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रिटायर्ड अधिकारी का सियाचीन ऑपरेशन पर खुलासा

सियाचीन ग्लेशियर को पाकिस्तान के नापाक इरादों से बचाने के लिए ढ़ाई दशक पहले चलाए गए अप्रैल 1984 के ऑपरेशन मेघदूत के दौरान उस सैन्य अभियान की अगवाई करने वालों में शामिल सेना के एक अवकाश प्राप्त अधिकारी ने खुलासा किया है कि देश के राजनीतिक नेतृत्व ने उनके कदम एक खास जगह पर जाकर रोक दिए थे, जिसकी वजह से समस्या का नासूर बना रह गया।

अवकाश प्राप्त ब्रिगेडियर विजय चन्ना ने सियाचीन मसले पर सामने आने जा रही एक पुस्तक में कहा है कि अगर उस समय भारतीय सैनिकों के कदम ग्लेशियर की क्रेस्ट लाइन पर नहीं रोक दिए गए होते, तो वे उसे पार कर उस इलाके तक पर भी तिरंगा फहरा सकते थे, जहां बाद में पाकिस्तानी सैनिक आ बैठे। जाने-माने रक्षा संवाददाता नितिन गोखले ने अपनी पुस्तक सियाचीनः बियोंड एनजे 9842 में उस समय के राजनीतिक नेतृत्व के इस फैसले को सैन्य अधिकारियों के हवाले से उजागर किया है।

ऑपरेशन मेघदूत के तीस साल पूरे होने के अवसर इस पुस्तक का लोकार्पण होगा। पुस्तक के मुख्य अंशों के अनुसार ब्रिगेडियर चन्ना ने बताया कि हमें क्रेस्ट लाइन को पार कर दूसरी ओर नीचे उतरने की अनुमति नहीं दी गई। हमें एक बार उधर जाकर सदा के लिए यह अध्याय बंद कर देना चाहिए था। अगर हमें ग्यारी तक जाकर अपने पावं जमाने की छूट दे दी गई होती तो हमें ग्लेशियर पर कब्जा जमाए रखने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि हम वहां तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद कर चुके होते।

सियाचीन के उस रेखा को पार कर नीचे नहीं उतर पाने का सैन्य अधिकारियों को आज तक अफसोस है। ब्रिगेडियर चन्ना ने कहा कि निर्णय हड़बड़ी में नहीं लिए जा रहे थे। ऑपरेशन मेघदूत का फैसला बहुत सोच समझकर लिया गया था। प्रधानमंत्री तक उस समय शामिल थे। पर मेरा अफसोस बस इतना है कि हमे आगे नहीं जाने दिया गया। अवकाश ग्रहण करने के बाद नई दिल्ली की ग्रेटर कैलाश कालोनी में जीवन बिता रहे ब्रिगेडियर चन्ना ने कहा कि मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने आगे जाने पर जोर दिया था, हालांकि मैं इस पूरे खेल में बहुत अदना था। अगर हम आगे बढ़ गए होते तो आज जो नौबत पैदा हुई वह ना आती, लेकिन बेशक ये तो बड़े राजनीतिक फैसले थे।

ब्रिगेडियर विजय चन्ना गार्डस ऑफिसर रहे हैं और उनकी ख्याति साहसी और गैर परंपरागत रणनीतिकार के तौर पर रही है। ऑपेरशन मेघदूत के समय वह जिस यूनिट की अगवाई कर रहे थे वह तुरतुक में तैनात थी। ब्रिगेडियर ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की पुस्तक की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि मुशर्रफ ने खुद उसमें कहा है कि भारत ने हमारा इरादा भांप लिया था। इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तानी सेना उन दर्रे पर कब्जा करने की तैयारी कर रही थी। उन्होंने कहा कि मुझे पता है कि हम जब बर्फ से लड़ने वाले कपड़े खरीदने के लिए विदेश गए थे तो पाकिस्तानी सेना पहले से यह काम कर रही थी। वे पहले ही स्नो सूट खरीद चुके थे।

ब्रिगेडियर चन्ना ने कहा कि सियाचीन यह सुनिश्चित करता है कि पाकिस्तान और चीन हमारे सिर पर आपस में नहीं मिल पाएं। इतना ही नहीं सियाचीन से यह भी सुनिश्चित होता है पाकिस्तान अकेला भी लद्दाख की नुब्रा घाटी में भारत के लिए समस्या पैदा न कर सके। जम्मू-कश्मीर के मानचित्र की ओर इशारा करते हुए सैन्य अधिकारी ने कहा कि सियाचीन को देखो, इसके बाद कराकोरम दर्रे और दौलब बेग औल्दी के इलाके को देखो। पाकिस्तान शांगशाम घाटी पहले ही चीन को दे चुका है। आप दुश्मनों को अपने को घेरने का मौका कैसे दे सकते थे।

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