Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

विशेष आलेख : कैसे बदले बनारस ...!!

$
0
0
banaras train
भारी भीड़ को चीरती हुई ट्रेन वाराणसी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंच चुकी थी। मैं जिस डिब्बे में सवार था, कहने को तो वह आरक्षित था। लेकिन यर्थार्थ में वह जनरल डिब्बे जैसा ही था। चारों तरफ भीड़ ही भीड़। कोई कहता भाई साहब आरएसी है। कोई वेटिंग लिस्ट बताता। किसी की दलील होती कि बस दो स्टेशन जाना है। खैर , ट्रेन के प्लेटफार्म पर रुकते ही यात्रियों का बेहिसाब रेला डिब्बे में घुस आय़ा, जिसे देख कर मेरे हाथ - पांव फूलने लगे। इस बीच मेरी नजर कुछ दक्षिण भारतीय यात्रियों पर पड़ी। जो बेतरह परेशान होकर अपनी सीट ढूंढ रहे थे। उन्हें देख कर लग रहा था कि शायद वे सैर - सपाटे के लिए वाराणसी आए थे, और वापस लौट रहे थे। लेकिन मुश्किल यह थी कि डिब्बे में मौजूद यात्रियों में ज्यादातर अंग्रेजी नहीं समझते थे, और वे दक्षिण भारतीय यात्री हिंदी। उनमें केवल एक बूढ़ा व्यक्ति ही टूटी - फुटी हिंदी बोल पा रहा था। 

करीब एक घंटे की तनावपूर्ण तलाश और भारी तिरस्कार और उलाहना झेलने के बाद वे यात्री अपनी - अपनी बर्थ तक पहुंच सके। उन्हें देख कर मेरे मन में 1987 में की गई अपनी दक्षिण भारत यात्रा की यादें कौंध गई। तब ट्रेनों के आरक्षित  डिब्बों में अनारक्षित यात्रियों के प्रवेश पर रोक का नियम नहीं बना था, लेकिन क्या मजाल कि कोई भी अनारक्षित यात्री रिजर्व डिब्बे में प्रवेश कर जाए। हर डिब्बे के दरवाजे पर ही मुस्तैद ट्रेन टिकट परीक्षक इक्का - दुक्का अनारक्षित यात्रियों को दरवाजे पर ही रोक लेता, और उनसे डपटते हुए स्थानीय भाषा में पूछते कि क्या उनका रिजर्वेशन है। जवाब न में मिलने पर ही दरवाजे से उन्हें चलता कर दिया जाता। एक एेसे अनुशासित क्षेत्र से आए ये दक्षिण भारतीय यात्री अपनी इस यात्रा की अराजकता पर क्या सोच रहे होंगे, मन ही मन मैं यह सोच कर परेशान हो रहा था। 

इस प्रसंग का जिक्र मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी से चर्चा में आए  वाराणसी के कायाकल्प की उम्मीद और इस पर लग रही अटकलों के चलते कर रहा हूं। क्योंकि किसी नगर या क्षेत्र के विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता जितनी जरूरी है, वहां के परिवेश में आमूलचूल परिवर्तन भी उतना ही महत्वपूर्ण । क्योंकि मेरा मानना है कि इसके अभाव में वाराणसी क्या किसी भी तीर्थ या दर्शनीय स्थल का कायाकल्प नहीं किया जा सकता। क्योंकि बात सिर्फ वाराणसी तक ही सीमित नहीं है। कुछ महीने पहले एक निकट संबंधी की मृत्यु पर अस्थि - विसर्जन के लिए मेरे कुछ रिश्तेदार इलाहाबाद गए, तो वहां सामान्य पूजा - पाठ के लिए पंडों ने उनसे करीब 10 हजार रुपए ऐठ लिए। वह भी पूरी ठसक के साथ। ना - नुकुर करने पर पंडों ने भौंकाल भरा कि बाप का अस्थि - विसर्जन करने आए हो, यह कार्य क्या रोज - रोज होता है। पैसे नहीं हैं, तो कोई बात नहीं। लेकिन लेंगे तो दस हजार ही। झक मार कर मेरे रिश्तेदारों को मुंहमांगी रकम पंडों के हवाले करनी पड़ी। 

कुछ साल पहले अपनी पुरी यात्रा के दौरान मैने पाया कि मुख्य शहर व मंदिर में अब पंडों का आतंक कुछ कम हुआ है। लेकिन अन्य केंद्रों के बारे में दूसरे श्रद्धालुओं की धारणा कुछ वैसी ही  मिली। कुछ महीने पहले  पत्नी की जिद पर मैने पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल तारकेश्वर जाने का निश्चय किया। जाने से पहले कुछ जानकारों से सलाह लेने की गरज से मैने एक परिचित से संपर्क किया तो उसने झट मुझे वहां न जाने की सलाह दी। हैरानी से कारण पूछने पर उसने बताया कि वहां हर समय गुंडे - बदमाशों का जमावड़ा लगा रहता है। वे हर जोड़े को संदेह की नजरों से देखते हैं, और उन्हें परेशान करने और मुद्रा नोचन का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते। इससे पहले कई बार तारकेश्वर जा चुका था, , लिहाजा मुझे पता है कि वहां पंडे - पुजारियों की तो छोड़िए आम दुकानदार ही किस प्रकार श्रद्धालुओं को परेशान करते हैं। एक रुपए की चीज पूरी ठसक के साथ दस रुपए में बेचेंगे। तिस पर तुर्रा यह कि यहां पुण्य कमाने आए हो तो क्या इतना भी नहीं करोगे। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थलों के बारे में मेरी जानकारी बहुत ही कम है। लेकिन सुना है कि वहां से आने वाली ट्रेनों में चोर - उचक्के खासकर हिजड़े यात्रियों को काफी परेशान करते हैं।  

एेसे में वाराणसी ही क्यों अन्य किसी तीर्थ या दर्शनीय स्थल के कायाकल्प की उम्मीद के बीच इस अप्रिय  पहलू पर भी गंभीरता से विचार होना चाहिए। क्योंकि किसी राजनेता के व्यक्तिगत प्रयास या महज पैसों से तीर्थ या दर्शनीय स्थलों की यह भद्दी सूरत नहीं बदली जा सकती।  महज चकाचौंध पर जोर न देते हुए हर तीर्थ व दर्शनीय स्थलों को आम आदमी के लिए आदर्श स्थान बनाने का प्रयास ही लोगों में इनकी प्रासंगिकता को प्रतिष्टित करेगा। 





तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934 
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।

Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>