटी जैसे विधेयकों के रास्ते में राेड़े अटकाये जा रहे हैं। जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे देश से गरीबी का उन्मूलन नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जीएसटी सभी दलों की सामूहिक बुद्धिमता का नतीजा था। दो-दो वित्त मंत्रियों ने उसे मंजूर किया था लेकिन अब इस पर शर्तें थोपी जा रही हैं। जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे देश का नुकसान कर रहे है। जीएसटी से देश की अर्थव्यवस्था में एक से डेढ़ प्रतिशत की तेजी आने का अनुमान है। अगर इसे लागू किया जाता है, बेहतर मॉनसून रहता है और दूसरे सेक्टरों में भी तेजी आती है तो अर्थव्यवस्था में आठ से नाै प्रतिशत की विकास दर का लक्ष्य संभव है।
श्री जेटली ने कहा कि दुनिया की अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। एक समय था जब 10-12 साल में संकट की स्थिति आती थी लेकिन आज कम समय में आ रही हैं क्योंकि हर देश की अर्थव्यवस्था दूसरे देश से जुड़ी है। अमेरिका में व्याज दर में बदलाव होता है या चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। इस स्थिति से निपटने के लिये जरूरी है कि हमारी घरेलू अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत हो कि वह ऐसे झटकों को सह सके। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की माने तो वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति मंद हो गयी है। पता नहीं यह स्थिति कब तक रहेगी। क्या एक-डेढ़ साल पहले कोई यह अनुमान लगा सकता था कि तेल की कीमतें क्या होंगी। दुनिया में तेल, उपभोक्ता वस्तुओं और खाद्यन्न की कीमतों में कमी आयी है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कुछ-कुछ सुधार हुआ है, यूरोप में मंदी है और रूस, ब्राजील और चीन में भी हालात ठीक नहीं हैं। हमारे लिये यह संतोष की बात है कि इस स्थिति में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत की विकास दर सबसे ज्यादा है।
श्री जेटली ने कहा कि दूसरे देशों में मंदी के कारण भारत का आयात और निर्यात घटा है। लगातार दो बार मॉनसून कम रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि अगले वर्ष इंद्रदेव हम पर उतने ही मेहरबान रहेंगे जितने पिछली सरकार पर थे। उन्होंने कहा कि देश में निजी निवेश कम हो रहा है और ऐसे में अर्थव्यवस्था की गति को बनाये रखने के लिए यह जरूरी है कि सरकारी निवेश और विदेशी निवेश बढ़े। निवेश नहीं आयेगा तो उद्योग धंधे नहीं लगेंगे, रोजगार पैदा नहीं होंगे, ढांचागत सुविधाओं का विकास नहीं होगा और राजस्व नहीं आयेगा। उन्होंने कहा कि दुनिया भारत को आज एक अवसर के रूप में देख रही है और यही वजह है कि पिछले वर्ष की तुलना में 40 प्रतिशत एफडीआई बढ़ा है। यह देश को तय करना है कि हमें निवेश लाने के लिए नीतियां बनानी हैं या उसे रोकने के लिए आंदोलन करना है।
सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बजट में कटौती के आरोप को खारिज करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। चौदहवें वित्त आयाेग की सिफारिशों के आधार पर केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दी गयी है। इससे राज्यों को एक लाख 59 करोड़ रुपये ज्यादा मिलेंगे। यह सही है कि कुछ केंद्रीय योजनाओं को राज्यों के हवाले किया गया है। नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों ने इस पर कुछ सिफारिशें की हैं जिन पर विचार किया जा रहा है। अधिक पैसा मिलने से राज्य भी गरीबी उन्मूलन और ढांचागत सुविधाओं पर अधिक खर्च कर सकेंगे। उन्होंने साथ ही कहा कि तेल के दामों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयी कमी से हुयी आय को व्यापक जनहित में खर्च किया जा रहा है। इसका कुछ हिस्सा उपभोक्ताओं को दिया जा रहा है और कुछ हिस्सा तेल कंपनियों दिया जा रहा है ताकि वे अपने नुकसान की भरपायी कर सकें और नयी पाइपलाइनें बनायें। पेट्रोल और डीजल पर लगाये गये उपकर से मिलने वाली राशि को देश में सड़कों और ग्रामीण सड़कों के विकास पर खर्च किया जा रहा है।