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बिहार : ठोकर खाने को मजबूर लोग

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पटना। आम लोग सरकारी योजनाओं से झेड़झाड़ करना नहीं चाहते हैं। वह भी जब सार्वजनिक स्थल पर सरकारी योजनाओं से निर्मित किया गया हो। अगर कोई झेड़छाड़ करता है। तो जेल जाने की भी नौबत आ सकती है। यह खौफ पटना जिले के नासरीगंज बिस्कुट फैक्ट्री मोड़ पर निकले छड़ और जहानाबाद जिले के सेवनन मुसहरी में देखने को मिला। यहां के लोगों का कहना है कि यह कार्य राज्य सरकार और उनके कर्मचारियों का है। वे ही लोग अधिकृत व्यक्ति हैं। वे ही लोग लोगों को गिरने देने और गिरने वालों को रोकने में सहायता करने वाले हैं।

नासरीगंज बिस्कुट फैक्ट्री मोड़ः पटना जिले में नासरीगंज बिस्कुट फैक्ट्री मोड़ है। यह क्षेत्र  दानापुर प्रखंड में पड़ता है। झारखंड विधान सभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के जौर्ज जोसेफ गोलस्टेन मनोनीत सदस्य हैं। इनका दोमनिक सावियों स्कूल हैं। नासरीगंज बिस्कुट फैक्ट्री मोड़ पर निकले छड़ से  लोग परेशान हैं। सामान्य लोग पैदल ही आवाजाही किया करते हैं। सावधानी हटी और निकले छड़ में पैर फंसने के बाद सामान्य लोग औंधे मुंह गिर जाते हैं। चोट लगने के बाद हाथ-पैर झटकाकर चलते बनते हैं। देखने वाले हंसते और गिर गए लोग पर हंसने लगते हैं। कई साल से गिरने और उठने का सिलसिला जारी है।

जेल जाने के सवार हो जाने का भयः मजे की बात है कि आम लोग छड़ की चपेट में आकर ठोकर खाते हैं मगर सबक नहीं लेते हैं। किसी भी व्यक्ति के पास साहस नहीं है जो निकले छड़ को काटकर हटा दें। साफ तौर पर कहते हैं कि अगर छड़ को काटकर हटाने का प्रयास किया गया तो पुलिस केस हो सकता है। सरकारी संपति को हड़पने का आरोप लगाकर जेल भेजा जा सकता है। आपस में मारपीट भी हो सकता है। बेहतर हैं कि लोग आंख खोलकर चले। अब लोग अभ्यस्त हो गए हैं। अनजान लोग ही फंसकर गिरते हैं। ऐसा होने पर हंसने का मौका मिल जाता है। तनाव के समय हंस लिया जाता है। नाला के ऊपर ढलायी किया गया है। घटिया ढलायी करने से छड़ बाहर निकल आया है।

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सरकार के द्वारा निर्मित चापाकल बेकारः जहानाबाद जिले के सेवनन ग्राम पंचायत में सेवनन मुसहरी में सरकार के द्वारा चापाकल लगाया गया है। कुछ दिन चला और खराब हो गया। बस खराब ही होकर रह गया। लोगों के द्वारा मरम्मती नहीं किया गया। सरकार के ही ऊपर निर्भर रह गए। इसके कारण यह हाल हो गया है।

गांव में तीन तरह का कार्य किया जाता : गांव में तीन तरह का कार्य किया जाता है। वह सिस्टम ही खत्म हो गये है। गांवघर में सरकार के द्वारा, संस्था के द्वारा और जनता के द्वारा कार्य किया जाता है। सरकार के द्वारा कार्य किया गया। संस्था और जनता के द्वारा कार्य नहीं किया जा रहा है। संस्था के लोग जनता को जन कार्य करने के लिए प्रोत्साहन करना बंद कर दिए है। उनको सही मार्ग दर्शन नहीं मिलने के कारण गांवघर में श्रमदान बंद हो गया है। गांवघर में सामूहिक चंदा करके बिगड़े कार्य को पटरी पर लाने का प्रयास नहीं हो रहा है। अगर ऐसा हो जाए तो सरकारी कार्य को दीर्घकाल तक चलाया जा सकता है।





आलोक कुमार
बिहार 

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