चुनाव आयोग की निष्पक्षता व राजनीति में युवाओं की सक्रियता के चलते बढ़ा मतदान प्रतिशत कहीं बदलाव का संकेत तो नहीं। यह बातें अब हर तबका मानने लगा है। विश्लेषकों की मानें तो पूर्व की तुलना में बगैर बगैर किसी खून-खराबे के हुए चार चरणों में भारी मतदान लोकतंत्र को मजबूत करने वाला है। इमर्जेंसी के बाद पहली बार सबसे ज्यादा मतदान हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चैकाने वाला परिणाम आ सकता है। यह बात दिगर है कि इस बढ़े हुए 12-15 प्रतिशत मतों को राजनीतिक पार्टिया अपना समर्थन बताकर इतरा रही है।
जहां तक युवाओं की सक्रियता का सवाल है वह आज भी जाति, वर्ग, क्षेत्र और मजहब के भंवर से उबर नहीं उबर पा रहा। युवाओं से बात करने पर एक बात तो स्पष्ट हो गयी है कि 55 प्रतिशत युवा अपनी उम्र या बेरोजगारी व महंगी होती उच्च शिक्षा जैसे अन्य मुद्दों पर एकजुट होने के बजाए जज्बाती नारों व जाति-धर्म की चल रही बयार में ही बहकर वोटिंग की है। इसकी बड़ी वजह यह है कि राजनीति दलों के घोषणा पत्र, नीतियां, कार्यक्रमों की जिक्र करें तो कोई भी दल युवाओं की चिंता के मुद्दों को तरजीह देने के बजाए जज्बाती नारों, मजहबी व जातीयता को ही आधार बनाया है और इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर इलाकों में प्रत्याशी भी उतारा है।
हालांकि 45 फीसदी युवा जरुर अपने हक व मुद्दों के लिए सक्रिय है और मोदी व केजरीवाल में अपना भविष्य देख रहे है। शायद यही वजह भी है कि भाजपाई इसे नमों की देशव्यापी लहर से जोड़कर देख रहे है। उनका तर्क है कि देश में बदलाव चाह रही जनता ने इस बार वोट के जरिए कांग्रेस के प्रति अपने गुस्से का इजहार किया है। वहीं कांग्रेस का दावा है कि दलित, पिछड़े व अल्पसंख्यकों में आए उभार के कारण वोट आफ परसेंटेज में वृधि हुई है। कांग्रेसियों का कहना है कि युवा वोटर राहुल गांधी यानी कांग्रेस के युवा नेतृत्व के साथ जुड़ रहे है, जिसकी परिणिती वोट के रुप में दिख रही है। बसपा अपने सोशल इंजिनियरिंग को एक बार फिर मजबूत उभार के रुप में देख रही है। तर्क है कि इस चुनाव में अधिक मतदान के पीछे महादलितों और महिलाओं के बीच मोबेलाइजेशन प्रमुख कारण है।
चुनवी विश्लेषक डीके यादव कहते है मतदान प्रतिशत में वृधि का कारण दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या में वृधि है। ये वोटर भाजपा और बसपा के पक्ष में वोट कर रहे है। जबकि अविनाश मिश्रा इसे राजनीति में दो धाराओं के बीच चल रही रस्साकसी का परिणाम बताते हुए कहते है कि युवा मतदाताओं का रुझान पूरी तरह से सेकुलर जमात की ओर है। इसमें भाजपा-बसपा आगे है। रमेश दुबे का कहना है कि बढ़ा वोट युवा, महिलाओं व उत्साहित लोगों के है, जो बदलाव के पक्षधर है। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल रहा है। प्रदीप पांडेय के मुताबिक महादलित, युवा-महिलाएं और गरीब वर्ग के मतदाता निडर होकर इस चुनाव में वोट डाल रहे है, जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिल रहा है। मतदाताओं में आई जागरुकता, वोट की कीमत समझने और युवाओं का मतदान के प्रति बढ़ता रुझान से बढा, आयोग के पहल के कारण युवा वोटरों का मतदान के प्रति ललक बढ़ा है। इस बार 72 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है।
---सुरेश गांधी---