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बंगाल की 'एकाधिकारवादी सत्ता'मुझे नहीं देखना चाहती थी : गांगुली


पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग (डब्ल्यूबीएचआरसी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए. के. गांगुली ने बुधवार को कहा कि कुछ मामलों में आयोग के अध्यक्ष के रूप में की गई उनकी सिफारिशों को राज्य सरकार ने कभी पसंद नहीं किया। गांगुली ने अपने इस्तीफे में कहा है कि वे 'किसी और साजिश को रचने से रोकने के लिए'और अपने परिवार की 'खुशी और शांति सुनिश्चित'करने के लिए पद छोड़ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के उनके कार्यकाल के दौरान आयोग के कामकाज के प्रति लोगों में विश्वास जगने से शिकायतों की संख्या दोगुनी हो गई। उन्होंने टीवी चैनल एबीपी आनंद को दिए गए साक्षात्कार में बताया, "हम लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहे। शिकायतों की संख्या 5000 से बढ़गर 12000 से 14000 हो गई और इसमें अब वृद्धि होगी। लेकिन इस काम को करते हुए मैंने महसूस किया कि राज्य सरकार इसे पसंद नहीं करती है।"

गांगुली पर एक विधि प्रशिुक्षु ने यौन प्रताड़ना का आरोप लगाया था जिसके बाद से उन पर इस्तीफा देने का दबाव था। गांगुली ने उनके मामले में जिस तरह से तीन सदस्यों वाली जांच समिति गठित की गई उसके लेकर सर्वोच्च न्यायालय की भी आलोचना की।

उन्होंने कहा, "पश्चिम बंगाल सरकार मुझे पद पर बने देखना नहीं चाहती थी। बंगाल में जो कुछ हो रहा है वह वास्तव में एकाधिकारवादी सत्ता है जहां किसी को भी विरोध करने की इजाजत नहीं है।"यौन प्रताड़ना का आरोप सामने आने के बाद बनर्जी ने दो बार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखा और गांगुली को पद से हटाने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया था।

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