स्वामी विवेकानंद वह दिव्य एवं ईश्वरीय विभूति हैं जिनका नाम ही हर आबाल-वृद्ध में प्रेरणा संचरण और समाज तथा देश के लिए जीने-मरने की परम उत्तेजना पैदा कर देता है। विवेकानंद का समग्र व्यक्तित्व और कार्य अपने आप में उद्दीपन का वह अविरल स्रोत है जिससे समुदाय और देश की हर इकाई में जागरण का माद्दा पैदा हो सकता है।
विवेकानंद का जीवन व्यक्ति के जीवन-आदर्शों की आचार संहिता, नवनिर्माण और ऎतिहासिक महापरिवर्तन का सुनहरा अध्याय कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। विवेकानंद ने दुनिया भर में भारत के गौरव एवं गरिमा में जो अभिवृद्धि की वह युगों से उनका गुणगान करती रही है और सदियों तक उनका नाम और कर्म गूंजते रहकर पीढ़ियों तक में प्रभावी प्रेरणा का संचरण करती रहेगी।
विवेकानंद के जीवन, ध्येय और कर्मयोग के बारे में भारतीयों को कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ जरूरत है तो यह कि हर भारतीय कम से कम एक बार विवेकानंद की जीवनी और उनके उपदेशों का साहित्य पूरा पढ़ ले। शेष सब कुछ अपने आप होता चला जाएगा।
विवेकानंद के नाम और कर्म ही ऎसे जादुई हैं कि उन्हें एक बार पढ़ लेने और आत्मसात कर लेने वाला व्यक्ति अपने आप में निखार लाने का अभ्यास आरंभ कर ही देता है और एक समय बाद उसमें परिवर्तन अपने आप आने लगता है। इस दृष्टि से आज की पीढ़ी तक विवेकानंद के साहित्य और उनकी जीवनी को पहुँचाने की आवश्यकता है।
विवेकानंद के नाम पर दिन, सप्ताह और पखवाड़ा मना लेना ही काफी नहीं है बल्कि हम यदि समाज और देश का उत्थान चाहते हैं तो हमें विवेकानंद को निर्धारित दिनों में ही सीमित नहीं रखकर साल भर उनके जीवन और ध्येय को हृदयंगम करते हुए आगे बढ़ना होगा। आज का युवा दिग्भ्रमित होता जा रहा है। पाश्चात्य खिलौनों के आकर्षण और सहज सुलभ उपलब्ध भोग विलासिता के उपकरणों और दैहिक गिरावट भरे वैश्विक ज्ञान ने युवाओं की जवानी छीनने का काम किया है।
युवाओं के बौद्धिक एवं शारीरिक सामथ्र्य पर सर्वाधिक हमला किसी ने बोला है जो पाश्चात्यों ने, जिन्होंने सांस्कृतिक, सामाजिक और देशज परंपराओं के वैज्ञानिक, स्वयंसिद्ध और महानतम ज्ञान और व्यवहार से व्यक्ति, समाज और देश को दूर कर दिया है।
इसी का नतीजा है कि हम स्वाभिमान को भुलाकर, नैतिकता और आदर्शों को हाशिये पर रखकर दासत्व भरी मानसिकता में जीने को विवश हैं और हमारा अस्तित्व विदेशियों के हाथों में सुरक्षित लगने लगा है। ऎतिहासिक शौर्य-पराक्रम के साथ आध्यात्मिक ज्ञान की बदौलत पूरी दुनिया को राह दिखाने वाले हम लोग पश्चिम की अंधाधुंध नकल करते हुए जाने कहाँ जा रहे हैं? पाश्चात्य सोच हमारे मन-मस्तिष्क पर हावी होती जा रही है, जिस्म के मामले में हम कमजोर हो रहे हैं और राष्ट्रभक्ति, सामुदायिक कत्र्तव्यों तथा सेवा व परोपकार से दूर भागने लगे हैं।
भारतीय संस्कृति के बुनियादी तत्वों से दूर रहकर हमारी स्थिति त्रिशंकु जैसी होती जा रही है। न हम अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं, न आधुनिकताओं को पूरी तरह अंगीकार करने की स्थिति में हैं। स्वामी विवेकानंद का अवतरण जिन दिनों हुआ था उन दिनों के हालात कमोबेश आज जैसे ही थे। उस समय स्वामी विवेकानंद थे, आज उनके विचार हमारे सामने हैें।
स्वामी विवेकानंद को मानने और उनके ध्येय वाक्यों पर चलने के भाषण देना और पब्लिसिटी कमाना जुदा बात है और वास्तव में विवेकानंद को अपने जीवन में उतारकर किसी न किसी प्रकार का बदलाव लाकर अपने आपको समाज एवं देश की सेवा में समर्पित करना अलग बात है।
आज हम हर साल विवेकानंद के नाम पर शोर तो करते रहे हैं मगर एक-दो दिन या सप्ताह भर बाद उन्हें भूल जाते हैं। साल भर हम जयंतियों और पुण्यतिथियों की औपचारिकताओं के मकड़ जाल में अभिनय करते हुए रमते रहते हैं।
कई लोग वास्तव में कुछ करने का जज्बा रखते हैं जबकि काफी सारे लोग इन दिवसों और सप्ताहों के नाम पर प्रचार पाने या आयोजन पूरा करने भर के लिए कुछ न कुछ करते रहने को मजबूर हैंं। विवेकानंद कोई एक दो दिन स्मरण रखकर भूल जाने जैसे युगपुरुष नहीं हैं। हम कितने ही सालों से यह सब करते आ रहे हैं फिर भी हमारे देश का युवा आज कहाँ है? यह सभी को पता है।
स्वामी विवेकानंद को मूर्तियों, दिवसों, सप्ताहों और समारोहों के कछुवा खोल से बाहर निकाल कर हम सभी को यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि उन्होंने जो कुछ रास्ता दिखाया है उस पर चलकर दिखायें। हर साल हर आदमी विवेकानंद के जीवन से एकमात्र प्रेरणा ही प्राप्त कर ले तो आने वाले कुछ वर्ष में ही हमारा भारत दुनिया को वह सब दे सकता है जिसकी विश्व ने कभी कल्पना तक नहीं की होगी।
विवेकानंद हमारे दिल और दिमाग में साल भर बने रहने चाहिएं। हम जो भी कर्म करें उसमें जरूरतमन्दों और आप्तजनों के स्थान पर खुद को रखकर देखें, अपने आप हम वो धरातल प्राप्त कर लेंगे जिसकी कल्पना विवेकांनद ने की थी।
सभी को विवेकानंद जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ .... ।
मुर्दों और प्रमादियों की तरह पड़े न रहें। अग्निधर्मा व्यक्तित्व का आवाहन करें।
खुद जगें, जगाएं और आगे बढ़ें।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com