बाघों के शिकार से हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के सिरमौर देशों को भी तगड़ा झटका लगा... जी हां, तभी तो बाघों को बचाने व उनकी संख्या बढाने की कोशिशें होंने लगीं। हालात यह हैं कि आैसत हर साल दुनिया में सौ से अधिक बाघ शिकारियों व वन्य जीव तस्करों के शिकार हो जाते हैं। एक दशक के दौरान एक हजार से अधिक बाघ मारे जा चुके हैं। अभी हाल ही में हिन्दुस्तान के अभ्यारणों व वन क्षेत्रों में कई बाघ मारे गये जिसको लेकर हो हल्ला मचा लेकिन वन्य जीव अधिनियम में शिकारियों व तस्करों के लिए सजा का कड़ा प्रावधान होने के बावजूद वन्य जीवों के शिकार पर सख्त शिकंजा नहीं कसा जा सका। बाघ की खाल व अन्य अवशेषों की कीमत आठ से दस लाख के करीब तस्कर वसूल करते हैं। इसके साथ ही आठ से दस लाख की यह कीमत आैर अधिक बढ जाती है जब बाघ की खाल खरीदने वाला बड़ा आदमी या शान-ओ-शौकत वाला होता है। बाघों के शिकार व तस्करी वाले देशों में हिन्दुस्तान, नेपाल, चीन, बांग्लादेश आदि माने जाते हैं, लेकिन बाघों की खाल की तस्करी का हर रास्ता चीन की ओर संकेत करता है।
दुनिया के 25 देशों के अभ्यारणों व वन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बाघ पाये जाते थे लेकिन वन्य जीवों की तस्करी व शिकार होने के कारण अब बाघ सिमट कर बमुश्किल एक दर्जन देशों में ही रह गये हैं। इनमें भारत, वियतनाम, थाईलैण्ड, बांग्लादेश, भूटान, चीन, कम्बोडिया, इंडोनेसिया, मलेशिया, नेपाल, म्यांमार, सोवियत रुस आदि हैं। विशेषज्ञों की मानें तो सौ सालों में बाघों की आबादी 97 प्रतिशत से अधिक खत्म हो चुकी है। सौ साल पहले दुनिया में बाघों की संख्या एक लाख से भी अधिक थी लेकिन तस्करों व शिकारियों का लगातार निशाना होते रहने के कारण काफी कम हो गयी है। हालात यह हैं कि दुुनिया के सात प्रतिशत वन क्षेत्र में ही बाघों की आबादी रह गयी है। बाघों की नौ प्रजातियों में तीन प्रजातियां तो लुप्त हो चुकी हैं जबकि अन्य प्रजातियां खतरे मे हैं। इनमें साइबेरियन, एमूर टाइगर, बंगाल टाइगर, इंडोचाइनीज टाइगर, सुमात्रा टाइगर, मलाया टाइगर आदि हैं। बाघों की संख्या कम होने का मुख्य कारण बाघों का अवैध शिकार व तस्करी है। वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबंध के लिए कानून तो है लेकिन कानून का सख्ती से पालन नहीं हो पाता जिसका फायदा तस्कर व शिकारी उठाने में कामयाब होते हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो बाघ के अवशेषों का उपयोग चीन व अन्य देशों में आैषधि के लिए किया जाता है। बाघों की लगातार कम होती संख्या से चीन, रुस व अन्य देश बेहद चिंतित हैं। पीटर्सबर्ग में टाइगर समिट के सम्मेलन में इन हालातों पर बेहद अफसोस जताया गया बल्कि बाघों को संरक्षित करने व उनकी संख्या बढ़ाने का संकल्प लिया गया था। इस सम्मेलन में रुस के प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति वेन जियाबाओ व अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष या प्रमुख शामिल हुए थे। जिसमें बाघों की संख्या वर्ष 2022 तक दो गुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह दुनिया के सभी बाघ प्रजातियों को सुरक्षित, संरक्षित व विकसित करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिश है लेकिन बाघ संरक्षण की यह अंतरराष्ट्रीय कोशिश तभी सार्थक हो सकेगी, जब बाघों के अवैध शिकार पर सख्ती से अंकुश लग सकेगा। दुनिया के देशों के लिए वन्य जीव संरक्षण कानून बनाना व उनमें बदलाव करना कोई मुश्किल कार्य नहीं होगा लेकिन उसे सख्ती से लागू करना कठिन नहीं लेकिन काफी मुश्किल अवश्य होगा।
इस अंतरराष्ट्रीय कोशिश की सार्थकता तो तभी है जब बाघों के अवैध शिकार पर प्रतिबंध सख्ती से लागू हो जाए। वन्य जीव विशेषज्ञ रतन राठौर कहते हैं कि बाघों को संरक्षण देने व उनकी आबादी को बढाने के लिए आवश्यक होगा कि बाघों के शिकार पर पूर्णता प्रतिबंध लगे। अवैध शिकार पर न केवल प्रतिबंध लगे बल्कि कानून इतना अधिक सख्त हो कि अवैध शिकार करने वाले बाघों को मारने का साहस न जुटा सकें। इसके अलावा बाघों के प्रजनन को बढावा दिया जाना चाहिए। जिससे उनकी आबादी में इजाफा हो सके। फीमेल टाइगर डेढ से दो वर्ष में प्रजनन के काबिल हो जाती है। फीमेल टाइगर वर्ष में दो बार बच्चे दे सकती है। आैसत एक बार में तीन से चार बच्चों को जन्म देती है। इस प्रकार साल में एक फीमेल छह से आठ बच्चों को जन्म देती है। सामान्यत: टाइगर की आैसत आयु 12 वर्ष होती है लेकिन कई बार टाइगर 18 से 20 वर्ष तक जीवित रहता है। इस प्रकार देखा जाए तो एक फीमेल टाइगर 80 से 100 बच्चों को जन्म दे सकती है। फीमेल टाइगर के प्रजनन से लेकर उसके बच्चों को सुरक्षित रखने की भी आवश्यकता होगी क्योंकि बच्चे पैदा होने के बाद कुछ समय बाद मर गये या मार दिये गये तो भी उनकी आबादी अपेक्षित तौर तरीके से नहीं बढ़ पायेगी। लिहाजा बाघों को चौतरफा संरक्षण मिले तभी बाघों की संख्या बढ सकेगी।
वन्य जीव विशेषज्ञों की मानें तो हिन्दुस्तान में बाघों की आबादी 3846 आंकलित है। बाघों की सर्वाधिक आबादी मध्य प्रदेश के वन क्षेत्रों में होने का अनुमान है। मध्य प्रदेश में 927 बाघ होने का अनुमान है। जबकि उत्तर प्रदेश में 475 व आसाम में 458 बाघ होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसी प्रकार आंध्र प्रदेश में 171, गोवा दमन दीव में 6, कर्नाटक में 350, मणीपुर में 31, मिजोरम में 12, उड़ीसा में 194, सिक्किम में 2, त्रिपुरा में 5, पश्चिम बंगाल में 361, अरुणाचल प्रदेश में 180, बिहार में 103, गुजरात में एक, केरला में 57, महाराष्ट्र में 257, मेघालय में 53, नागालैण्ड में 83, राजस्थान में 58, तमिलनाडु में 62 बाघ होने का अनुमान है। हालांकि बाघों को संरक्षित, सुरक्षित व उनकी आबादी को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं लेकिन उनकी सार्थकता तभी सामने तब आयेगी जब बाघों की आबादी में इजाफा होता दिखेगा।
---उमा सिंह चौहान---
कानपुर