- सब कुछ पहले जैसा लेकिन हर जगह मातम ही मातम
एक साल हो गए इस बीभत्स त्रासदी के लेकिन सब पहले जैसा लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी से जूझती केदारघाटी 16-17 जून 2013 की आपदा के एक साल बाद भी हल्की से बारिश तक से सिहर उठती है। आपदा के एक साल बाद भी बरसात की बूंदों को देखकर केदार घाटी के लिए यह तय करना मुश्किल है कि यह बूंदे जीवनदायिनी हैं या मौत जलजला। कारण एक साल में भी केदारघाटी को यह विश्वास नहीं है कि वे पहाड़ों की गोद में सुरक्षित हैं। उनके जेहन में आज भी यह बात उनके जेहन में रह -रह कर कांैधती है कि अगर शिव का तीसरा नेत्र खुला तो तबाही का फिर वही मंजर सामने हो सकता है। बचाव और राहत वाले उतने ही लाचार दिख सकते हैं जितना कि एक साल पहले दिखाई दिए थे। जान बचाने से लेकर जान लेने तक के वही किस्से सामने आ सकते हैं। लेकिन वे फिर उसी शिव के भरोसे वहां रहने को मजबूर हैं जिसके तीसरे नेत्र की तबाही ने उनका सब कुछ पिछले साल लील लिया था, उन्हे सरकारों पर तो तनिक भी भरोसा नहीं लेकिन उसी भगवान भोले पर विश्वास है कि वे ही उनके जीवन में खुशियां दे सकते हैं।
हर तरफ लापरवाही ही लापरवाही का मंजर
16-17 जून, 2013 के बाद बहुगुणा शासनकाल में आपदा से निपटने के जितने वादे हुए वे धरातल पर नहीं उतरे। न खतरे की पूर्व चेतावनी का तंत्र ही सही तरीके से विकसित हो पाया। न यह साफ है कि मानसून में पहाड़ किस-किस तरह के खतरे की जद में आ सकता है। न नदियों के बाढ़ क्षेत्र, नदी नालों के किनारे से लोग हटे और न ही यह आकलन हो पाया कि नदियां, नाले अगर विकराल हो जाएं तो कितना नुकसान हो सकता है। न इस बात की पड़ताल हुई कि आपदा के लिहाज से कौन-कौन से गांव, शहर खतरे की जद में हैं। न वैकल्पिक सड़क मार्ग बन पाए और न ही पुल-पुलिया। न नदियों का मलवा हट पाया और न ही बाढ़ नियंत्रण के काम पूरे हो पाए हैं।
एक साल बाद भी मंदाकिनी और अलकनंदा के पानी की तरह रिस रहे हैं जख्म
- नहीं बन पाया ग्लेशियर, झीलों की निगरानी का तंत्र
हालांकि आपदा के तुरंत बाद से ही सबक सीखने की बात बहुत हुई। पर धरातल पर कुछ नहीं। न प्रदेश का आपदा प्रबंधन तंत्र डाप्लर रडार लगा पाया। न ग्लेशियर झीलों की निगरानी का तंत्र विकसित हो पाया। न संचार की विश्वसनीय व्यवस्था विकसित हो पाई। आपदा प्रबंधन की अधिकतर योजनाएं कागजों पर हैं और वक्त आने पर उनका कितना उपयोग हो पाएगा यह भी साफ नहीं है। आपदा प्रबंधन तंत्र संविदा अधिकारियों के भरोसे हैं। इन अधिकारियों की मुसीबत यह है कि जिला स्तर पर ये पुलिस और अन्य महकमों के संपर्क में कम ही हैं। अगर फिर आपदा आई, मौसम फिर खराब रहा, लगातार तेज बरसात रही तो। एक बार फिर पहाड़ की सांसों को थामने वाली सड़कों का बुरा हाल तय है। कारण सिरोबगड़ से लेकर पिछली आपदा के दौरान नए बने करीब 192 भूस्खलन क्षेत्र फिर से सक्रिय हो सकते हैं। भूस्खलन क्षेत्रों का ट्रीटमेंट नही हुआ। पिछली आपदा में आपदाग्रसित गांवों की संख्या दोगुनी हो गई थी।
आपदा पुर्नवास कार्य फाइलों में होकर रह गए कैद
फिर वही हालात बने तो ऐसे गांवों की संख्या 271 से और अधिक हो जाये। एक भी अति संवेदनशील गांव इस एक साल में शिफ्ट नहीं हो पाया। पुनर्वास फाइलों में कैद है। आपदा के एक साल बाद राहत और बचाव के क्या हाल हैं। एसडीआरएफ की दो कंपनी केदारनाथ रूट पर तैनात हैं। नेहरु पर्वतारोहण संस्थान सक्रिय है। पिछले साल पुलिस और बचाव दल शुरू के तीन दिन तक सड़क और संपर्क मार्गों के टूटने के कारण आपदा प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंच ही नहीं पाए थे। सेना ने हैलीकाप्टर की मदद से राहत और बचाव का अभियान चलाया था। ठीक यही स्थिति इस बार भी सामने दिख रही है। इतना साफ दिख रहा है कि फिर आपदा आई तो प्रदेश सरकार के पास सेना से मदद मांगने के अलावा कोई और चारा नही होगा। इस एक साल में एक बार भी ऐसी कोई मॉक ड्रिल नही हुई जिससे यह पता लगता कि आपदा को लेकर संबंधित विभाग और अन्य ऐजेंसियां कितनी तत्पर हैं पर पिछली आपदा के कारण लोग अपने स्तर पर सतर्क हैं और सरकारी मशीनरी भी यह जान चुकी है कि हालात किस हद तक विकट हो सकते हैं। लिहाजा तत्परता में थोड़ा सुधार देखने को मिल सकता है पर इससे हालात बदल जाएंगे यह कहना मुश्किल है। चार धाम यात्रा को लेकर इस बार इतनी भीड़ नही है पर पहाड़ों में बसे लोगों के सर पर तलवार तो लटकी ही हुई है।
कई सवाल अभी खड़े हैं जिनका जवाब नहीं किसी के पास
उत्तराखंड त्रासदी की भयानक तस्वीरें एक बार फिर आंखों के सामने आ गईं। तबाही की चपेट में आए लोगों का भारी संख्या में नरकंकाल एक बार फिर मिले हैं। अभी तक बर्फ जमी होने के कारण वहां कुछ भी नहीं दिख रहा था। उत्तराखंड में जंगलचट्टी इलाके में बर्फ पिघलने के बाद केदारनाथ हादसे के शिकार लोगों के नरकंकाल और शव फिर से मिलने लगे। आसपास रह रहे लोगों का दावा है कि जंगलचट्टी इलाके में सौ से ज्यादा नरकंकाल हो सकते हैं। नरकंकाल ऊपरी इलाकों में मिले। नरकंकाल देख अंदाजा लगाया जा रहा है कि कंकाल ऐसे लोगों का है जिनकी जान भूख और प्यास से गई है। सरकारी सूची के अनुसार केदारनाथ हादसे में मारे गए लोगों की संख्या 3782 थी। उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल केदारनाथ हादसे के शिकार सभी शवों का अंतिम संस्कार करने का दावा किया था। वैसे सरकार ने मृतकों की संख्या बढ़ने की बात कही थी। नरकंकालों के मिलने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि शवों को तलाशने और उनके अंतिम संस्कार में कोताही बरती गई? सबसे बड़ा सवाल...केदारनाथ हादसे के शिकार लोगों के जो आंकड़े उत्तराखंड सरकार ने दिए थे, वो भी गलत थे? केदारनाथ हादसे के शिकार लोगों के नरकंकाल मिलने से उत्तराखंड की राजनीति गरमाई। उत्तराखंड बीजेपी ने केदारनाथ के आसपास फैले मलबे में सैकड़ों नरकंकाल के होने का दावा किया।
अभी तक नहीं बनी पुनर्वास और मुआवजे की नीति
16-17 जून 2013 की भीषण आपदा को एक वर्ष पूरा हो गया, मुआवजा बांटने, पुनर्वास का कार्य अभी भी अधूरा है। आपदाग्रस्त क्षेत्रों के पैदल मार्ग, मोटर मार्ग कहीं खुले भी हैं तो जर्जर स्थिति में हैं। इन मार्गों को बंद होने के लिये पहली बरसात का इंतजार है। आपदाग्रस्त इलाकों में अभी भी पैदल और मोटर मार्ग बंद पड़े हैं। गांवों में बिजली, पानी की व्यवस्था बहाल नहीं हो सकी हैं आपदा के जख्म हरे हैं और आपदा के बाद उठे सवाल आज भी जवाब मांग रहे हैं। चारधाम यात्रा, कैलाश यात्रा को शुरू करने से यह नहीं झुठलाया जा सकता है कि अभी भी उत्तराखंड का आपदाग्रस्त इलाका सामान्य स्थिति में नहीं आ पाया है। दुख की बात यह है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड की आपदा की त्रासदी की चर्चाऐं हुई लेकिन सरकार ने अभी तक पुनर्वास और मुआवजे की नीति तक नहीं बनायी।
धूल चाटने को मजबूर हैं मुआवजे की 12 हजार से अधिक फाइलें
आपदा के एक साल बाद आज भी सरकार के पास आपदा के बाद होने वाले राहत, मुआवजे और पुनर्वास के लिये कोई रूट मैप तैयार नहीं है। विश्वबैंक तथा कुछ राज्यांे तथा केन्द्र सरकार की भारी भरकम सहायता के बाद सरकार ने मुआवजे की राशि कुछ बढ़ा दी लेकिन सरकार पुनर्वास पर एक कदम आगे नहीं बढ़ सकी। उत्तराखंड के आपदाग्रस्त क्षेत्रों की तहसीलों में नुकसान से प्राप्त होेने वाले मुआवजे की 12 हजार से अधिक फाइलें धूल चाट रही हैं। अभी तक सरकार राहत, मुआवजा बांटने का कार्य भी पूरा नहीं कर पायी है।
आपदा राहत फंड से हुआ हैलीकाप्टरों का करोड़ों रूपये का भुगतान
सरकार की इस धीमी गति के कारण आपदा प्रभावितों का धैर्य अब जवाब देने लगा हैं। धर-बार खो चुके आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिये विश्वबैंक द्वारा प्राप्त पांच लाख रूपये की राशि की कुछ किस्तें थमाकर सरकार अपनी पीठ खुद ही थपथपा रही है। उत्तराखंड की सरकार ने आपदा राहत फंड से हैलीकाप्टरों का करोड़ों रूपये का भुगतान कर दिया। जबकि उस समय राज्य के अपर मुख्य सचिव ने कहा था कि आपदा राहत कार्यों में लगाये गये हैलीकाप्टरों को सरकार को केवल ईंधन देना है लेकिन इनको एक मोटी राशि का भुगतान किया जाना चर्चा का विषय बना हुबा है।
आखिर कौन है केदारघाटी का गुनहगार
- पूर्वमुख्यमंत्री बहुगुणा और अपरमुख्य सचिव पर चले गैरइरादतन हत्या का मामलाः निशंक
केदारघाटी की त्रासदी के एक साल बाद भी इस भयानक हादसे में मारे गए लोगांे के शवांे का नरकंकालो के तौर पर मिलना इस राज्य की सरकार और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा के लिये न सिर्फ शर्म की बात है बल्कि इसके मुंह पर करारा तमाचा भी है क्योकि आपदा के दौरान अपनों को खो चुके परिजन लगातार अपनों के लिये पिछले एक साल से भटक रहे थे लेकिन यहां की सरकार और अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा लगातार यही कहते रहे कि केदारघाटी में कोई शव नहीं इसीलिए हमको तीर्थयात्रियों को खोजने का काम बंद करना पड़ा है। लेकिन एक साल बाद अब जो देखने को मिल रहा है उसकी वजह से देश ही नहीं विदेशो में भी उत्तराखंड की छवि को बट्टा लग गया है। अब यहाँ सवाल ये पैदा होता है कि आपदा राहत और आपदा प्रभवितो के नाम पर जो सात सौ करोड़ से अधिक खर्च किया गया आखिर वो किधर गया इसका जवाब तो सरकार व अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा को देना होगा और साथ ही ये भी बताना होगा की केदारघाटी का गुनहगार कौन है और इतनी बड़ी गलती जिसको माफ नहीं किया जा सकता क्योंकि केदार में आपदा राहत कार्यों का जिम्मा इसी ने खुद उठाया था अब उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की जा रही है। लगातार मिल रहे कंकालों के बाद हजारों तीर्थ यात्रियों सहित स्थानीय लोगों की हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए यह कहना है पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद डा. रमेंश पोखरियाल निशंक का।
क्या हुआ था जून, 2013 में
- - एक जून को मानसून के सक्रिय होने का ऐलान हुआ था। 15 दिन में मानसून केदारनाथ क्षेत्र तक पहुंच गया था।
- - मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के कारण केदारनाथ और आसपास के क्षेत्र में जून 15 से लेकर 17 तक करीब 345 मिमी तक बरसात हुई। विशेषज्ञों की नजर में यह कुछ-कुछ बादल फटने जैसा था।
- - 16 जून की रात भारी बरसात के कारण केदारनाथ में पानी का सैलाब आया।
- - 17 जून सुबह केदारनाथ में ऊंचाई पर स्थिति गांधी सरोवर या चैराबारी झील टूट गई। इस झील में पानी निकासी का कोई रास्ता नहीं था। भारी बरसात, फरवरी में जमकर हुई बर्फबारी के कारण लबालब भरी झील फट गई और पानी का सैलाब मलवे के साथ केदारनाथ, रामबाड़ा को बहा ले गया। इस सैलाब का असर रुद्रप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक देखने को मिला।
(राजेन्द्र जोशी)
देहरादून