सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि दुष्कर्म एक निंदनीय कृत्य है और यह अपराध करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सख्त सजा दी जानी चाहिए, लेकिन उसे सजा तभी दी जानी चाहिए, जब आरोपी का दोष साबित हो जाए और उसके दोषी होने में कोई संदेह न हो। ऐसा कहने के साथ ही न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन की पीठ ने हाल के एक आदेश में केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपी को दोषी करार दिया गया था और चार साल के जेल की सजा दी गई थी।
पहले से विवाहित विनोद के दो बच्चे भी थे। इसके बाद भी उसकी कॉलेज में पढ़ने वाली एक छात्रा के साथ घनिष्ठ दोस्ती हो गई। छात्रा 19 अप्रैल 2000 को सुबह की पाली में परीक्षा देने के बाद विनोद के साथ भाग गई। एक दिन लड़की के चाचा अब्दुल राशिद ने दोनों को बाजार में पहचान लिया। विनोद का कहना है कि उसने लड़की को अपने विवाहित और बाल-बच्चेदार होने की बात बता दी थी, जबकि लड़की का कहना है कि उसे यह पता नहीं था, वरना वह लड़के से संबंध नहीं बनाती।
सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय द्वारा लड़की को भुक्तभोगी करार दिए जाने को खारिज कर दिया। क्योंकि यह रिश्ता एक फोन कॉल के साथ सहजता से बढ़ता गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संयोग से दोनों में प्यार हो गया और इसके बाद दोनों अपने संबंध की निर्थकता को समझ नहीं पाए। पीठ ने कहा, "दुष्कर्म निश्चित रूप से एक निंदनीय कृत्य है और यह अपराध करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को जल्द-से-जल्द और सख्त सजा दी जानी चाहिए, लेकिन यह तभी संभव है, जब आरोपी का दोष साबित हो चुका हो और उसके दोषी होने में कोई संदेह न हो।"सर्वोच्च न्यायालय के निष्कर्ष के मुताबिक लड़की को पता था कि विनोद पहले से शादीशुदा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने हालांकि विनोद को भी निर्दोष नहीं कहा, क्योंकि उसने एक वैवाहिक संकल्प और पिता के रूप में अपनी जिम्मेवारी का उल्लंघन किया है। भले ही वह कानून में सजा का हकदार नहीं हो, लेकिन उसे महसूस करना चाहिए कि यदि वह कैद में रहा, तो उसे दूसरी तरह से अपने किए कि सजा मिली है।