देहरादून,09 मई, (राजेन्द्र जोशी)। प्रदेश की कुल पांच सीटों के लिए मतदान गुरूवार को शांतिपूर्ण माहौल में समाप्त हो गया। इस बार के चुनाव में पिछले वर्ष के लोकसभा चुनाव की तुलना में लगभग 11 फीसदी अधिक मतदान हुआ। 2009 के लोकसभा चुनाव में राज्य में लगभग 54 फीसदी मतदान हुआ था और प्रदेश में कांग्रेस ने पांचों सीटों पर विजय हासिल करते हुए मुख्य विपक्षी भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था जबकि उस समय भाजपा राज्य की सत्ताधारी पार्टी थी। इस बार भी जिस तरह से मतदान का प्रतिशत बढ़ा है उससे सत्ताधारी कांग्रेस में हड़कंप मचा है। चुनावी विश्लेषको की माने तो इस बार यहां मोदी लहर अपने उफान पर रही है जिससे पांचों सीटों पर कमल खिलने की पूरी उम्मीद है। वहीं मोदी लहर का प्रभाव कांग्रेस के कई दिग्गज नेता भी स्वीकरते हैं,
एक बार फिर देवभूमि अपनी पुरानी परंपरा को दोहराने की राह पर है और पांचों सीटे एक ही पार्टी की झोली में डालने को बेताब है। अब राजनीतिक पंडितो का ये आकलन कितना सही होगा ये तो आगामी 16 मई की मतगणना के बाद ही पता चलेगा लेकिन राज्य की दोनो मुख्य पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अपनी अपनी जीत का दावा कर रही है।
आंकड़ों की नजर से देखे तो राज्य की कुल पांच लोकसभा सीटों के लिए मैदान में विभिन्न राजनीतिक दलों और निर्दलीय के तौर पर 74 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे है। इनके भाग्य का फैसला बीते बुधवार को राज्य के 7043939 सामान्य मतदाता और 86364 सर्विस मतदाता कर चुके है। सभी की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है।
प्रदेश में टिहरी गढ़वाल,पौड़ी गढ़वाल,अल्मोड़ा-पिथौरागढ़,हरिद्वार और नैनीताल-ऊधमसिंह नगर नाम की पांच सीटें है। इन सीटों पर वर्ष 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार देश में मोदी लहर और केन्द्र व राज्य में कांग्रेस सरकारों के खिलाफ बने एंटीइंकंबेसी फैक्टर ने राज्य में भी कांग्रेस की हवा बिगाड़ रखी है।
पांचो सीटो पर कांग्रेस ने दो पर तो निवर्तमान सांसदो अल्मोड़ा से प्रदीप टम्टा और नैनीताल से केसी सिंह बाबा को लड़ाया है लेकिन उसने तीन अन्य सीटो पर नए चेहरोें को मौका दिया है। जिसमें हरिद्वार से मुख्यमंत्री हरीश रावत की पत्नी श्रीमती रेणुका रावत,टिहरी गढ़वाल से पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा और पौड़ी गढ़वाल सीट पर कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने हरिद्वार से पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक,पौड़ी गढ़वाल से पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी,नैनीताल से पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी,अल्मोड़ा से विधायक अजय टम्टा और टिहरी गढ़वाल से महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह को मौका दिया है। माला राज्यलक्ष्मी शाह वर्ष 2012 में विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई टिहरी सीट से उपचुनाव में जीत कर संसद पहुंच गई थी पार्टी ने उन्हें एक बार फिर से मौका दिया।
राज्य के सभी सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है लेकिन हरिद्वार में सपा और बसपा भी दोनों दलों को चुनौती दे रहे है। जबकि आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी पूर्व डीजीपी कंचन चैधरी भट्टाचार्य को भी लोग मुकाबले में मान रहे है। आम आदमी पार्टी ने भी पांचो सीटों पर ताल ठोकी है। जिसमें नैनीताल से जनकवि बल्ली सिंह चीमा,टिहरी सीट से 108 अंबुलेंस सेवा के संचालक अनूप नौटियाल,पौड़ी गढ़वाल से शिक्षाविद् डा.राकेश नेगी को ही लोग गंभीर उम्मीदवार मान रहे है। राज्य में हालांकि आम आदमी पार्टी का ना तो कोई जनाधार है और ना ही उसका अपना कोई संगठन। इसलिए राजनीतिक पंडितो का मानना है कि इस पार्टी के उम्मीदवार थोड़ा बहुत वोट तो काट सकते है लेकिन किसी को कोई खास नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं है।
अब आते है मोदी लहर पर राज्य में इतिहास रहा है जकि जब भी देश में कोई लहर रही है यहां परिवर्तन हुआ है। इसका उदाहरण 1977 में जनता लहर,1984 में कांग्रेस लहर और 1991 में राम लहर के समय में प्रदेश में जबरदस्त राजनीतिक परिर्वतन हुआ था। इस बार भी लोगों ने देश में मोदी लहर को स्पष्ट तौर पर महसूस किया है। शायद इस लहर का असर रहा कि पिछले चुनाव से 10 फीसदी से भी अधिक मतदान हुआ। मतदान प्रतिशत का आकड़ा देखे तो वह धीरे धीरे बढ़ता प्रतीत होता है।
टिहरी लोकसभा में वर्ष 2004 में 43.44,वर्ष 2009 में 50.70 और 2014 में 58.71 फीसदी मतदान हुआ।
पौैड़ी गढ़वाल में वर्ष-2004 में 46.54 वर्ष-2009 में 49.86 और वर्ष 2014 में 55.54 फीसदी लगभग हुआ।
हरिद्वार में वर्ष-2004 में 53.19 वर्ष-2009 में 61.11 और वर्ष-2014 में 73.10 फीसदी लगभग हुआ।
नैनीताल में वर्ष-2004 में 48.87 वर्ष 2009 में 59.02 और वर्ष 2014 में 68.40 फीसदी मतदान हुआ।
इसी तरह अल्मोड़ा में वर्ष-2004 में 49.89 वर्ष-2009 में 46.58 और वर्ष 2014 में 52.61 फीसदी मतदान हुआ।
वर्ष 2004 में भाजपा ने पांच में से तीन,कांग्रेस ने एक और समाजवादी पार्टी ने एक सीट पर विजय हासिल की थी। लेकिन 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने पांचो सीटों पर कब्जा कर लिया। अब ठीक उसी तरह से पांचों सीटों पर विजय हासिल करने की ओर भाजपा अग्रसर है।
राज्य में पहाड़ी अंचलों में कांग्रेस की पकड़ मानी जाती है जबकि मैदानी क्षेत्रों में भाजपा आगे रहती है। इस बार जो मतदान हुआ है वह पहाड़ों में तो कम हुआ लेकिन मैदानी क्षेत्रों का मतदाता जिस तरह से निकला और बूथों तक पहुंचा है उससे भाजपा के लोगों का उत्साह बढ़ गया है। जबकि पहाड़ों में जहां मतदान प्रतिशत कम रहा वहीं आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मतदान में कुछ बढ़ोतरी देखी गई। अब भाजपा का कहना है कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मतदाताओं ने राज्य सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए भाजपा के पक्ष में मतदान किया है। राजनीतिक विश्लेषक भी बीजेपी के तर्क को स्वीकार कर रहे है।
कांग्रेस के हारने का एक अन्य कारण जो सामने आ रहा है वह पार्टी में गुटबाजी,आपसी कलह और सतपाल महाराज जैसे बड़े नेता का अचानक पार्टी छोड़ भाजपा में चले जाना मुख्य है। सतपाल महाराज प्रदेश के बड़े नेताओं में गिने जाते है और प्रदेश के ठाकुर मतदाताओं पर उनकी अच्छी पकड़ है जिसका लाभ इस बार भाजपा को मिलना तय है। दूसरी तरफ हरीश रावत ने जिस तरह से पिछले दिनों विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटवाया और उस पर खुद को काबिज कराया इससे पूरी पार्टी रावत और बहुगुणा दो खेमो में बंट गई जिसका खामियाजा उसे इन चुनावों में उठाना पड़ सकता है।
सीट के हिसाब से देखे तो टिहरी सीट पर भाजपा प्रत्याशी माला राज्यलक्ष्मी शाह राजघराने से है और गोरखा समुदाय से होने की वजह से उनको क्षेत्र के दो लाख के करीब गोरखाओं का समर्थन हासिल है। इसी वोट बैंक के दम पर उन्होंने वर्ष 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा को उपचुनाव में धूल भी चटाया था।
इसी तरह हरिद्वार सीट पर भाजपा के निशंक को एक तो राज्य सरकार के खिलाफ एंटीइंकंबेसी का लाभ मिल रहा है तो दूसरी तरफ जिले से सटे मुजफ्फर नगर दंगे की वजह से हुए धु्रवीकरण का भी सहारा मिल रहा है। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हालांकि इस सीट पर पूरी ताकत लगा दी है लेकिन उनका पंाच साल यहां से सांसद और केन्द्र में मत्री रहना उनके खिलाफ जा रहा है। जनता उनसे नाराज है और पांच साल का हिसाब भी मांग रही है। इसका खामियाजा उनकी पत्नी का उठाना पड़ रहा है।
पौड़ी गढ़वाल में भाजपा उम्मीदवार बीसी खंडू़ड़ी को जहां निवर्तमान सांसद सतपाल महाराज का साथ मिल रहा है वहीं वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते विधायक का चुनाव हारने के चले जनता के मन में उनके प्रति मजबूत सहानुभूति भी उनकी जीत में मदद कर रही है। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार डा. हरक सिंह रावत की महिलाओं को लेकर चर्चा में बने रहना भी कांग्रेस के खिलाफ जा रहा है।
अल्मोड़ा और नैनीताल में क्रमशः कांग्रेस के प्रदीप टम्टा और केसी सिंह बाबा के खिलाफ केन्द्र और राज्य सरकारो की एंटीइंकबेसी के साथ खुद उनके पांच साल के कार्यकाल की एंटीइंकंबेसी भी खतरनाक साबित हो रही है। जबकि टिहरी गढ़वाल सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार साकेत बहुगुणा अपने पिता विजय बहुगुणा के समय में जमीनों की खरीद फरोख्त को लेकर चर्चा में रहते थे उसके बाद नामांकन पत्र में घोषित आय में एक साल में कई गुना बढ़ोतरी को लेकर भी बदनाम हुए जिसका खामियाजा उन्हें इस चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। इस तरह देखे तो प्रदेश की पांचो लोकसभा सीटों पर हालांकि लड़ाई बेहद रोचक है लेकिन राजनीतिक तर्को की कसौटी पर कसा जाए तो भाजपा का पलड़ा इस बार भारी रहने वाला है।