पटना। इस समय नन्हा लड्डू कुमार परेशान हैं। वही लड्डू कुमार हैं जिनके पिताश्री 10 मई 2014 को परलोक सिधार चुके हैं। लड्डू के पिता सुरता मांझी एक बार नहीं दो बार टी.बी.रोग की चपेट में आए। रद्दी कागज का धंधा करने वाले सुरता ने मेहनत करने वाले कार्य करने के बहाने बनाकर शराब से दोस्ती कर लिया। उसके शरीर में दवा असरहीन और दारू कमजोर से कमजोर करता चला गया। नतीजा सामने है। वह मौत के मुंह में समा गया। वह अपने चार बच्चे और विधवा को छोड़ गए। जिंदगी में बीपीएल कार्ड नहीं बना सके। मरने के बाद बीपीएल कार्ड नहीं रहने से कबीर अंत्येष्टि योजना की राशि से विधवा महरूम हो गयी। अभी चार बच्चे है। सभी छोटे-छोटे हैं। तीन को पिताश्री का रोग टी.बी. हो गया है। कुर्जी होली फैमिली अस्पताल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास केन्द्र से दवा- दारू कराया गया है। अभी तो ठीक है। पिताश्री के साया सिर पर से हटने के बाद विधवा मां सुशीला देवी क्या कर सकती हैं। अगर भरपेट खाना और वह भी संतुलित आहार नहीं मिला। भगवान न करें कि बच्चे पुनः टी.बी.रोग के शिकार न हो जाए। वैसे तो 75 प्रतिशत उम्मीद है। कभी न कभी टी.बी.बीमारी की चपेट में बच्चे आ ही जाएंगे।
पिता के सिर पर से साया हटने के बाद लड्डू कुमार दोहरी जिम्मेवारी से बंद गया है। पहले पेट पूजा और उसके बाद स्कूल जाता हैं।शहर के बाबूओं के घरों से निकले और फेंके गए कूड़ों के ढेर की ओर। जहां लड्डू ही अकेला नहीं रहता है। वहां पर चंद आवारा कुत्तों के साथ दो-दो हाथ करना पड़ता है। आवारा कुत्ते भी कूडों के ढेर पर पेट भरने की तलाश में निकलता है। वह भी अकेला चट करने की फिराक में रहता है। इसके लिए लड्डू कुमार भी रात में सोते वक्त कपड़े पहने वाले ही कपड़े पहने निकल जाता है। मुसहर समुदाय के पास वहीं ओढ़ना और वहीं बिछावन ही होता है। वह सुबह 5 बजे से ही हाथ में कूड़ों के ढेर से रद्दी समान रखने के प्लास्टिक का बोरा उठा लेता है। अपने नन्हें हाथों से रद्दी बिनता है। जब रद्दी समानों से बोरा भर जाता है। तो उसे बाजार में बेंच देता है। 25-25 रू. आमदनी हो जाता है। उन पैसों से बाजार में ही लिट्ठी खाकर पेट भरता है। अब दूसरी भूमिका में आ जाता है। घर से स्कूली बस्ता उठाता है। कोई मिशनरी संस्था के द्वारा स्कूल खोला गया है। उसी में कुछ घंटे पढ़ने जाता है। वहां भी ‘क’ से अक्षर लिखने और पढ़ाने का कार्य होता है। बाल्यावस्था में लड्डू को केवल ‘क’ ही नहीं आता है। उसको ‘ख’ भी आता है। प्रथम वह ‘क’ से कमाना और ‘ख’ से खाना सीख गया है। ‘क’ से कलम और ‘ख’ से खरबूज समझता ही नहीं है। कारण कि एल.सी.टी.घाट, गंग स्थली वाले मुसहरी में एन.जी.ओ. वाले आते हैं। सब के सब ‘क’ से ही शुरू करते हैं। मिशन पूरा होने के बाद चले जाते हैं। इसके बाद अन्य कोई एन.जी.ओ. आते हैं। वे भी ‘क’ से ही शुरू करते हैं। इसी लिए मुसहरी में मात्रः एक परमेश्वर मांझी ही मैट्रिक उत्र्तीण हो सका है। अभी परमेश्वर मांझी, सदस्य है। वे उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत के सदस्य हैं। यहां के उप मुखिया की मौत के बाद परमेश्वर मांझी को उप मुखिया बनने का मौका था। जो ऊपर वाले भगवान और नीचे वाले प्रभु को नागवार लगा। इस तरह मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी जी के पहले उप मुखिया बनने का सपना परमेश्वर मांझी का तार-तार हो गया।
आलोक कुमार
बिहार