दिल्ली उच्च न्यायालय हरियाणा में रियल एस्टेट डेवलपर्स को लाइसेंस देने के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) की जांच पर 21 मई को सुनवाई करेगा। इनमें से एक मामला कथित रूप से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से भी जुड़ा हुआ है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूíत जी.रोहिणी और न्यायमूर्ति आर.एस.एंडलॉ ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में सुनवाई की तारीख 21 मई को मुकर्रर की।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता एम.एल.शर्मा ने न्यायालय से कहा कि डेवलपर्स और बिल्डर्स को 21,366 एकड़ कृषि योग्य जमीन बस्ती में तब्दील करने के लिए कई लाइसेंस बिना किसी वैधानिक नियमों के पालन किए दिया गया। इस फैसले से राजकोष को 3.9 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान हुआ है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि बस्तियों के बनाए जाने के लिए दिया गया लाइसेंस हरियाणा डेवलपमेंट एंड रेग्युलेशन आफ अर्बन एरियाज एक्ट, 1975 का उल्लंघन है।
याचिका में भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक शशि कांत शर्मा के तीन जून 2013 के पत्र को अमान्य घोषित करने की मांग की गई। इस पत्र में स्काइलाइट हॉस्पीटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए लाइसेंस की जांच और ऑडिट को वापस लेने की मांग की गई थी, जो कथित रूप से वाड्रा से संबंधित है। याचिका के अनुसार, जांच का आदेश शर्मा के पूर्ववर्ती विनोद राय ने दिया था।
शर्मा ने दावा किया था कि नगर व देश योजना विभाग (डीटीसीपी) ने गुड़गांव और अन्य हिस्से में फैले 21,000 एकड़ जमीन के लिए 2005 से 2012 के बीच सैंकड़ों लाइसेंस जारी किए थे। याचिका के अनुसार, "हरियाणा में डीटीपीसी द्वारा कॉलोनी के लिए व्यक्ति विशेष जो कि जमीन का मालिक नहीं है, को लाइसेंस जारी करना, न केवल अवैध है बल्कि प्रीवेंशन आफ करप्शन एक्ट 1988 के तहत भ्रष्टाचार का मामला है।"पीआईएल सीबीआई, कैग, स्काईलाइट हॉस्पीटैलिटी, वाड्रा और डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड के खिलाफ दायर की गई है।