बिहार में मुस्लिम समुदाय के लोगों की आर्थिक दशा राज्य के दलित हिंदुओं से बेहतर लेकिन उच्च जाति और अन्य पिछड़ी जाति के हिंदुओं के मुकाबले बदतर है। यह तथ्य एक सर्वेक्षण में पाया गया है। दिल्ली के सेंटर फॉर रिसर्च एंड डिबेट्स इन डेवलपमेंट पॉलिसी के अध्यक्ष अबू सालेह शरीफ ने वाशिंगटन के अमेरिका-भारत पॉलिसी इंस्टीट्यूट की साझेदारी में कराए गए सर्वेक्षण के आधार पर कहा गया, "बिहार के 37 में से 31 जिलों में मुस्लिमों की हालत दलितों के मुकाबले बेहतर है।"
यह रिपोर्ट 2011 की जनगणना पर आधारित है। बिहार की कुल आबादी 10.5 करोड़ है जिसमें 16.5 प्रतिशत मुस्लिम हैं। विकास के छह सूचकांकों, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार को बिहार में मुस्लिमों की हालत का आकलन करने में रिपोर्ट में शामिल किया गया है।
भारतीय मुस्लिम के हालात पर 2006 में प्रकाशित सच्चर समिति रिपोर्ट से भी जुड़े रहे सालेह ने कहा कि केरल की तरह बिहार के मुस्लिमों पहले से बेहतर हो रही है। सालेह ने कहा कि मुस्लिम समुदाय से जुड़ी बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में बाहर और विदेश गए और वहां से उन्हें पैसे भेजे जिसकी वजह से उनकी पारिवारिक स्थिति में सामाजिक-आर्थिक स्तर पर सुधार हो रहा है।
सर्वेक्षण के मुताबिक 12.2 फीसदी उच्च वर्ग के मुकाबले 13.5 फीसदी ग्रामीण मुस्लिमों को रोजगार प्राप्त हुआ है। इसी तरह 19 फीसदी उच्च वर्ग के मुकाबले 17.3 फीसदी शहरी मुस्लिमों को रोजगार मिला। पटना स्थित एशियाई विकास शोध संस्थान (आद्री) के सैबल गुप्ता ने कहा बिहार में मुस्लिमों की स्थिति में हाल के वर्षो में सुधार हुआ है लेकिन अभी इस दिशा में और भी काम करने की जरूरत है।
करीब नौ साल पहले बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के प्राजोजन में आद्री ने एक सर्वेक्षण किया था जिसके निष्कर्ष में कहा गया था प्रदेश में मुस्लिम सबसे गरीब समुदाय है। इस सर्वेक्षण में खुलासा किया गया था कि 49.5 फीसदी ग्रामीण मुस्लिम परिवार और 44.8 फीसदी शहरी मुस्लिम परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। इनमें से 19.9 फीसदी वास्तविक गरीब हैं और ग्रामीण इलाके में 28.04 फीसदी मुस्लिम भूमिहीन मजदूर हैं।