- आज भी लोगों के जेहन में है पूर्व दस्यु संुदरी व वीरेन्द्र सिंह मस्त का रोचक मुकाबला
- जुर्म-ज्यादीति के खिलाफ संघर्ष व उनकी हत्या का खूनी मंजर लोगों के आंखों के सामने बरबस ही नाचने लगा है
भदोही। जब-जब देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए अपना जनप्रतिनिधि चुनने का मौका आता है, लोगों के जेहन में बीहड़ की पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी का जिक्र करना भदोही के लोग नहीं भूलते। आज वह भले ही इस दुनिया जहान में नहीं है, लेकिन उनकी जुर्म-ज्यादिती के खिलाफ संघर्ष व उनकी हत्या का खूनी मंजर लोगों के आंखों के सामने बरबस ही नाचने लगा है। खास बात तो यह है कि आजादी के 44 साल बाद वर्ष 1996 में पहली बार भदोही के मतदाताओं ने महिला सांसद फूलन को जीताया था। उन्हें दो बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला, तो दो बार हार का भी स्वाद चखना पड़ा।
16वीं लोकसभा चुनाव में फिर वहीं मुकाबला होने जा रहा है, फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार जुर्म व ज्यादीति की शिकार फूलन नहीं बल्कि उनकी जगह सपा के बाहुबलि विधायक विजय मिश्रा की बेटी सीमा मिश्रा है। श्रीमती मिश्रा का मुकाबला फूलन को कड़ी टक्कर देने वाले भाजपा के पूर्व सांसद वीरेन्द्र सिंह मस्त से है। इस बार भी श्री सिंह वही पुराने नारे पिस्तौल, पैसे व दहशत की राजनीति खत्म करने के साथ चुनाव मैदान में है। बाजी किसके हाथ लगेगी, जनता जुर्म व ज्यादिती करने वालों के साथ खड़ी होती है या दलितों की रहनुमाई करने वाले व पूर्व छात्र नेता राकेशधर त्रिपाठी या देशभर में स्वदेशी विचारधारा की अलख जगाने वाले वीरेन्द्र सिंह मस्त या कांग्रेस के सरताज इमाम को दिल्ली भेजती है, यह तो 16 मई को पता चलेगा। लेकिन भदोही लोकसभा एकबार फिर सुर्खियों में है।
10 अगस्त 1963 को जालौन के बेहमई में मल्लाह परिवार में जन्मी फूलन 12 साल के उम्र में ही किडनैप व सामूहिक बलात्कार की शिकार होने के बाद बीहड़ की दस्यु सुंदरी बन गयी। इस दौरान तमाम झंझावतों के बीच बदला लेने की गरज से उन्होंने अपनी प्रताड़ना में शामिल 22 क्षत्रियों की सामूहिक हत्या कर देश ही नहीं विश्वभर में मसहूर हो गयी। 11 सालों तक जेल में रहने के बाद वह सियासत में अपना कदम रखी। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर मिर्जापुर-भदोही संसदीय सीट पर चुनाव लड़ी। उनका मुकाबला वर्ष 1991 में जीते भाजपा सांसद वीरेन्द्र सिंह मस्त से हुआ। फूलन के यहां से चुनाव लड़ने से यह क्षेत्र सुर्खियों में आ गया। देशभर के मीडिया व राजनीतिक गलियारों में प्रतिष्ठा का सीट बन गया था। काफी घमासान के बाद अंततः फूलन देवी मस्त को हराकर संसद पहुंच गई। दो साल बाद फिर 1998 में हुए चुनाव में मस्त जीत गए, फूलन हार गयी। लेकिन सालभर बाद 1999 के चुनाव में पुनः बाजी फूलन के हाथ लगी। हार-जीत का अंतर काफी कम था। प्रत्याशी एक-दुसरे पर भारी पड़ रहे थे। इस चुनाव परिणाम ने दिखा दिया कि 16 लाख से भी अधिक मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में एक-एक मत बहुत महत्व रखता है।
25 जुलाई 2001 को सांसद फूलन की नृशंस हत्या हो गई। वर्ष 2002 के उपचुनाव में सपा से रामरति बिन्द निर्वाचित हुए। परिसीमन में मिर्जापुर से अलग होने के बाद वर्ष 2009 के 15वीं लोकसभा चुनाव में बसपा से गोरखनाथ पांडेय जीत गए। इस चुनाव में एक बार फिर पूर्व सांसद वीरेन्द्र सिंह मैदान में है। इस बार उनका मुकाबला सपा के बाहुबलि विधायक विजय मिश्रा की बेटी सीमा से है। इस संसदीय क्षे़त्र में बाहुबलि विधायक के काले कारनामों, बालू खनन, लोगों पर फर्जी मुकदमें कराकर दहशत फैलाने, कालीन निर्यातकों व बायर एजेंटों व पत्रकारों का पुलिसया उत्पीड़न, गृहस्थी लूटने के मामले में जनप्रतिनिधियों की चुप्पी व सड़कों के निर्माण व योजनाओं में धांधली आदि चुनावी मुद्दे फिजा में तैर रहे है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच चुनावी सरगरमी बढ़ गयी है। उंट किस करवट बैठेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
सुरेश गांधी
भदोही