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विशेष : प्रेम और करूणा का संदेश है पैगम्‍बर का इस्‍लाम { बारावफात पर आज विशेष }

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ईश्‍वरी दूत, इस्‍लाम के जनक, पवित्र कुरान के प्रेणता और मुसलमानों के नबी पैगम्‍बर हज़रत मोहम्‍मद का एक और जन्‍म दिन पूरी दुनियां मे मनाया जा रहा है।ये अवसर है उनसे प्रेरणा लेने का, सबक लेने का, और समूचे विश्‍य मे शान्‍ति वा अमन का वह पैगाम देने का जिसके लिये उन्‍होने खुद को समर्पित किया । दरअसल मोहम्मद का अर्थ होता है जिसकी अत्यंत प्रशंसा की गयी हो ।रेतिले अरब रेगिस्तान मे जन्म लेने वाले मोहम्‍मद ने इस सूने
रेगिस्तान से एक नये संसार का र्निमाण किया, एक नए जीवन दर्शन का , एक नई संस्कृति और एक नई सभ्यता की बुनियाद डाली ।इस्लाम के सबसे महान नबी और आखिरी संदेशवाहक मोहम्मद के ज़रिये ही ईश्वर ने इस संसार को पवित्र कुरान दिया ।ऐतिहासिक दस्‍तावेंजों के मुताबिकक उन्हें ये ईश्वरी संदेश मक्का की पहाडि़यों पर जिब्राइल नाम के फरिश्‍ते के ज़रिए हासिल हुआ । आपके संदेशों ने तीनों महादूीपों एशिया ,अफ्रीका और यूरोप के जीवन वा विचार पर अपना अभूतपूर्व प्रभाव डाला ।उनहोने अपने जीवन मे प्रेम , करूणा , आत्मसंयम , अनुशासन, क्षमादान , मूल्यों  का सम्मान और समानता का जीवंत प्रमाण दिया ।पूरी चौदह सदियां और चार दशक बीत जाने के बाद भी उनके संदेश आज भी इंसान के लिए प्रेरणा हें ।है।मोहम्मद वह है जिन्होने हमेशा सच बोला, सच और इंसानियत का साथ दिया । ।यूं तो सभी बड़े धर्मों ने एक ही तरह के सिध्दांत का प्रचार किया है।लेकिन इस्लाम के पैगम्बर ने मानवता के सामाजिक उत्थान के लिए भाईचारे और मानव समानता के सिद्धांत को अमल मे लाकर व्यवहारिक रूप मे इंसान के सामने पेश किया है ।
                         
मोहम्मद स.स. ने जो भी संदेश दिया उसको अमल करके खुद पहले दिखाया भी था।इसी लिए दुनियां भर के समाज सुधारक आज भी उन्हें  अपना आदर्श मानतें है।महात्मा  गांधी से लेकर प्रोफेसर हर्गरोंज , जार्ज बर्नाड शॅा ,सरोजनी नायडू और जर्मन कवि गोयटे तकने साफ तौर पर कहा है कि मोहममद इस्लाम के पैगम्बंर ज़रूर थे लेकिन उनके सिध्दांत सभी धर्मों और सभी युगों के लिए आदर्श रहेंगें ।इस आधुनिक और वैज्ञानिक युग मे भी आज सामाजिक गैर बराबरी वा गोरे - काले को लेकर विवाद होता रहता है ।रंग भेद के खिलाफ खड़े होने  पर दक्ष्णि अफ्रीकी नेता नेल्सन मंडेला का नाम भारत सहित संसार के दूसरे देशों मे बड़े आदर के साथ लिया जाता है।लेकिन मोहम्मद नाम के ईशदूत ने सदियों पहले रंग भेद के खिलाफ ना केवल मुहिम शरू की थी वरन इसको अमल मे भी ला कर दिखाया ।इस्लाम के आरम्भिक काल से लेकर आज तक नमाज़ के लिए अज़ान देना सम्मानित सेवा समझी जाती है।मुस्लिम इतिहासकारों का मत है कि मोहम्मद साहब ने मक्का विजय के बाद हज़रत बिलाल को अज़ान देने का हुक्म दिया था।ये सभी जानते हैं कि हज़रत बिलाल काले नीग्रो थे फिर भी उनको ये आदर दिया ।वह पवित्र कुरान की आयतों का हवाला देकर कहा करते थे कि ईश्व़र ने तुमको एक मर्द और औरत से पैदा किया और तुम्हा्री विभिन्ना जातियां वा वंश बनाये ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो। वह कहा करते थे कि अल्लाह की नज़र मे राजा और रंक सब एक समान हैं।वैसे उनकी इस बात को सरोजनी नायडू के इन शब्दो  मे आसानी से समझा जा सकताहै।वह कहती हैं कि पैगम्बर मोहम्मद ने असल मे लोकतंत्र की शिक्षा दी और उसे व्यवहारिक रूप भी दिया ।वह कहती है कि जब मस्जिदों से अज़ान दी जाती है और इबादत करने वाले नमाज़ के लिए एकत्र हो कर एक लाइन मे खड़े होतें हैं तो असल लोकतंत्र दिखता है।इस लाइन मे अमीर वा ग़रीब के बीच कोई विभेद नही होता है।इबादतगाहों मे ऐसा जनतंत्र दिन मे पांच बार देखने को मिलता है।महत्मा गांधी ने कहा था कि मोहम्मद के इसी प्रकार के संदेशों ने संसार को भाईचारे की इंजील पढ़ाई है।हर साल हज के मौके पर भी समानता और बराबरी की ऐसी ही मिसालें देखने को मिलती हें।हज के मौके पर यूरोपवासी ही नही, अमरीकी,अफ्ररीकी,फारसी,जापानी,चीनी और भारतीय एक ही परिवार के सदस्य के रूप मे एकत्र होतें है।सब का लिबास एक जैसा होता है और सभी दो सफेद चादरों मे होते हैं,दिखावे वा आडम्बर का कोई स्थारन नही होता है।संसार मे महिलाओं को हक तब मिला जब उनके अधिकारों को कानूनी जामा पहनाया गया ।लेकिन आखिरी नबी ने 14 सौ साल पहले ही औरतों को सम्पत्ती मे अधिकार देने का एलान कर दिया था।
                      
इस आधार पर कहा जा सकता है कि मोहम्मद धर्मिक क्षेत्र की महान शक्सियतों मे सबसे ज़यादा सफल हुए ।571 ई. से लेकर 632 ई. तक का उनका पूरा जीवन मानव सेवा ,उसका उत्थान , उसकी आत्मा  को विकसित करना, उसे शिक्षित करना यानी इंसान को मुकम्मल इंसान बनाना ही उनके जीवन का मिशन था ।कई जगह उन्‍होने प्रकृति के सूक्ष्‍म निरीक्षण की भी वकालत की है।प्रकृति की हर संरचना चाहे वह सुडौल हो या बेडौल सब के लिये मोहम्‍मद साहब ने इंसान को कुछ न कुछ जरूर दिया है ।दुनियां आज पेड़ पौधें ,जल संरक्षण और बिगड़ते पर्यावरण पर मंथन कर भविष्‍य के लिये चिंता जता रही है ।लेकिन पैगम्‍बर ये बहुत पहले बता गये हैं कि पेड़ – पौधों का लालन पालन करना पुण्‍य का काम है ।इसी लिये वह ये भी बता गयें हैं कि इर्श्‍वर अपनी दी हुयी हर चीज का हिसाब भी लेगा । यूं तो मोहम्मैद स.स. के जीवन की शुरूआत यतीम बच्चे के रूप मे होती है , फिर हम आपको एक सताए हुए शरणार्थी के रूप में पाते हैं और आख़िर में हम यह देखते हैं कि आप एक पूरी क़ौम के दुनियावी और रूहानी पेशवा और उसकी क़िस्मत के मालिक हो गए हैं।आखरी नबी के जीवन दर्शन की पड़ताल करने पर ये बात सामने आती है कि इस्‍लाम धर्म केवल पूजा पाठ  की वकालत नही करता वरन देश ,समाज और इंसान के लिए समर्पित होना धर्म का दूसरा नाम है।अकारण खून खराबा ,बेगुनाहों का कत्लं करना ,किसी को उजाड़ना और किसी की सम्‍पत्‍ती हड़पने की इजाज़त धर्म नही देता है।देश ,समाज और मानवता के लिए समर्पित होना भी एक तरह की इबादत है।मोहम्‍मद स.स. ने वत न परस्‍ती को अहम इबादत की संज्ञा दी है।
                                
इसके बावजूद भी आज पूरी दुनिया में इस्लाम एक अलग तरह की अपनी गलत छवि से जूझ रहा है।जिस इस्‍लाम की बुनियाद अहिंसा और सदकर्म पर टिकी है उसी इस्लाम और मुसलमानों के प्रति एक धारणा बन गई है कि वे हिंसा और आतंकवाद में यकीन रखते हैं। सहिष्णुता और सद्भाव में उनका कोई यकीन नहीं। सीरिया और इराक में जिस तरह से आइएस के लड़ाके इंसानियत पर कहर ढा रहे हैं, वह इस्लाम और उसके पैगम्बर मोहम्मद साहब की तालीम तो नहीं है । बल्कि उनकी शिक्षाओं के खिलाफ है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जिहाद के नाम पर जो कुछ चल रहा है, इस्लाम की नजर से क्या उसे सही ठहराया जा सकता है? कुछ आतंकवादी संगठनों की गैर-इंसानी हरकतों से आज पूरा मुसलिम जगत शक के दायरे में है। इससे गैर-मुसलिम समाजों में मुसलमानों के प्रति संदेह और कुछ हद तक नफरत भी पनप रही है। जाहिर है इसका फायदा उठा कर दुनिया भर में एक तबका मुसलमानों की आक्रामक और बर्बर छवि पेश कर रहा है।इसके उलट इस्लाम धर्म और पैगम्बर मोहम्मद का सन्देश बिल्कुल स्पष्ट है कि आतंकवाद सभी प्रकार की हत्याओं से बड़ा अपराध है। पवित्र कुरान के अनुसार किसी की हत्या संपूर्ण मानवता की हत्या के समान है और किसी के जीवन की रक्षा संपूर्ण मानवता की रक्षा के बराबर है।सातवीं शताब्दी में इस्लाम आधुनिकता में सबसे आगे था और यह सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता, लैंगिक समानता और जनतांत्रिक राजनीति पर आधारित था।दरअसल इस्लाम धर्म ने तो कई शताब्दियों तक विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में शान्ति और स्थिरता स्थापित की।ये सिद्धांत अभी भी बचे हुए हैं, इन्हें और मजबूत और प्रभावशाली बनाने की जरुरत है जिससे अपने स्वार्थ के लिए धर्म का दुरुपयोग करने वाले तत्वों को पराजित और अलग थलग किया जा सके। कुछ भ्रमित और स्वार्थी तत्वों की गतिविधियों के चलते इस्लाम के दया, एकता, शान्ति, भाईचारे के सन्देश को नुकसान पहुंच रहा है ।सदियों से पैगम्‍बर मोहम्‍मद के आदर्श और पवित्र कुरान के संदेश हमारे सामने है फिर भी जश्‍न या खिराजे अकिदत पेश कर के ये सिलसिला चलता चला आ रहा है ।जब अमल की बात आती है तो वह दूसरे तरीके से दुनियां के सामने आता है ।लेकिन यहां ये कहा जा सकता है कि हमारे देश की ज्यादातर मुसलिम आबादी, कट्टरपंथी प्रवृत्तियों से हमेशा दूर रही है। वह आसानी से किसी के बहकावे में भी नहीं आती है।मजबूत सांस्कृतिक एकता, जीवंत और सुदृढ़ प्रजातंत्र के कारण भारत में आतंकवाद अपनी जड़ें गहरी नहीं जमा पाया है।जुल्‍म के खिलाफ आवाज़ बुलंद करना और मानव कल्‍याण के लिये आगे आना ही सच्‍चा धर्म है ।

                          




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*शाहिद नकवी *

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