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विशेष : सुधार की बाट जोहती प्राथमिक शिक्षा

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पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नितीष कुमार ने पटना के गांधी मैदान में एजूकेषन प्रोजैक्ट के ज़रिए दो दिवसीय समारोह ‘‘तरंग’’ के समापन में रिमोट कंट्र¨ल द्वारा राज्य में 560 माध्यमिक विद्यालय के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया। इस मौके पर गांधी मैदान में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के सभी विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण षिक्षा मुहैया करायी जाएगी। सरकारी विद्यालयों का ऐसा माहौल बनेगा कि लोग अपने बच्चों को यहीं पढ़ाना पसंद करेंगे। 12 वीं तक लड़कियां पढ़ लेंगी तो जनसंख्या पर नियंत्रण हो सकेगा।  मुख्यमंत्री ने इस मौके पर घोशणा की कि राज्य के सभी विद्यालयों में लड़कियों को जूडो कराटे का प्रषिक्षण दिया जाएगा। इससे लैस लड़कियां दूसरों पर निर्भर नहीं रहेंगी बल्कि छेड़-छाड़ करने वाले लोगों के होष ठिकाने लगा देंगी। इसके बाद उन्होंने अपनी सरकार के पहले कार्यकाल का जिक्र  करते हुए कहा कि 2005 में जब हमारी सरकार ने राज्य की सत्ता संभाली थी तो उस समय 12.5 प्रतिषत बच्चे विद्यालय से बाहर थे, अब यह अनुपात घटकर 2 प्रतिषत से भी कम हो गया है। बिहार में षिक्षा पर विषेश ध्यान दिया गया है। षिक्षकों को नियुक्त किया गया, ईमारतों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई, पोषाक और साईकिल योजना चलाई गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में बच्चे विद्यालय आए और अब दो प्रतिषत से कम बच्चे विद्यालय से बाहर हैं। 
           
मुख्यमंत्री नितीष कुमार इस मौके पर षायद एक महत्वपूर्ण बात लोगों को बताना भूल गए जो उनकी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है। 29 जनवरी 2014 से राज्य सरकार ने  एक लाख 96 हज़ार षिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियोजन मेला लगाया है। इसके ज़रिए मुख्यमंत्री का सपना बिहार में प्राथमिक षिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। एक तरफ जहां मुख्यमंत्री के इस कदम से बिहार में प्राथमिक स्तर पर षिक्षा में सुधार की बातें की जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर सीतामढ़ी जि़ले के सुरसंड प्रखंड के अंर्तगत चांदपट्ी उर्दू मक्तब मध्य विद्यालय मंे आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। विद्यालय में 570 बच्चों के पठन-पाठन कार्य के लिए पांच षिक्षक नियुक्त किए गए हैं जिनमें से दो षिक्षक हमेषा अनुपस्थित रहते हैं। चरखा के ग्रामीण लेखक कमाल अज़हर जब इस विद्यालय की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए गए तो वहां की स्थिति को देखकर स्तब्ध रह गए। यहां एक छोटे कमरे में तकरीबन सौ बच्चे फर्ष पर बैठ हुए थे। कमरे की हालत को देखकर ऐसा लग रहा था कि बच्चे एक दूसरे के उपर बैठे हुए हैं। इसके अलावा स्कूल में पीने के पानी के साथ-साथ श©चालय की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। स्कूल की खस्ताहाली का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूल में 570 बच्चों के क्लास रजिस्टर और दूसरे ज़रूरी कागज़ात रखने के लिए दफ्तर तक नहीं था। इस स्कूल में एक दिलचस्प बात और देखने को मिली वह यह कि इस स्कूल में 570 में से 450 बच्चे उर्दू पढ़ने वाले हैं और 120 बच्चे उर्दू पढ़ने वाले नहीं हैं। स्कूल में इन 120 बच्चों को पढ़ाने के लिए बिहार सरकार ने पांच षिक्षकों की नियुक्ति की है और 450 षिक्षकों को पढ़ाने के लिए एक भी षिक्षक अभी तक नियुक्त नहीं किया गया है। 30 जनवरी 2014 को लोग हिंदी षिक्षक की नियुक्ति पर आक्रोषित हो गए। इस बारे में हिंदी षिक्षक षंकर पासवान का कहना है कि गांव के तकरीबन पांच सौ से ज़्यादा स्त्री पुरूश यह नारा दे रहे थे कि हमें हिंदी नहीं मातृभाशा चाहिए, बच्चों का उज्जवल भविश्य चाहिए। इन नारों के साथ ग्रामीणों ने मुझे स्कूल में पढ़ाने नहीं दिया और विद्यालय परिसर में अनिष्चित कालीन समय के लिए ताला डाल दिया। गौरतलब है कि बिहार में उर्दू दूसरी सरकारी ज़बान है और यह हिंदुस्तानी ज़बान का दर्जा भी रखती है। इसके बावजूद इस भाशा के साथ सरकारी स्तर पर नाइंसाफी की जा रही है। षंकर पासवान इस बारे में अपनी राय रखते हुए कहते हैं कि मैं दोबारा इस विद्यालय को अपनी सेवाएं दे रहा हंू। इस बारे में मेरा मानना है कि 450 उर्दू भाशी छात्रों के साथ अन्याय हो रहा है। इस बारे में गांव के स्थानीय निवासी मोहम्मद आलम का मानना है कि सरकारी अधिकारी उर्दू भाशा के साथ भेदभाव कर रहे हैं जिसकेे कारण इससे हमारी संस्कृति पर गहरा असर पड़ रहा है। 450 उर्दू पढ़ने वाले बच्चों को उर्दू की जगह संस्कृत पढ़ायी जा रही है। स्कूल के प्रभारी प्रधान अध्यापक महबूब आलम का कहना है कि 570 बच्चों के लिए 4 षिक्षक नियुक्त हैं। इनमें से 450 बच्चे उर्दू पढ़ने वाले हैं, इन बच्चों के लिए अब तक सरकार की ओर से कोई षिक्षक नियुक्त नहीं किया गया है। वहीं प्रखंड षिक्षा अधिकारी बलदेव राम ने ग्रामीणों को आष्वासन दिया है कि नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है, मैं विद्यालय में उर्दू षिक्षक नियुक्त करूंगा। षायद प्रखंड षिक्षा पदाधिकारी को यह मालूम नहीं कि इस नियोजन मेला में उर्दू टीईटी पास छात्रों को नियुक्त नहीं किया जा रहा है। सरकार अब उर्दू टीईटी पास छात्रों को कोई आष्वासन देने से ही पीछे हट रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रखंड षिक्षा पदाधिकारी उर्दू षिक्षक कहां से नियुक्त करेंगे। इन 450 बच्चों के भविश्य को कैसे उज्जवल बनाएंगे जिनके लिए कोई षिक्षक ही स्कूल में मौजूद नहीं है। 
         
मुख्यमंत्री नितीष कुमार ने बड़ा ही हसीन सपना देखा है, अपने इस हसीन सपने को हकीकत में बदलने का दावा भी किया कि बिहार के विद्यालयों में षिक्षा का माहौल ऐसा बनेगा कि लोग अपने बच्चों को यही पढ़ाएंगे, राज्य की लड़कियां जूडो-कराटे से लैस होकर छेड़-छाड़ करने वालों के होष ठिकाने लगा देंगी तथा जनसंख्या दर में गिरावट आएगी। मुख्यमंत्री के इस हसीन सपने को चांदपट्टी का उर्दू मक्तब मध्य विद्यालय जहां बच्चों से भाशा की बुनियाद पर भेदभाव हो रहा है और उर्दू टीईटी पास छात्रों की उपेक्षा हो रही है, चकनाचूर करने के लिए काफी है।



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कमाल अज़हर
(चरखा फीचर्स)

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