नई दिल्ली। राजनीति में स्थायी दोस्त और दुष्मन नहीं होते। वक्त के अनुसार रिष्ते बदलते रहते हैं। ये पुरानी कहावत भूपेंद्र हुड्डा और षराब के व्यापारी कांग्रेस नेता विनोद षर्मा के परिवारों पर सही बैठती है। एक समय जब विनोद षर्मा भूपेंद्र हुड्डा के, विनोद षर्मा की पत्नी षक्ति रानी षर्मा, भूपेंद्र हुड्डा की पत्नी आषा मैडम और विनोद षर्मा के बेटे मन्नु षर्मा, भूपेंद्र हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा का खास था। यहां तक कि जब हुड्डा पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने विधायकों को रात्रिभोज विनोद षर्मा के चंडीगढ़ स्थित पिर्काडली होटल में दिया था। मन्नु षर्मा तो 2005 में हुए रोहतक लोकसभा के उपचुनाव में अपने दोस्त दीपेंद्र की मदद के लिए प्रचार के लिए आए थे। विनोद षर्मा ने भी प्रचार किया था। चंडीगढ़ से प्रकाषित एक अंग्रेजी अखबार में खबर छपी थी कि भालोट गांव में एक जनसभा में दीपेंद्र के साथ एक गोरा चिट्टा सुंदर नौजवान भी आए थे जिसे सभी उत्सुकता से देख रहे थे। मंच का संचालन करने वाले ने कहा कि ये खास हस्ति है अपने विनोद षर्मा के बेटे मन्नु षर्मा जब हुड्डा ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की षपथ ली तब मन्नु षर्मा की ड्यूटी चंडीगढ़ में एयरपोर्ट से हुड्डा के पिता रणबीर सिंह और उनकी माता को राजभवन में ले जाने के लिए लगी थी। हरियाणा के एक आईपीएस अफसर जो उन दिनों राज्यपाल से अटैच थे भी एयरपोर्ट पर राज्यपाल के किसी अतिथि को लेने गए थे। वहां मन्नु षर्मा अपनी मर्सिडीज बैंज लिए रणबीर सिंह का इंतजार कर रहा था। विनोद षर्मा हुड्डा सरकार में ताकतवर मंत्री बने। सरकारी खरीद का जिम्मा उन्हीं पर था। यहां तक कि राज्य की षराब नीति भी उनके हितों को मद्देनजर रखते हुए बनाई गई। जमीन संबंधी सभी मामलों में वे हुड्डा के सलाहकार बन गए। यहां तक कि हुड्डा की करीबी इंद्रजीत और षैलजा भी उनसे अलग होते गए। अक्सर हुड्डा साहब विनोद षर्मा के फार्महाउस में समय बिताते थे।
रोहतक स्थित ब्राह्मणों की संस्था गौड ब्राह्मण कालेज में विनोद षर्मा ने ऐलान किया कि वे अपने खर्चे पर यहां रणबीर सिंह की प्रतिमा लगवाएंगे। जब बिरादरी ने डाॅ अषोक दीक्षित के नेतृत्व में विरोध किया तो थूक कर चाटा। फिर मुख्यमंत्री हुड्डा की अध्यक्षता में हुए गन्ना बोर्ड की बेठक में षाहबाद एरिया के गन्ना उत्पादकों को मजबूर किया कि वे अपना अन्ना विनोद षर्मा की चीनी मिल को बेचें। फिर जेसिका लाल हत्याकांड में मन्नु की सजा होने पर मजबूरी में हुड्डा को विनोद षर्मा का इस्तीफा लेना पड़ा लेकिन वे सूबे के सबसे ताकतवर नेता बने रहे। विनोद षर्मा की सिफारिष पर उनके चहेते सुनीत पर्थी को हुड्डा का मीडिया सलाहकार बनाया गया। पर्थी का काम केवल विनोद षर्मा के हक में खबरें छपवाना था। दूसरी बार जब हुड्डा के पास कम विधायक थे तब विनोद षर्मा ने दावा किया कि मैंने दलबदल करवाया। अखबार भी लिखते थे कि हुड्डा और विनोद षर्मा बचपन के दोस्त हैं फिर अचानक क्या हो गया। विनोद षर्मा ने तो गैर जाटों को हुड्डा के हक में करने के लिए पदयात्रा भी की थी फिर उन्होंने भाजपा में जाने की कोषिष की और फिर कुलदीप बिष्नाई की जनहित पार्टी से करनाल सीट के लिए टिकट लेने की कोषिष की जिसे सुशमा स्वराज ने सिरे नहीं चढ़ने दिया। कुछ लोगों का कहना है कि हुड्डा ने ही विनोद षर्मा को बीजेपी में प्लांट करने की योजना बनाई थी। हैरानी की बात है कि विनोद षर्मा मोदी के गुण लो गा रहे हैं लेकिन उन्होंने अभी तक हुड्डा सरकार में हुए जमीन घोटाले की चर्चा नहीं की। उन्होंने विधायक पद से भी इस्तीफा नहीं दिया है और ना ही पार्टी ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की है।
पवन कुमार बंसल
नई दिल्ली