सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सहारा समूह द्वारा निवेशकों को किश्तों में बकाए का भुगतान करने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। सहारा समूह ने न्यायालय के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था कि वह बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को हर तीन महीने पर 2,500 करोड़ रुपये की किश्त का भुगतान करेगा और इस प्रकार पूरी बकाया राशि जुलाई 2015 तक चुका देगा। अदालत ने कहा, "आपको ऐसा प्रस्ताव लाना चाहिए, जो स्वीकार करने योग्य और सम्मानजनक हो। यह सम्मानजनक प्रस्ताव नहीं है।"
सहारा समूह ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि वह बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को हर तीन महीने पर 2,500 करोड़ रुपये की किश्त का भुगतान करेगा और इस प्रकार पूरी बकाया राशि जुलाई 2015 तक चुका देगा। न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन की पीठ को समूह ने कहा कि उसके खातों के संचालन पर लगी रोक को हटाने के बाद तीन दिन के अंदर पहली किश्त जमा कर दी जाएगी।
समूह ने न्यायालय से यह भी कहा कि उसे संपत्तियों के मालिकाना हक वाले वे कागजात भी वापस किए जा सकते हैं, जो उसने सेबी के पास जमा किए हैं। वरिष्ठ वकील सी.ए. सुंदरम ने अदालत से कहा कि इन संपत्तियों की बिक्री से होने वाली आय को सेबी को बकाए का भुगतान करने के लिए रखा जाएगा। सेबी के वकील ने हालांकि कहा कि ब्याज जोड़ने के बाद समूह पर कुल बकाए की राशि 37 हजार करोड़ रुपये हो जाती है। प्रस्ताव सुनने के बाद न्यायमूर्ति राधाकृष्णन ने कहा कि उनके और न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर की नियमित पीठ शुक्रवार को ही दोपहर में प्रस्ताव पर विचार करेगी।