निशंक के पक्ष में बाजी को पलटाने में बाबा रामदेव की मुख्य भूमिका
देहरादून, 16 मार्च । योग गुरु बाबा रामदेव ने वीटो लगाकर आखिरी समय में हरिद्वार की बाजी को पलटने में मुख्य भूमिका अदा की ऐसा भाजपा के सूत्रों का कहना है. निशंक के लिए बाबा के अडियल रुख के सामने पार्टी दंभ नहीं भर सकी और मदन कौशिक के हाथ से जीती हुई बाघ्ी निकल गयी । उधर, भाजपा की राजनीति में जनरल व भगतदा का बड़ा कद एक बार फिर सामने आया। टिहरी से सीटिंग एमपी होने का लाभ महारानी को मिला तो अल्मोड़ा से अजय टम्टा एक बार फिर प्रभावशाली लॉबी पर भारी पड़े।लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह बात उठ रही है कि क्या मदन कौशिक श्श्निशंकश्श् के लिए उतनी ही ईमानदारी से काम करेंगे जितना कि वो अपने लिए करते. गौरतलब हो कि बिहार की पाटलीपुत्र लोकसभा सीट से अपने चेले के बजाय राजद से आए रामकृपाल को टिकट दिए जाने से बाबा रामदेव काफी खफा थे और इस पर उन्होंने नाराजगी जाहिर भी भाजपा आलाकमान को दर्ज करा दी थी। वहीँ संसदीय समिति की बैठक में जब शनिवार को हरिद्वार का नंबर आया तो बाबा ने साफ और तीखे तेवर अपनाते हुए भाजपा आलाकमान को कहा कि यदि निशंक को टिकट नहीं मिला तो उनकी नाराजगी और बढ़ेगी और उनको भाजपा के लिए काम करने के लिए सोचना होगा बस बाबा की घुघ्की का असर यह हुआ कि आखिर समय तक दौड़ में आगे चल रहे मदन कौशिक बाबा के वीटो के चलते पीछे हो गए जबकि सुषमा स्वराज आखिरी दम तक मदन के लिए लडती रही लेकिन बाबा की जिद के आगे बाद में उनको भी नतमस्तक होना पघ। उधर, निशंक ने भी तर्क दिया कि यदि दो अन्य पूर्व सीएम (खंडूड़ी व कोश्यारी) चुनाव लड़े और उन्हें (निशंक) टिकट नहीं दिया तो विपक्ष द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के तमाम आरोपो को बल मिलेगा । सबसे चैकाने वाली बात तो यह रही कि कौशिक समर्थकों ने काफी लॉबिंग टिकट पाने के लिए पहाघ् बनाम मैदान तक का कार्ड खेला उनके समर्थकों ने यहाँ तक दलील दी कि कम से कम एक सीट पर तो किसी मैदानी क्षेत्र के नेता को टिकट मिलना ही चाहिए। लेकिन उनकी इस दलील को पार्टी आलाकमान ने एक सिरे से घरिज कर दी, वहीँ निशंक को बाबाओं से नजदीकियों का पूरा लाभ मिला और बाबा रामदेव के साथ कांग्रेस से जुड़े साधुसंतों ने भी उनकी जोरदार पैरवी की। उधर, पौड़ी संसदीय सीट से जनरल बीसी खंडूड़ी ने एक बार फिर साबित किया कि उम्रदराज होना और राजनीति करना बिल्कुल अलग बात है। लाख विरोध के बावजूद खामोश रहे जनरल एक बार फिर मोर्चे पर आ डटे। इसमें उनकी साफ सुथरी छवि का भी बड़ा योगदान रहा। एक बार ज्यादा उम्र वालों को राज्यसभा भेजने की वकालत करने वाले बीसी खंडूड़ी अब लगभग दस साल बाद लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। वहीँ तमाम दिग्गजों द्वारा भगत सिंह कोश्यारी की राह रोकने की कोशिश की लेकिन कोश्यारी की स्पस्ट बोलने की छवि और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के नजदीकी होने का फायदा उन्हें मिला। उधर, अल्मोड़ा से अजय टम्टा अपनी सादगी के चलते एक बार फिर प्रभावशाली लॉबी पर भारी पड़े। उनके पक्ष में स्थानीय संगठन, विधायक आदि सभी ने खूब जोर लगाया था। हालांकि केंद्र में बैठे कुछ नेता रेखा आर्य को टिकट दिलाने में लगे थे। टिहरी से महारानी को एकमात्र फायदा सीटिंग एमपी होने का मिला। हालांकि मुन्ना सिंह चैहान ने भी जोर लगाया था लेकिन उनको कामयाबी हासिल नहीं हुई।