भारतीय जनता पार्टी का भारत के मुसलमानों के प्रति दृष्टिकोंण के सन्दर्भ में जितना स्वयं भाजपा ने उजागर नहीं किया उससे कहीं अधिक भाजपा बिरोधी दलों ने उसके नकारात्मक स्वरूप को प्रचारित करके मुसलमानों को डराते हुए उन्हें भाजपा से भयभीत करने का प्रयास किया है। तथाकथित सेक्यूलरिस्टों ने भारत के मुस्लिमों को राजनीति एवं वोट का मोहरा मात्र बना दिया है और इस कार्य मे अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिये कुछ मुस्लिम नेताओं ने भी बढ़ोत्तरी की है। चुनावी माहौल के समय मुसलमानों की अन्तर्निहित पीढ़ायें और उनकी सामाजिक, आर्थिक व विकास की स्थिति पर विचार करना होगा।
विश्व के मुसलमान दो विचारधाराओं वाले स्वरूप के हैं, एक तो ऐसा वर्ग का जो दारूलहरब से दारूलइस्लाम के परिवर्तन के सिद्धान्त पर भरोसा करते हैं। अर्थात गैर-मुस्लिम देशों को इस्लामिक देश के रूप मे परिवर्तित करने का उद्देश्य, और इस हेतु जनसंख्या बढ़ाने से लेकर वे समस्त वैधानिक एवं अवैधानिक कृत्य करने से नहीं हिचकते हैं जो इस हेतु आवश्यक हों। यद्यपि विश्व के समग्र विकास को देखते हुये इस विचारधारा वाले मुसलमानों की संख्या अब शनैः-शनैः न्यून हो रही हैं। विश्व मे ऐसी विचारधारा वाले वर्ग की समस्त सहानुभूति पाकिस्तान की ओर रहती है। ऐसा वर्ग कट्टरपंथी होता है और धर्म निरपेक्ष प्रजातांत्रिक कानून को नकारता है। आवश्यकता पड़ने पर भारत की सर्वोच्च न्यायालय तक को शाहबानों के प्रकरण में गालियां तक देता है। अब्दुल्ला बुखारी ने पांन्चजन्य को दिये साक्षात्कार (दिनांक 18 जनवरी 1987 को प्रकाशित) में कहा था कि मजहब और मुल्क मे से उनकी दृष्टि में इस्लाम का दर्जा पहले नम्बर पर है और मुल्क दूसरे नम्बर पर। दूसरी प्रकार की विचारधारा के भारत में बसे मुसलमानों का एक वर्ग ऐसा है जो दीन-ईमान की बात सोचता है, भारत की मिट्टी से तन-मन-धन से जुड़ा है, ऐसे वर्ग का मुसलमान भारत में रहकर देशहित की बात कहता है और उसका सोच है कि एक दिन अल्लाह के पास जाना है और वह गिरेबां में हाथ डालकर ईमान की बात पूछेगा इस कारण वह भारत में रहकर बेईमान नहीं बनना चाहता है। ऐसी विचारधारा वाले वर्ग के मुसलमान फतवा जारी होने के डर से भयभीत रहते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि भारत की तो बात अलग है, पाकिस्तान का आम मुसलमान भी आतंकवाद का सर्मथक नही है। आम मुसलमान आतंकवाद से निजात पाना चाहता है और वह इससे भी पीढि़त है कि इस्लाम के नाम पर आतंकवादी कौम को गलत संदेश दे रहे हैं।
राजनीतिक स्तर पर देश के कुछ ढोंगी सेक्यूलरिस्टों का भी ध्यान मुस्लिमों की अन्तर्निहित पीढ़ा की ओर नहीं है और सच तो यह है कि अभी तक मुसलमानों के नाम पर सिर्फ वोट-बैंक की राजनीति हुई है। भारत के मुसलमान का एक वर्ग ऐसा है जो जानवरों की तरह मजहबी दहशत मे हकाया जाता है और जानबूझकर उसे मानसिक रूप से विकसित नहीं होने दिया जाता है, उसे शिक्षित एवं विकसित होने की योजनायें परोसी नहीं जातीं हैं तथा मजहब के नाम पर भय निर्मित करते हुये उस पर शासन किया जाता है। इन राजनीतिक दलों के कथित सेक्यूलरिस्टों के समक्ष सिर्फ एक ही उद्देश्य प्रकट होता है कि मुस्लिमों को बरगला कर सत्ता हथियाई जाये और इस हेतु वे वोटों का विभाजन करने के साम्प्रदायिकता के नाम पर नये-नये उपाय खोजते रहते हैं। गत समय सितम्बर 2013 मे मुजफ्फरनगर मे हुये दंगों पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुये कहा है कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने दंगा रोकने के लिये समुचित कदम नहीं उठाये और अपराधियों को गिरफ्तार भी नहीं किया। बिना जांच हुये इस सत्यता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि पहले दंगे करवाये जाते हैं, फिर मुस्लिमों को डरवाया जाता है और तब उनसे वोट खींचे जाते हैं। हिन्दू मुस्लिम वोटों का विभाजन करना और हिन्दू वोटों मे विभिन्न जातियों की कट्टरता के साथ भेद-भाव की दीवार खड़ी करना, इनकी सियासती टेक्निक है। बिना किसी पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर क्या यह बिन्दु विचारणीय नहीं है कि भा.ज.पा. शासित प्रदेशों मे साम्प्रदायिक दंगे क्यों नहीं होते ? सन् 2002 के गुजरात दंगो की बात के पीछे उसकी तह तक जाना होगा और यह जानना होगा कि वह गोधरा-काण्ड की प्रतिक्रिया का परिणाम था। समय की मांग है कि मुस्लिमो का वह वर्ग जो अमन-चैन से रहना चाहता है परन्तु आतंकवादी गतिविधियों के कारण उसके दामन पर दाग लग रहे हैं, वह स्वयं भी देश के राजनीतिक दलों को आव्हान करे कि ‘बहुत हो चुकी है मुस्लिम वोट-बैंक की राजनीति, हमे राजनीति की शतरंजी चालों का मोहरा मत बनाओ।’ कोई भी मजहव हिन्सा, द्वेष व आतंक का पर्याय नही हो सकता। जरूरत तो आज इतिहास के उन पन्नों को खोलने की है जब सन 1962 के चीन युद्व में ब्रिगेडियर उस्मान और सन् 1965 में भारत पाक युद्व में हवलदार अब्दुल हमीद ने दुश्मनों को धूल चटा दी थी। हम क्यों नहीं मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान और ऐसे ही अनेकों नेक-इन्सानों से प्रेरणा लेते हैं जिन्होंने कौम को इन्सानियत का संदेश दिया।
यदि हम उस युग की कल्पना करें, जब पृथ्वी पर ईश्वर ने सर्व प्रथम इन्सानी जिस्म बनाकर मानव को भेजा था तो उस समय कोई मजहबी एहसास नहीं रहा होगा, समय आगे बड़ा और धीरे-धीरे आज के युग मे पहुंचे जहां इन्सानों के बीच में दीवारें खिचीं हैं और इसके गुंण-दोषों पर फिल्हाल कुछ न कहते हुए इतना अवश्य है कि ईश्वर ने दो धर्मों को समान रूप से निर्मित किया है और इनमे से एक का दूसरे के बिना अस्तित्व ही नहीं है और वे दो धर्म हैं:- (1) स्त्री धर्म (2) पुरूष धर्म। पुरूष का अस्तित्व स्त्री के बिना नही है और इसी तरह स्त्री का अस्तित्व पुरूष के बिना नही है । खुदा की बनाई इस इन्सानी जिस्म नाम की गाड़ी को उसके दो पहिये (स्त्री व पुरूष) मिलकर एक समान सहयोग के साथ चला रहे हैं और हिन्दू संस्कृति के अनुसार स्त्री शक्ति का स्वरूप है और उसके बिना शिव भी शव के समान है।
मुसलमानों के संदर्भ मे भाजपा का दृष्टिकोंण यह रखा जाता है कि मुसलमानों मे राष्ट्रीय भावना प्राथमिक रूप से विकसित होना चाहिये और राष्ट्र के विकास की धारा मे वे सहभागी बने। प्रत्येक देशवासी इस देश को, देश की मिट्टी को अपनी जन्मभूमि, कर्म-भूमि एवं मातृ भूमि समझे। बिना किसी पूर्वाग्रह के और गैर राजनीतिक होकर यदि विचार किया जाये तो इस सोच में कहीं कोई नकारात्मक और साम्प्रदायिक सोच प्रतीत नहीं होता है ।
लेखक- राजेन्द्र तिवारी, एडवोकेट
अभिभाषक, छोटा बाजार दतिया
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नोट:- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, सामाजिक विषयों के समालोचक होने हैं।