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Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
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विशेष : कैसे बनाएगी ऐसी शिक्षा देश का भविष्य

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हमारे देष के षहरी इलाकों में षिक्षा की स्थिति जितनी बेहतर है ग्रामीण इलाकों में उसकी दशा उतनी ही दयनीय है। और अगर सरहदी इलाकों की बात की जाए तो यहां तो स्थिति और भी ज़्यादा भयावह है। जम्मू एवं कष्मीर का सरहदी इलाका पुंछ षिक्षा की दृश्टि से काफी पिछड़ा हुआ है। भौगोलिक स्थिति अत्यंत जटिल होने की वजह से यहां के बच्चों के लिए षिक्षा हासिल कर पाना आज भी एक सपने की तरह है। 2005 तक यह इलाका मिलिटेंसी की चपेट में रहा। मिलिटेंट ने यहां कभी भी विकास को पनपने ही नहीं दिया। मिलिटेंसी के खात्मे के 9 साल बाद भी पुंछ जि़ले के लोरन ब्लाॅक की अड़ई मल्कां और अड़ई हवेली पंचायतों में षिक्षा की स्थिति में किसी तरह का क¨ई सुधार नहीं हुआ है। 21 वीं सदी के इस दौर में आज भी इस इलाके में सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इन समस्याओं से इतर यहां के लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे षिक्षा हासिल कर जम्मू-कष्मीर समेत पूरे देष में अपना नाम रोषन करें। लेकिन अड़ई मल्कां, अड़ई हवेली और अड़ई पीरां में सिर्फ एक ही हाई स्कूल हैं। इलाके में 10वीं के बाद की पढ़ाई का बंदोबस्त न होने की वजह से ज़्यादातर बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है।  अड़ई की कुल आबादी की कुल आबादी 15-20 हज़ार है। 
         
इलाके में बुनियादी षिक्षा की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। हवेली पंचायत  के प्राईमरी स्कूल की इमारत की हालत काफी खस्ताहाल हो चुकी है। अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर इलाके के बच्चे खस्ताहाल हो चुकी इसी इमारत में षिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं। इस बारे में गांव के स्थानीय निवासी अब्दुल हक कहते हैं,’’स्कूल की इमारत  1979 में बनी थी, जो अब बहुत खस्ताहाल हो चुकी है। उन्होंने आगे बताया कि स्कूल की इमारत के बारे में एमएलए एजाज़ अहमद जान ने बोला था कि नई सरकार आएगी तो स्कूल की इमारत बन जाएगी। ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह इलाका जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का किस हद तक शिकार रहा है? हवेली गांव के इस स्कूल में तकरीबन 225 बच्चे षिक्षा ग्रहण करते हैं, जबकि स्कूल में छह अध्यापक हैं। स्कूल में षिक्षा की खस्ताहली का जि़क्र करते हुए गांव के स्थानीय निवासी उबैद उल्लाह ने बताया कि स्कूल में अध्यापकों और बच्चों की मौजूदगी के बाद भी स्कूल में दी जाने वाली षिक्षा निम्न स्तर की है। स्कूल की बावर्ची फातिमा बी ने बताया कि मिड डे मील के तहत बच्चों को दोपहर में दो दिन खिचड़ी, दो दिन मीठा चावल और दो दिन दाल चावल दिया जाता है। इस बारे में स्कूल के चैथी क्लास के छात्र अबरार अहमद से पूछे जाने पर उसने बताया कि दोपहर में रोज़ खिचड़ी मिलती है।  ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि स्कूल में मिड डे मील की क्या हालत है? गांव के स्थानीय निवासी मोहम्मद ताज ने बताया कि स्कूल के निर्माण के लिए उन्होंने ज़मीन दी थी, इसके बदले में उन्हें स्कूल में बावर्ची नियुक्त किया जाना था। मगर न तो उन्हें स्कूल में बावर्ची नियुक्त किया गया और न ही उनके विकलांग बच्चे अज़हर महमूद को अभी तक कोई मुआवज़ा मिला है। उन्होंने आगे बताया कि मेरी जगह उंची पहुंच वाली सफीरा बेगम को स्कूल में बावर्ची नियुक्त किया गया है। स्कूल के मास्टर अफज़ल ने पैसा खाकर उन्हें स्कूल में बावर्ची नियुक्त करवाया है। उन्होंने यह भी बताया कि मेरे पास आय का कोई खास साधन नहीं है , जबकि सफीरा बेगम के पति और बेटा दोनों सरकारी कर्मचारी हैं।  मोहम्मद ताज का कहना है कि स्कूल में बावर्ची के रिकार्ड की जांच की जानी चाहिए। 
          
दूरदराज़ के इलाके में षिक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने लिए केंद्र सरकार द्वारा न जाने कितनी य¨जनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन वास्तव में षायद ही किसी य¨जना का फायदा दूरदराज़ के इलाकों के लोगों तक पहुंच पा रहा हो। दूर दराज़ के इलाकों में षिक्षा की स्थिति का जायज़ा लेने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि इन इलाकों में आने वाले दो या तीन दषक में भी षिक्षा की स्थिति में कोई सुधार आने वाला नहीं है। हमारे देष में न जाने वह दिन कब आएगा जब सभी बच्चों तक षिक्षा की रोषनी पहुंच पाएगी? कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य ह¨ते हैं लेकिन शिक्षा की ऐसी हालत में इस देश के भविष्य का कैसा निर्माण ह¨गा यह स¨चने वाली बात है। महज़ आॅफिसों में बैठकर योजनाएं बनाने से काम नहीं चलेगा, ज़रूरत है कि उन य¨जनाओं को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाया जाए। हमारे लिए देष का हर एक बच्चा कीमती है। षिक्षा सभी का मौलिक अधिकार है जो सभी को मिलना ही चाहिए। 




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गौहर आसिफ
(चरखा फीचर्स)  

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