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फिल्म स्टारस और स्क्रीन टेस्ट का अनुभव

फिल्मों दस्तक देने के लिए हार कलाकार को स्क्रीन टेस्ट देना पडता है। यह कसौटी चुनौतीपूर्ण होती है,इस बात को सभी कलाकार मानते है। फिल्म पाने की लालसा और पहला स्क्रीन टेस्ट उसकी याद दिल में सदा के लिए ताजा रहती है। फिल्मी सितारों के लिए जितना महत्व पहली फिल्म का है, उससे भी ज्यादा रोमांचक उनके लिए पहला स्क्रीन टेस्ट होता है। भले ही वह थोड़े से वक्त के लिए ही होता है, लेकिन स्क्रीन टेस्ट की अहमियत हर फिल्मी सितारे के लिए कुछ खास हुआ करती है। यह, वो इम्तिहान होता है, जो सिनेमा के आकाश पर सितारों के चमकने के रास्ते बनाता है। भले ही वह आज के सबसे दिग्गज कलाकार अमिताभ बच्चन हो या स्मृति ईरानी, जितेंद्र हो या हेमामालिनी, या फिर हो माधुरी दीक्षित। 

कहा जाता है कि ये इतने मंजे हुए कलाकार हैं कि कैमरे और कैमरामैन उनको देखकर डरते हैं। लेकिन जब इन जैसे कई बड़े-बड़े सितारों ने पहली बार कैमरे का सामना किया, तो किसी के हाथ कांप रहे थे, तो किसी की सांसे फूल रही थीं। कोई किसी दोस्त का सहारा लेने को मजबूर था, तो किसी के मुंह से बोल ही नहीं फूट रहे थे। यह एक ऐसी कसक है, जो हर किसी के साथ जिंदगी भर का रिश्ता बनाए हुए हैं। 

सुनील दत्त और नर्गिस ने 1968 में जब उनको स्क्रीन टेस्ट के लिए मुंबई बुलाया तो उनकी सांसे फूल रही थी। वे कोई बहुत बेहतरीन मनोस्थिति में नहीं थे। भीतर ही भीतर डर सा था। उन्होंने स्क्रीन टेस्ट तो दिया। अमिताभ बच्चन आज भले ही दुनिया के बहुत बड़े कलाकार हैं। लेकिन मनमोहन देसाई की फिल्म के लिए यह स्क्रीन टेस्ट था, लेकिन अमिताभ रिजेक्ट हो गए। अमिताभ कहते हैं, वह बहुत बुरा स्क्रीन टेस्ट था। वे कहते हैं- इसे दुर्भाग्य ही समझिए या मेरा सौभाग्य कि किसी ने भी वो स्क्रीन टेस्ट नहीं देखा क्योंकि अगर देखा होता तो शायद मैं आज इस मुकाम पर नहीं होता।

वी. शांताराम ने ‘‘गीत गाया पत्थरों ने’ फिल्म बनाने की तैयारी की, तो उन्होंने जितेंद्र को चुना, लेकिन इसके लिए स्क्रीन टेस्ट जरूरी था। जितेंद्र के लिए स्क्रीन टेस्ट बहुत बड़ी समस्या थी। स्क्रीन टेस्ट कैसे दिया जाता है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। तो, उन्हें अपने दोस्त राजेश खन्ना की याद आई। राजेश खन्ना भी तब राजेश खन्ना नहीं थे। वे तब जतिन खन्ना थे और उनका भी फिल्मी करियर शुरू नहीं हुआ था। उन्होंने जितेंद्र को कुछ डायल्ॉाग दिये और रटने के लिए कहा। इसके बाद एक्टिंग की रिहर्सल कराई और जितेंद्र स्क्रीन टेस्ट में पास हो गए।

हेमामालिनी जहां भी जाती हैं, कई कई कैमरे उनका पीछा करते नहीं थकते हैं। लेकिन हेमामालिनी का स्क्रीन टेस्ट राज कपूर ने लिया था। वे कहती हैं कि आज मैं जो भी हूं, राज साहब की बदौलत हूं। मेरे स्क्रीन टेस्ट के बाद राज कपूर ने कहा था कि इस लड़की में बहुत प्रतिभा है। यह बहुत आगे जाएगी। राजकपूर ने मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया और मुझे काफी उत्साहित किया। 

ढेर सारी सुपर हिट फिल्म देनेवाली माधुरी दीक्षित को अपने पहले स्क्रीन टेस्ट का पल पल याद है। राजश्री प्रोडक्शंस ने 1984 में एक नई फिल्म ‘‘अबोध‘‘ शुरू करने की घोषणा की। माधुरी ने कहा, राजश्री ने एक नई फिल्म शुरू करने की घोषणा की और उन्होंने मेरा मासूम चेहरा देखा और मुझसे संपर्क किया। हालांकि माधुरी के परिजनों ने फिल्म के लिए मना किया था। क्योंकि वे उन्हें पढ़ाना चाहते थे। लेकिन राजश्री के कारण घर वाले तैयार हो गए तो स्क्रीन टेस्ट के लिए तैयारी हुई। माधुरी को अब भी याद है कि उन्हें हिंदी की किसी किताब की कुछ पंक्तियां पढ़ने के लिए कहा, तो वे डर रही थीं। कैमरे के सामने अकेले नाचने को कहा, तो वे एक पल को लिए थोड़ी और भी डर गई। लेकिन अगले ही पल सारी झिझक एक तरफ रखकर कैमरे से सामने उन्होंने जो नृत्य किया, उसकी बदौलत वह आज भी सिने जगत की धड़कन बनी हुई हैं।

शाहरुख खान 1991 में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आए और उनको पता चला कि बतौर निर्मा़त्री हेमा मालिनी को अपनी फिल्म ‘‘दिल आशना है‘‘ के लिए दिव्या भारती के अपोजिट एक नए चेहरे की तलाश थी। तो वह अपने दोस्तों की मदद से इस फिल्म के लिये स्क्रीन टेस्ट देने के लिए गए और चुन लिए गए। अजीज मिर्जा ने शाहरुख खान की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें अपने धारावाहिक ‘‘सर्कस‘‘ में काम करने का मौका दे दिया।

महिमा चैधरी बहुत बोल्ड किस्म की हीरोइन मानी जाती है। लेकिन ‘‘परदेस‘‘ फिल्म के लिए सुभाष घई से जब उनका पहले स्क्रीन टेस्ट पर सामना हुआ, तो वह कांप रही थी। महिमा बताती है कि कैसे, इससे भी पहले पेप्सी के एक विज्ञापन के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया था। लेकिन किसी फिल्म के लिए पहली बार कैमरे का सामने खड़े होते वक्त वे सहज नहीं थी। काफी लंबा स्क्रीन टेस्ट होने की वजह से मुझे लग रहा था कि मेरा पास होना मुश्किल है, लेकिन मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब मुझे बताया गया कि मैं उस स्क्रीन टेस्ट में पास हो गई हूं। 

तुषार कपूर भले ही होंगे जितेंद्र के बेटे, पर अपने एक्टिंग स्कूल के दिनों में देवदास व अंधा कानून जैसी फिल्मों के दृश्यों को कैमरे के सामने करते हुए वे बहुत नाटकीय हो गए थे। जब अपने शूट को उन्होंने देखा, तो वे खुद पर खूब हंसे थे। तुषार बताते हैं कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि मैं बहुत कुछ सीख गया और इसी कारण जब मेरी पहली फिल्म की बारी आई, तो ‘‘मुझे कुछ कहना है‘‘ के लिए वासु भगनानी और सतीश कौशिक ने मुझे सिर्फ बातचीत करके ही सलेक्ट कर लिया। 

अभिषेक बच्चन का पहला स्क्रीन टेस्ट बिपाशा बसु के साथ हुआ था। जिस फिल्म के लिए यह टेस्ट हुआ था, वह फिल्म तो आज तक नहीं बनी, लेकिन बिपाशा उनकी अच्छी दोस्त जरूर बन गई। अभिषेक कहते हैं, कैमरा उनके लिए नई बात नहीं था, सो कोई ज्यादा झिझक तो नहीं हुई, लेकिन पहला पहला स्क्रीन टेस्ट था, सो नर्वसनेस बहुत ज्यादा थी। लेकिन बिपाशा के साथ ने संभाल लिया।

स्मृति ईरानी आज देश की मानव संसाधन मंत्री हैं। कैमरे फेस करना अब उनकी आदत का हिस्सा है। एक नहीं सौ - सौ कैमरे उनके सामने टिके रहते हैं, फिर भी चेहरे पर भरपूर आत्मविास। लेकिन अपने पहले स्क्रीन टेस्ट को याद करते हुए आज भी उनके चेहरे के भाव बदल जाते हैं। वे कहते हैं, ‘‘मुझे आज भी याद है, जब मैं अपने पहले स्क्रीन टेस्ट के लिए एकता कपूर के घर गई तो, उस आलीशान बंगले में वहां मेरी प्रिया तेंदुलकर से मुलाकात हुई। उस वक्त मैं वास्तव में कांप रही थी क्योंकि वो मेरा पहला सीरियल का ऑडिशन था।

’शाहिद कपूर आज बहुत बड़े हीरो हैं। उनके पिता पंकज कपूर उनसे भी बड़े अदाकार और मां नीलिमा अजीम और भी बड़ी कलाकार। जन्म से ही माता पिता को कैमरे के सामने खड़ा देखा। लेकिन खुद के पहली बार कैमरा फेस करने की बारी आई, तो सांसे फूलने लगी थीं। शाहिद बताते हैं कि एक विज्ञापन के लिए अपने देस्त का स्क्रीन टेस्ट करवाने वे उसके साथ गए थे। ऐड एजेंसी के दफ्तर में वे दोस्त के बाहर आने इंतजार कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति ने उनके पास आकर कहा कि आप भी स्क्रीन टेस्ट दे दीजिए। पहला मौका था, जब स्क्रीन टेस्ट में पास हो गए तो, शाहिद हक्के बक्के रह गए। मगर, जब फिल्म की बारी आई, तो केन घोष ने इश्क-विश्क के लिए उनको स्क्रीन टेस्ट के बाद बच्चा बताकर रिजेक्ट कर दिया था। शाहिद को यह बात चोट कर गई। वे बताते हैं कि उसके बाद लगातार एक साल तक कड़ी मेहनत की और फिर से जब गया, तो वे मुझे ना नहीं कह सके। 

लारा दत्ता पहले से ही थियेटर में काम करती थी, सो फिल्म के लिए स्क्रीन टेस्ट का बुलावा आया, तो वे काफी उत्साहित थीं। लारा बताती हैं कि उन्होंने अपनी पहली फिल्म पाने के लिए पहले स्क्रीन टेस्ट के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित करके डांस, गीत, डायलग, भाव आदि पेश करने में खुद को डुबो दिया। स्क्रीन टेस्ट के बाद जब निर्देशक से पूछा कि कब संपर्क करूं, तो उन्होंने जवाब दिया कि आप संपर्क मत कीजिए, हम खुद आपसे संपर्क कर लेंगे। और उनका कोई फोन नहीं आया। वह बहुत निराश थी। लेकिन कुछ दिन बाद ही तमिल फिल्म ‘‘अरासाची‘‘ में काम मिल गया। 

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