नई सरकार का गठन हो चुका है। नरेन्द्र मोंदी भारत के 15 वें प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता की बागडोर संभाल चुके हैं। नरेन्द्र मोदी 30 साल बाद एक ऐसे दल के प्रधानमंत्री बने हैं जिसके पास स्पश्ट बहुमत है। ज़ाहिर है ऐसे में जनता की उनसे अपेक्षाएं भी बहुत ज़्यादा हैं। सवाल यह है कि क्या नरेन्द्र मोदी देष के विकास को एक नई गति दे पाएंगे? ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए प्रधानमंत्री की क्या भूमिका होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि देष की स्वतंत्रता के 66 साल भी ग्रामीण क्षेत्र आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। खासतौर से सीमावर्ती इलाकों में तो हालात और भी ज़्यादा बदतर हैं। जम्मू एवं कष्मीर के सरहदी जि़ले पुंछ में भी मूलभूत सुविधाओं का हाल भी कुछ इसी तरह का है। पुंछ जि़ले की तहसील सुरनकोट के नाड़मनकोट गांव में लोग तमाम मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली, षिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क आदि से वंचित तो हैं ही लेकिन यहां सबसे बड़ी परेषानी पुल की है। इस गांव के बीचों बीच एक नाला है। इस नाले में साल भर पानी रहता है लेकिन बरसात के दिनों में इस नाले में पानी बहुत ज़्यादा भर जाता है, जिसकी वजह से लोगों को बड़ी कठिनाईयोें का सामना करना पड़ता है। नाले पर पुल निर्माण न होने की वजह से लोगों को अपनी जान जोखिम में डालकर इस नाले को पार करना पड़ता है। खासतौर से उस वक्त लोगों की परेषानी और बढ़ जाती है, जब कोई बीमार पड़ता है। मरीज़ को अस्पताल पहुंचाने के लिए इसी तेज़ रफ्तार नाले को पार करना पड़ता है। कई बार तो नाले को पार करते वक्त मरीज़ को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। इन कठिन परिस्थितियों में यहां के लोगों की जिंदगी जी का जंजाल बन गयी है। खुदा के दरबार में देर है, पर अंधेर नहीं, यह कहकर यहां के लोग अपनी जिंदगी गुज़ार रहे हैं।
इस गांव की आबादी लगभग 14000 हज़ार है। स्कूल जाने के लिए बच्चों को इसी नाले से गुज़रना पड़ता है। इस बारे में गांव की स्थानीय निवासी बेगम जान कहती हैं कि सर्दी के मौसम में भी स्कूल और काॅलेज के छात्र-छात्राओं को नाले के ठंडे पानी से होकर गुज़रना पड़ता है। यह नाला इस गांव की लाइफलाइन है, मगर किसी भी जनप्रतिनिधि का ध्यान इस नाले के निर्माण को लेकर नहीं है। नाले पर पुल के निर्माण होने के बारे में नाड़मनकोट के नायब सरपंच हरनाम सिंह कहते हैं कि पुल निर्माण के लिए कई बार सरकार ने पैसा अधिकृत किया है लेकिन मालिक और ठेकेदार के आपसी झगड़े की वजह से पुल के निर्माण का काम षुरू होने से पहले ही बंद हो जाता है या फिर ऐसे मौसम में षुरू होता है, जब बारिष बहुत ज़्यादा होती है। यह प्रषासन की एक बड़ी कमज़ोरी है जिस पर अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया गया है। इस बारे में पंचायत मेंबर मोहम्मद सगीर कहते हैं कि एक ओर तो नाले में बह रहा पानी लोगों के लिए मुष्किल खड़ी कर रहा है, वहीं दूसरी इस गांव के लोगों को पानी की एक एक बंूद के लिए तरसना पड़ता है। इस गांव के लोग अपने मवेषियों की प्यास बुझाने के लिए डेढ़ किलोमीटर दूर से नाला पार करके पानी लाते हंै। सरकार हर जगह पाइपों के ज़रिए पानी पहुंचा रही है लेकिन नाड़मनकोट गांव में टैंक तो बने हैं, मगर टैंकों में पानी न होने की वजह से घरों में सप्लाई नहीं किया जाता। इस गांव के विकास के लिए सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इस गांव के हर अधूरे काम के लिए सरकार का ढुलमुल रवैया जि़म्मेदार है। यहां के लोगों की स्थिति को देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहां इंसाफ के नाम पर इंसाफ का गला दबाया जा रहा है। इस बारे में गांव के स्थानीय निवासी मोहम्म्द षरीफ कहते हैं कि ऐसी कौन सी समस्या है जिसका सामना हम लोगों ने नहीं किया है। इस लेख को पढ़ते समय पाठकों को इतना विष्वास हो गया होगा कि नाले पर पुल निर्माण के बिना यह गांव विकास की राह पर गामज़न नहीं हो सकता। ऐसे में सरकार को जल्द से जल्द इस नाले पर पुल निर्माण के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है। नाले पर पुल का निर्माण न होना सरकार की इस गांव की जनता के प्रति बेरूखी को उजागर करता है। इस उम्मीद के साथ कि नाले पर कभी तो पुल बनेगा, यहां के लोग तमाम मुष्किलों से दो चार हुए भी जीवन के सफर में आगे बढ़ रहे हैं।
रूखसार कौसर
(चरखा फीचर्स)