राजस्थान सिर्फ एक क्षेत्र या प्रदेश नहीं बल्कि शौर्य-पराक्रम भरे इतिहास, कला-संस्कृति और नैसर्गिक वैविध्य से परिपूर्ण वह धरा है जिसका कण-कण हमें त्याग, तपस्या और बलिदान का पैगाम देता है। इस माटी पर वह सब कुछ है जो व्यष्टि और समष्टि की परिपूर्णता को सुनहरा आकार प्रदान करता है। प्रकृति इस प्रदेश पर इतनी मेहरबान है कि हर कोना अपने आप में अन्यतम नैसर्गिक छटा रखता है। मरुप्रदेश में मीलों तक पसरे रेत के टीलों से लेकर हरियाली से लक-दक पर्वतीय अंचल, कलात्मक कूओं-बावड़ियों से लेकर मीलों तक फैली नदियों और जाने कितनी सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं की त्रिवेणियों से आप्लावित है यहाँ का जनजीवन।
पुरातन दुर्ग-किलों और राजप्रासादों, हवेलियों का वैभव आज भी मुँह बोलता है। लोक संस्कृति और परंपराओं का तो कहना ही क्या? कोस-कोस पर बोली, रोचक-लोकानुरंजक परिपाटियां और हवाओं में बदलाव के दौर हैं तो धरती की कोख से रंग और रत्न यहाँ पैदा होते हैं। राजस्थान की धरती अपने भीतर दुनिया के सारे रंगों और रसों को समाहित किए हुए हैं जहाँ का जर्रा-जर्रा गाता है और हवाओं का कतरा-कतरा मन को भाता है। हर कहीं मचलती लोक लहरियां सागर बन छाती हुई सुकून के दरिया उमड़ाती हैं और फौलादी जिस्मों का परिश्रम इंसानी सामथ्र्य का पग-पग दर्शन कराता है।
एक ओर उन्मुक्त पसरी, इठलाती, बलखाती प्रकृति और पंच तत्वों का वैभव छलकता है दूसरी ओर अनथक जनज्वार का संगीत राजस्थान विकास का दिग्दर्शन कराता है। राजस्थान गठन के बाद से हमने आज तक विकास का जो मंजर देखा है उसमें जन-जन के मन के भावों और समर्पण का इतिहास झलकता है। हमारा अपना राजस्थान किसी से कम नहीं। सब कुछ तो दिया है कि प्रकृति ने अपने यहाँ। जो इस वैभव से परिचित नहीं हैं उन्हें चाहिए कि कछुआ छाप जिंदगी और अपने भौगोलिक दायरों का मोह छोड़कर एक बार अपने पूरे प्रदेश का भ्रमण कर लें, अपने आप यह जान जाएंगे कि कितना प्यारा-प्यारा, कितना न्यारा-न्यारा है अपना राजस्थान।
राजस्थान के विराट स्वरूप का वर्णन करने के लिए कोई एक दिवस काफी नहीं है, न ही राजस्थान दिवस के दिन हमारे अपने प्रदेश की पूरी महिमा का गान किया जा सकता है। राजस्थान के लिए सिर्फ एक दिवस मनाना ही काफी नहीं हैं। हम इसे मात्र एक दिन ही क्यों मनाएँ। राजस्थान दिवस का यही पैगाम है कि हम इस दिन संकल्प लें अपने प्रदेश के लिए, साल भर राजस्थान के लिए चिंतन करें कि कैसे हम अपने राज्य को और अधिक उन्नत बनाते हुए दुनिया में अग्रणी पहचान दे सकते हैं।
अभी हमें अपने प्रदेश के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। हम सभी को द्रष्टा बनकर जयगान करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं। स्रष्टा का धर्म निभाना होगा। इसमें हर जन की भागीदारी जरूरी है। हम सब आत्मा से यह सोचें कि अपने राजस्थान के लिए क्या कुछ कर सकते हैं, क्या करने की जरूरत है और सच्चे राजस्थानवासी के कत्र्तव्य क्या हैं? इतना सा ही समझ में आ जाने पर कोई कारण नहीं कि हम एक दिन की बजाय वर्ष भर हर क्षण राजस्थान के बारे में सोचें और कुछ न कुछ रचनात्मक भागीदारी निभाते रहें। आइये राजस्थान दिवस के पावन मौके पर हम सब मिलकर राजस्थान के नवनिर्माण में ऎतिहासिक सहभागिता का प्रण लें।
---डॉ. दीपक आचार्य---
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