राजभवन, देहरादून में आयोजित दो दिवसीय ‘ख्वाजा अहमद अब्बास शताब्दी समारोह’ में देश के प्रतिष्ठित विद्वानों ने अब्बास साहब को महान स्वप्नदर्शी और अपने वक्त की बुराइयों के खिलाफ सबसे बड़ा योद्धा बताया। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य, फिल्म और पत्रकारिता जैसे माध्यमों को समकालीन चुनौतियों को ईमानदारी के साथ प्रस्तुत करना चाहिए जैसा कि अब्बास ने किया।
राज्यपाल डाॅ. अजीज कुरैशी की पहल पर देश भर में ख्वाजा अहमद अब्बास शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है। इस पहल का मुख्य मकसद यह है कि समाज इस बात को लेकर जागरूक हों कि ख्वाजा अहमद अब्बास ने एक कलाकार, साहित्यकार एवं पत्रकार के रूप में आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने में एक प्रेरक भूमिका निभाई।
आज राजभवन में इस समारोह के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में ‘नई धरती-नए लोग’ शीर्षक के तहत ख्वाजा अहमद अब्बास के साहित्य, वैचारिकी और पत्रकारिता पर मंथन हुआ। जबकि, दूसरे सत्र में एक फिल्मकार के तौर पर ख्वाजा अहमद अब्बास का मूल्यांकन किया जाना है।
पहले सत्र में दिल्ली विवि के प्रोफेसर एवं प्र्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. अली जावेद ने कहा कि आज के हालात में वो हर व्यक्ति प्रगतिशील है जो इंसान को इंसान की तरह देखे, उसे जाति, धर्म और नस्ल में विभाजित न करे। उन्होंने कहा कि साहित्य, पत्रकारिता या फिल्म जैसे माध्यम का उपयोग महज मौज-मस्ती और तफरीह के लिए नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए। ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपने वक्त में जिन सवालों का सामना किया, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। इस वक्त ऐसे हर विचार का विरोध किए जाने की जरूरत है जो किसी विशेष धर्म, संस्कृति और भाषा की बात करता है। ये सोच, इस मुल्क की ‘यूनिटी इन डायवर्सिटी’ के खिलाफ है।
सिनेमा लेखक और कलाकार अतुल तिवारी ने अब्बास की तीन फिल्मों-‘डा. कोटनीस की अमर प्रेम कहानी’, ‘नीचा नगर’ और ‘धरती के लाल’-को भारतीय फिल्म इतिहास की ट्रैंड-सैटर करार दिया। उन्होंने ख्वाजा अहमद अब्बास को महान स्वप्नदर्शी बताया।
प्रो. प्रमोद बी. लाल ने कहा कि ख्वाजा अहमद अब्बास की हर रचना, चाहे वह किताब हो या फिल्म, आज भी प्रांसगिक है और यही उनकी सबसे बड़ी खूबी भी है जो सोचने को मजबूर करती है। उन्होंने अपनी कृतियों में सौंदर्य और यथार्थ का गहरा संतुलन प्रस्तुत किया। प्रो. लाल ने ख्वाजा अहमद अब्बास पर सूफीज्म के प्रभाव का भी खासतौर से उल्लेख किया।
प्रो. हेमेंद्र चंदालिया ने ख्वाजा अहमद अब्बास के वैचारिक परिप्रेक्ष्य को विस्तार से सामने रखा। प्रो. हेमेंद्र ने कहा कि वे आरंभिक दिनों में गांधी से प्रभावित थे, बाद में नेहरूवादी हो गए। इसके साथ-साथ उनमें वामपंथी झुकाव भी साफ तौर पर दिखाई देता है।
सत्र की प्रभावशाली संयोजक और भारतीय योजना आयोग की सदस्य डाॅ. सैयदा हमीद ने कहा कि अब्बास साहब ने मौजूदा दुनिया को और बेहतर बनाने के लिए जिंदगी भर संघर्ष किया। उनकी तुलना शायद ही किसी दूसरे व्यक्ति से की जा सकती है।
समारोह के पहले दिन के अंतिम सत्र में ‘हमारी उर्दू मुहब्बत संस्था’ की ओर से ख्वाजा अहमद अब्बास पर बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति दी गई थी। इस प्रस्तुति में आॅडियो, वीडियो और छायाचित्रों के साथ गायिकी और जीवंत-संवादों का बहुत सुंदर संयोजन किया। करीब डेढ़ घंटे की इस प्रस्तुति में राज्यपाल डाॅ. अजीज कुरैशी लगातार दर्शक-दीर्घा में मौजूद रहे। बेगम जकिया जहीर के निर्देशन में हुई इस प्रस्तुति में डाॅ. सैयदा हमीद, बेगम जकिया जहीर और रजा मेहंदी ने सूत्रधार की भूमिका निभाई। इस प्रस्तुति के दौरान रीनी सिंह के गायन ने पूरे माहौल को और प्रभावशाली बना दिया।
आज के सत्र में कुमाउं विवि के कुलपति प्रो. एस.सी. धामी, लोक सेवा आयोग की सदस्य डा. छाया शुक्ला, स्थानीय संयोजक आलोक बी. लाल सहित अनेक विशिष्ट लोग एवं युवा भी मौजूद थे।