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उत्तराखंड की विस्तृत खबर (16 जून)

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आपदा प्रभावितों पर मेहरबान हुई सरकार : सुरेन्द्र कुमार

देहरादून, 16 जून (राजेन्द्र जोशी )। केदारनाथ आपदा में अपनी जान गवां चुके स्थानीय लोगों के आश्रितों को सरकारी नौकरी के साथ ही प्रभावित परिवारों को दो लाख रूपये का अतिरिक्त मुआवजा व गैरसैंण में प्रस्तावित सचिवालय भवन के खण्डांे(ब्लाक) के नाम आपदा प्रभावित स्थानों के नाम पर रखे जायेंगे। सोमवार को आपदा केदारनाथ त्रासदी के एक साल पूरे होने पर राज्य सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आपदा प्रभावित इलाकों के प्रभावित परिवारों के लिए तीन महत्पूर्ण घोषणायें की हैं जिनमें प्रदेश के आपदा प्रभावित परिवारों के एक व्यक्ति को सरकारी विभाग में उसकी योग्यतानुसार सरकारी नौकरी दिये जाने का निर्णय लिया गया है। वहीं प्रदेश के आपदा प्रभावित परिवारों को पूर्व में दिये गये पांच लाख रूपये के मुआवजा राशि के अतिरिक्त दो लाख रूपये प्रति प्रभावित परिवार और मुआवजा राशि दी जाएगी ताकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक रहे वहीं राज्य सरकार ने एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय में यह घोषणा की है कि गैरसैण्ंा में प्रस्तावित सचिवालय के भवन व उसके प्रत्येक भवन खण्ड का नाम आपदा प्रभावित क्षेत्र के एक कस्बे के नाम से होगा। उन्होने बताया कि इसके पीछे सरकार की मंशा साफ है कि वह इन आपदा प्रभावित इलाकों की याद को अपने स्मृति पटल पर स्थायी रखना चाहती है ताकि इन क्षेत्रों के बारे में राज्य सरकार लगातार चिंतित रहे और वहां विकासकार्य अनवरत चलते रहें। उन्होने बताया कि प्रदेश सरकार आपदा प्रभावित इलाकों में आधारभूत ढांचें को खड़ा करने व आपदा प्रभावित परिवारों को उनके मुख्य जीवन में शामिल करने के लिए कृतसंकल्पित है। एक सवाल के जवाब में उन्होने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा की गयी गल्तियों को सुधारा जाएगा और उन गल्तियों से सबक लेते हुए भविष्य में इसकी पुनरावृति न हो यह कोशिश की जाएगी। 

विस्थापन व पुर्नवास की मांगों को लेकर धरना

देहरादून/ अगस्त्यमुनि, 16 जून (निस)।  आपदा के एक वर्ष पूर्ण होने के बावजूद अभी तक पीडिंतों का विस्थापन व पुर्नवास न किये जाने पर आपदा प्रभावितों ने सोमवार को धरना देकर सरकार के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया। पीडि़तों ने चेतावनी दी है की यदि शीघ्र ही उनका विस्थापन व पुर्नवास न किया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगें। आपदा के एक वर्ष पूरे होने पर केदारघाटी विस्थापन व पुर्नवास संर्घष समिति के तत्वाधान में आपदा प्रभावित स्थानीय रामलीला मैदान में एकत्र हुए और वहां धरने पर बैठे। इस अवसर पर समिति के अध्यक्ष पूर्व दायित्वधारी अजेन्द्र अजय ने कहा कि आपदा को आज एक वर्ष का समय हो चुुका है। मगर सरकार पीडि़तों का विस्थापन व पुर्नवास नहीं कर पायी है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने पीडि़तों को तीन किश्तों में पांच लाख रूपये का प्राविधान किया है। पीडि़तों को पहली किश्त तब वितरित की जा रही है जब वे भवन निर्माण के लिए भूमि के दस्तावेज प्रस्तुत करेंगे। मगर अधिकांश पीडि़तों के पास भूमि भी नहीं रह गयी है। ऐसे में पीडि़तों के सामने यह समस्या पैदा हो गयी है कि वह भूमि की व्यवस्था कैसे करे ? उन्होंने पांच लाख रूपये की धनराशि एकमुश्त पीडि़तों को दिये जाने की मांग की । इसके अलावा यह धनराशि बढाये जाने अथवा भूमि उपलब्ध कराये जाने की मांग भी की। उन्होने कहा कि पूर्व में सरकार द्वारा बेघर लोंगों को एक हजार वर्ग  फीट भूमि उपलब्ध करने और इंिन्दरा आवास योजना के तहत् 75 हजार रूपये देने की घोषणा भी की गयी मगर उस पर कोई अमल नहीं किया गया। इस मौके पर वक्ताओं ने पीडि़त परिवारों के लिए प्रतिमाह तीन हजार रूपये किराया राशि बतौर दिये जाने सम्बन्धी शासनादेश के ठीक से क्रियान्वयन न होने पर रोष जताया और कहा कि कई पीडि़तों को किराया राशि नियमित रूप से नहीं मिल पा रही है। जनपद में निर्माणाधीन सिंगोली- भटवाड़ी जल विघुत परियोजना की निर्माणदायी कंपनी एल0 एन0 टी0 द्वारा पीडि़तों को अभी तक मुआवजा न दिये जाने पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया। पीडि़तों ने आरोप लगाया कि कंपनी द्वारा पीडि़तो के लिए स्वीकृत मुआवजा राशि से प्रदेश सरकार सड़क, पुल इत्यादि का निर्माण करवा रही है। साथ ही चेतावनी दी गयी की यदि कंपनी द्वारा जल्द ही पीडि़तों को मुआवजा राशि नहीं वितरित की गयी तो आन्दोलन छेड़ा जायेगा। इस मौके पर पीडि़तों ने गत वर्ष केदारनाथ त्रासदी में मृत आत्माओं की शान्ति के लिए दो मिनट का मौन रखा। इस दौरान पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी रमेश चमोला, हिमालय बचाओ आन्दोलन की सुशीला भण्डारी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य गंगा  देवी आर्य, चन्दापुरी के पूर्व प्रधान विश्वनाथ आशीष नेगी, दस्तक संस्था के दीपक बेंजवाल, अनूप सेमवाल, सामाजिक कार्यकर्ता शम्भू प्रसाद भटट, मनोज नेगी , राजेन्द्र सिंह नेगी, जगदीश चमोला, मदन लाल, हिमांशु भटट, देवेन्द्र जगवाण , बीरेन्द्र रावत, कुवर गोस्वामी, राजेन्द्र कुमार, राजू राणा, शम्भू प्रसाद आदि प्रमुख रूप से मौजूद थे।

उधर लोग मरते रहे, इधर मंत्री व नौकरशाह सैरसपाटे करते रहे
  • आपदा के दौरान गहन काम्बिंग की होती तो बच सकते थे कई लोग: अजय भट्ट

देहरादून, 16 जून (निस)। नेता प्रतिपक्ष, अजय भट््ट ने उत्तराखण्ड आपदा के एक साल होने पर आपदा में मृत लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए मृतकों की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष 28 अक्टूबर, 2013 को उन्होंने केदारनाथ तक पैदल भ्रमण कर वहां क्षत-विक्षत पड़े शवों के फोटोग्राफ एवं वीडियों बनाकर सरकार को केदारनाथ में शव होने की जानकारी दी। सरकार ने इन फोटोग्राफ को गम्भीरता से नहीं लिया। इस पर श्री भट्ट ने फोटोग्राफ एवं वीडियों गलत होने की स्थिति में राजनीति एवं विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा देने तक की बात कही थी। उन्होंने कहा कि उन्हें अफसोस है कि उस समय सरकार द्वारा उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लिया गया तथा पूरी केदारघाटी को शवविहीन होने की बात सरकार द्वारा कही गयी। आज भी सरकार ने इस मामले को दबाने की कोशिश की थी, परन्तु कुछ साहसी पत्रकारों द्वारा केदारघाटी एवं पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण कर सरकार को बेनकाब कर केदारघाटी एवं आपदा में सरकार द्वारा की गयी घोर लापरवाही की सच्चाई पूरे देश को बताई। श्री भट्ट ने कहा कि जंगलचट्टी में 35 शव मिलने से उनकी बात पर मुहर लगी है। सरकार ने यदि आपदा के दौरान गहन काम्बिंग की होती तो कई लोगों को बचाया जा सकता था। किन्तु सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और उनके मंत्री, नौकरशाह हैलीकाप्टर द्वारा ये हवाई सर्वेक्षण के नाम पर सैर-सपाटे का लुत्फ उठाते रहे। सरकार अभी तक काम के नाम पर ठेके देने में लगी हुई है, यात्री बेहाल हैं, अरबों रूपये का फन्ड जो आपदा के दौरान केन्द्र द्वारा प्रदेश के जनता एवं अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा, विभिन्न प्रदेशों की सरकारों व देश एवं देश से बाहर बसे हुए अप्रवासी भारतीयों द्वारा मदद के रूप में दिया गया था, उस घन को कहां खर्च किया गया, उसका कोई ब्यौरा सरकार उपलब्ध नहीं करा पायी है। अधिकांश आपदा पीडि़तों को अभी तक प्रदेश सरकार द्वारा मुआवजा नहीं दिया गया है। अजय भट्ट ने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सड़कांे की स्थिति का्फी खस्ताहाल है। जिसकी प्रत्यक्ष स्थिति गैरसैंण सत्र के दौरान सड़क मार्ग द्वारा गैरसैंण जाते समय ज्ञात हुई। सड़कों पर जगह-जगह मरम्मत के नाम पर टल्ले लगाकर लीपा-पोती की गई है। किनारों पर जगह-जगह मलबा पडा़ है सुरक्षा दीवार नहीं बनाई गई ंहै। एक ही बरसात में सड़कों का बदहाल होना तय है, जिस तरह से सरकार द्वारा प्रदेश की जनता को गुमराह किया जा रहा है, उससे आपदा पीडि़तों की स्थिति और खराब होती जा रही है। उन्होंने कहा कि 16 जून, 2013 की आपदा व त्रासदी का एक साल पूरा होने को है, किन्तु अभी तक सरकार द्वारा केदारनाथ में यात्रियों के लिए कोई ठोस इन्तजाम नहीं किये गये हंै। या़़त्री अपनी जान जोखिम में डाल कर यात्रा करने को मजबूर हैं, उनके विश्राम की काई व्यवस्था न होने से यात्री एक दिन में 40 कि.मी. पैदल चलने को मजबूर हैं जिससे देश-विदेश में उत्तराखण्ड की छवि खराब हो रही है जबकि सरकार को इसकी कोई भी चिन्ता नहीं है। यात्रियों के भोजन का समय दोपहर में डेढ़ बजे एवं रात्रि में खाने की व्यवस्था की गई है जबकि रात्रि में कोई यात्री वहाॅं रूक नहीं रहा है। तीर्थ पुरोहितों के हक-हुकूकों के लिए भी सरकार द्वारा कोई स्पष्ट नीति न बनाये जाने के कारण उत्तराखण्ड के धामों के तीर्थ पुरोहितों में सरकार के प्रति खासा आक्रोश व्याप्त है। श्री भट्ट ने कहा कि जानकीचट्टी में आज भी लगातार कंकालों का मिलना जारी है।  हरीश रावत जब केन्द्र मंे मंत्री थे तब आपदा पीडि़तों के सम्बन्ध में लगातार बयानबाजी करते रहते थे तथा सहानुभूति दिलाते रहते थे। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री  विजय बहुगुणा जी ने आपदा पीडि़त परिवारों के लिए अनेकों घोषणाऐं की थीं, जिस पर आज तक एक इंच भी काम नहीं हुआ है। प्रदेश सरकार द्वारा पीडि़तों को विस्थापन तथा पुनर्वासित किये जाने के सम्बन्ध में रु0 5.00 लाख की धनराशि तीन किश्तों में दिये जाने की बात की गयी थी और केदारघाटी के पीडि़त परिवारों को एक हजार रूपये वर्ग फीट भूमि देने की बात की गयी थी उसको भी प्रदेश सरकार भूल चुकी है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा आपदाग्रस्त पीडि़त परिवारों के लिए इन्दिरा आवास के तहत जो घोषणा की गयी थी, उस पर भी सरकार द्वारा कोई अमल नहीं किया गया। सरकार द्वारा जो आपदाग्रस्त क्षेत्रों के परिवारों  को 75000 रूपये की धनराशि देने की घोषणा की गयी थी, वह भी जस की तस है। प्रदेश सरकार द्वारा आपदा पीडि़तों को जो 5 लाख की धनराशि तीन किश्तों में देने की बात की गयी थी, उस धनराशि का आवंटन भी प्रदेश सरकार द्वारा अनियमितता एवं लापरवाही से किया गया है। वर्तमान में प्रदेश सरकार द्वारा आपदाग्रस्त पीडि़त परिवारों से यह कहा जा रहा है कि आप पहले भूमि चिन्हित करके भूमि की रजिस्ट्री कर उसकी खाता व खतौनी दें, उसके बाद ही डेढ़ लाख रूपये की पहली किश्त दी जायेगी। पीडि़त परिवारों का कहना है कि सरकार द्वारा घोषणानुसार जो 5.00 लाख रू0 की धनराशि दिये जाने की बात कही गयी है, उसे एकमुश्त दिया जाय। उसमें भी सरकार द्वारा पीडि़त परिवारों के साथ छल कपट किया जा रहा है। श्री भट्ट ने कहा कि जब तक आपदाग्रस्त पीडि़त परिवारों का आवासीय भवन नहीं बन जाता है तब तक उनको 3000 रू0 प्रतिमाह किराया दिया जाना चाहिये, जबकि उक्त किराये की भुगतान में भी सरकार द्वारा भेदभाव बरता जा रहा है, उस पर भी सरकार द्वारा कोई ठोस नीति अमल में नहीं लायी जा रही है। प्रदेश के मुखिया द्वारा प्रदेश में लोक सभा चुनाव के दौरान आपदाग्रस्त क्षेत्रों का भ्रमण करने के पश्चात कई घोषणायें की गयी, वो भी जस की तस हैं। सितम्बर, 2012 में जनपद उत्तरकाशी के विभिन्न क्षेत्रों, ऊखीमठ के स्थानीय लोगों की आपदाग्रस्त भवन एवं भूमि क्षतिग्रस्त हो जाने एवं लोगों के बेघर हो जाने के सम्बन्ध में तथा विगत वर्ष 16 एवं 17 जून, 2013 को आयी आपदा से हुए जानमाल के नुकसान के सम्बन्ध में इनके द्वारा कोई पत्राचार केन्द्र सरकार से नहीं किया गया । इस सम्बन्ध में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट द्वारा आपदा पर सरकार से श्वेत पत्र की मांग करते हुए सरकार द्वारा आपदा पीडि़तों के पुनर्वास एवं राहत कार्य में की गयी घोर लापरवाही पर नैतिकता के आधार पर तत्काल मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगा है।

आपदा पिडितों की आत्मा शांति की शिवसेना ने की कामना

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देहरादून, 16 जून (निस)। केदारघाटी जल प्रलय से प्रदेश में एक वर्ष बाद शिवसेना सहित कई संगठनों ने मिलकर यज्ञ किया। शिव सेना ने घंटाघर चैक पर आपदा के दिवंगत हुए लोगों की आत्मा की शांति के लिए शान्ति यज्ञ किया। इस दौरान सैकड़ो की संख्या में लोगों ने पहुंचकर वहां पर आहुती दी। हवन के दौरान प्रदेश अध्यक्ष गौरव कुमार ने कहा कि शिवसेना आपदा की इस घटना से प्रभावित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए दुखी परिवारों को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना करती है। उन्होंने कहा कि आपदा में राहत के दौरान जिस प्रकार की असंवेदनशीलता प्रदेश सरकार ने दिखाई है वह निश्चय ही निंदनीय है। आपदा के एक वर्ष बीत जाने के बाद भी वहां नर कंकालों का मिलना सरकार के पूर्व के दावों की हवा निकालता है। उन्होंने कहा कि आपदा के दौरान कांग्रेस की बहुगुणा सरकार द्वारा सभी लोगों को सकुशल निकालने की और दिवंगत लोगों को धर्मिक रीति द्वारा उनका क्रियाक्रम करने की बात कही गई थी। परन्तु जिस प्रकार आज भी वहां नर कंकाल प्राप्त हो रहे है। उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि दैवीय आपदा के उपरान्त लोगों की मृत्यु भूख, प्यास और सर्दी की वजह से हुई है। निसंदेह रूप से इतनी बड़ी आपदा में पूरे देश राहत के लिए उत्तराखंड को हर संभव मदद दी व केन्द्र सरकार ने भरपूर ध्न दिया। राहत पाने वालों को मौत मिली। मानव जीवन के साथ ऐसा घृणित कृत्य करने वाली मानवता की हत्या करने वाली सरकार का वर्णन विश्व के किसी देश में नहीं मिलता। उन्होंने बहुगुणा सरकार को विश्व की लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने वाली सरकार बताया और हरीश रावत से इस्तीपफे की मांग की। यज्ञ में मुख्य रूप से देवेन्द्र सिंह बिष्ट, चैतन्य अनिल गौड, सतेन्द्र यादव, राहुल चैहान, पंकज तयाल, आशीष सिंघल, नितिन शर्मा, गोकुल, मनीष, जितेन्द्र सिंह, सूबेदार भाग सिंह, मनमोहन साहनी, अनुज सिंघल, मोनू ठाकुर आदि मौजूद थे।

आपदा पिडितों को सचिवालय में दी श्रद्धाजंलि, वित मंत्री, वन मंत्री समेत मौजूद रहे कई

देहरादून, 16 जून, (निस)। ऋगत वर्ष 16 जून को प्रदेश में आई प्राकृतिक आपदा को एक वर्ष का अरसा गुजरने के अवसर पर सोमवार को सचिवालय में आपदा की त्रासदी में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि दी गई।ं मोमबत्ती जलाने के साथ ही दो मिनट का मौन रखकर आपदा में मृत लोगों की आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना की गई। कार्यक्रम में प्रदेश की वित्त मंत्री डा. इन्दिरा हृदयेश, वन मंत्री दिनेश अग्रवाल विधायक राजकुमार, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार सुरेन्द्र कुमार अग्रवाल मुख्य सचिव सुभाष कुमार, अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा के साथ ही सभी प्रमुख सचिव व सचिव, अपर सचिव के साथ ही अन्य अधिकारी व कर्मचारी आदि उपस्थित थे। इस अवसर पर आपदा में मारे गये लोंगो को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वित्त मंत्री डा. इन्दिरा हृदयेश ने कहा कि आज का दिन हमें गत 16 जून को हुए जल प्रलय की याद दिलाता है। आपदा का वह दृश्य बहुत ही भयावह था। देश में ऐसी आपदा इससे पहले नही देखी गई। इस आपदा ने प्रदेश के बडे भू-भाग को क्षति पहुंचायी। सैंकडो लोंगो को अपनी जान गंवानी पडी। अनेक लोग बेघर हुए, इस विनाशकारी आपदा में लगभग 1.50 लाख लोग फंस गये थे, जिन्हे सेना, अर्धसैनिको, पुलिस व प्रशासन के लोगो ने बडी मुस्तैदी से विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों का सामना कर उन्हे सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचाया, हमारा प्रयास आपदा के जख्मों को भरने का निरन्तर जारी है। पीडितों को राहत राशि 10 गुना तक बढा कर दी गई है। आपदा में जो लोग अपना जीवन खो चुके है, हम उन्हें तो वापस नही ला सकते है किन्तु उनके परिजनों को सभी आवश्यक सहायता पहुंचाने के लिये प्रतिबद्ध है। उन्होंने आपदा के दौरान राहत कार्यो में लगे जवानों व अधिकारियों आदि के द्वारा किये गये मानवीय प्रयासों के लिये उनका भी आभार व्यक्त किया। वन मंत्री दिनेश अग्रवाल ने भी गत वर्ष आयी आपदा को इतिहास की बडी त्रासदी बतायी। उन्होंने मृतकों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि हम सब उनके परिजनों के साथ खडे है। प्रदेश सरकार तन मन धन से आपदा पीडितों की मदद कर रही है। हमारा प्रसास है कि हम पीडितों के दुःख दर्द को दूर कर शीघ्र ही आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जन जीवन को सामान्य बना सके। कार्यक्रम का संचालन उपसचिव आपदा प्रबंधन सन्तोष बडोनी ने किया। उन्होंने आपदा के समय किये गये प्रयासों की भी जानकारी दी।

भाजपाईयों ने दी आपदा में मृत लोगों को श्रद्धाजंलि

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लालकुआं, 16 जून (निस)। केदारनाथ सहित पर्वतीय क्षेत्रों में आयी भीषण प्राकृतिक आपदा के एक वर्ष पूर्ण होने पर जहां भाजपा कार्यकर्ताओं ने हवन यज्ञ कर आपदा में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की वहीं कांग्रेस कार्यकर्ता प्राकृतिक आपदा में मारे गये लोगों को भूल गये। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने यहां राजीव नगर बंगाली कालौनी स्थित काली मन्दिर परिसर में हवन यज्ञ का आयोजन कर पिछले वर्ष 16 जून को मारे गये लोगांे को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में शुख शान्ति बनाये रखने की प्रार्थना की। इस अवसर पर मुख्य रूप से मण्डल अध्यक्ष राम सिंह पपोला, जगदीश पंत, युवा अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह बिष्ट, आशीष भाटिया, राजकुमार सेतिया, हरीश नैनवाल, धन सिंह बिष्ट, लक्ष्मण खाती, अनुज शर्मा, हेम पाण्डे, सुरेश सुयाल, कल्याण जेठा, किशन गिरी गोस्वामी, सुशील यादव व शेर सिंह सहित कई कार्यकर्ता सामिल थे। इधर कांग्रेस कार्यकर्ता पिछले वर्ष पर्वतीय क्षेत्रोें में आयी भीषण आपदा को एक वर्ष बीत जाने पर पूरी तरह भूल गये। आपदा में मारे गये लोगों के प्रति किसी भी कांग्रेसी नेता ने सम्वेदना व्यक्त करने की जरूरत महसूस नहीं की जबकि एक वर्ष बीत जाने के बाद भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में अब तक मृतकों के कंकाल मिलने जारी है।

आपदा प्रबंधन विभाग का दफ्तर ही हुआ आपदा प्रभावित 

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देहरादून, 16 जून (राजेन्द्र जोशी)। आपदा से कराह रहे उत्तराखंड राज्य का आपदा प्रबधन विभाग ही आपदाग्रस्त हो गया। ऐसे में प्रदेश में आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी निभाने वाले इस विभाग से उम्मीद ही क्या की जा सकती है। सोमवार प्रातः जब सचिवालय परिसर खुल रहा था तो सचिवालय के परिसर के बीचो-बीच बने आपदा प्रबंधन विभाग के कार्यालय में शाॅर्ट सर्किट होने से आपदा प्रबंधन विभाग का एक कमरा बुरी तरह ध्वस्त हो गया। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस कक्ष मंे वे तमाम फाइलें रखी जाती थी जो आपदा प्रबंधन विभाग व सरकार के बीच जानकारी का आदान प्रदान किया करती थी। आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी फिलहाल तो इस मामले मंे कुछ भी बताने से कतराते रहे। इतना ही नहीं जब मीडियाकर्मियों ने इस कक्ष की फोटो लेनी चाही तो यहां तैनात अधिकारी ने उनके साथ भी बदसलूकी की। यह बदसलूकी ऐसेे ही नहीं की गई। अधिकारियों को पता था कि यदि मीडिया को यदि इसकी भनक लग गई तो मामले में लेने के देने पड़ सकते हैं। बहरहाल मीडियाकर्मियों ने तो सचिव आपदा प्रबंधन भास्कारानन्द जोशी से इस मामले की शिकायत कर प्रभारी अधिकारी को दंडित करने की मांग की। वहीं मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार सुरेन्द्र कुमार ने आपदा प्रबंधन विभाग के इस अधिकारी द्वारा मीडिया के साथ किए गए र्दुव्यवहार पर खेद व्यक्त किया। एक जानकारी के अनुसार आपदा प्रबंधन के इस कक्ष में यूं ही आग नहीं लगी है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि इस आग में कई ऐसी फाइलें  स्वाहा हो गई जिनके खुलने पर कानून के हाथ आपदा प्रबंधन सहित कई ओर महत्वपूर्ण विभाग के अधिकारियों के गिरेबान तक जा पहुंचते। यहीं कारण है कि आग लगने की इस घटना को अधिकारियों द्वारा दोपहर बाद तक दबाया जाता रहा। 

पाॅलीटैक्निक संविदा शिक्षकों का तकनीकी शिक्षा मंत्री के आवास पर प्रदर्शन

देहरादून, 16 जून (निस)। राजकीय पाॅलीटैक्निक मे कार्यरत संविदा शिक्षकों ने विनियमितिकरण और उनके पदों को लोकसेवा आयोग की परिधि से बाहर किए जाने की मांग को लेकर पाॅलीटैक्निक संविदा शिक्षक सोसाईटी ने रैली निकाल कर तकनीकी शिक्षा मंत्री के आवास पर प्रदर्शन किया और ज्ञापन देकर शीघ्र ही इस विषय पर ठोस कार्यवाही की मांग की। इससे पूर्व संविदा शिक्षक सोमवार को परेड मैदान में एकत्र हुए जिसके बाद वे जुलुस के रूप में यमुुना कालाॅनी की ओर गए।  जुलुस तकनीकि शिक्षा मंत्री यशपाल आर्य के आवास पर पहंुची और उन्होंने अपनी मांगों को लेकर जमकर नारेबाजी की। उनका कहना था कि 2013 के शासनादेश अनुसार पांच वर्ष से कार्यरत संविदा कर्मियों का विनियमितिकरण किया जाना था। इस दायरे में आने के बावजूद लोकसेवा आयोग पदों के सापेक्ष बीस अप्रैल को परीक्षा आयोजन किया गया था। जिसके कारण उनके भविष्य और रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा राज्य स्थापना दिवस और उसके बाद कई अवसरों पर सरकार ने सरकार ने जो नितिगत फैसले संविदा कर्मियों के हित में घोषित किए थे। उसके अनुसार किसी भी संविदा कर्मी की सेवा समाप्त नही की जाएगी। किन्तु खेद का विषय है कि विभाग के अधिकारियों द्वारा अभितक उनके प्रति कोई भी ठोस कदम उठाया नही गया है। इसके विपरीत लोकसेवा आयोग के द्वारा परिक्षा का आयोजन किया गया था। उन्हांेने बताया कि राजकीय पाॅलीटैक्निकों में व्याख्ओं के 412 पदों  को लोकसेवा आयोग की परिधि से बाहर करने की घोषणा की जा चुकी है।  जिसके बाद भी कार्रवाई नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा कि  वे मांग करते है कि संविदा शिक्षकों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए परिक्षा के परिणाम को स्थगित किया जाए और संविदा शिक्षकों के पदांे को आयोग की परिधि से बाहर करते हुए पदांे के सापेक्ष किसी प्रकार का स्थानातरण न किया जाए।

भाजपा ने किया एसएसपी कार्यालय पर हंगामा

देहरादून, 16 जून (निस)। दून में सट्टे, शराब व नशीले पदार्थो के अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने की मांग को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओ ने सोमवार को एसएसपी कार्यालय का घेराव किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने एसएसपी को ज्ञापन देकर कार्यवाही की मांग की। भाजपा कार्यकर्ताओं ने सोमवार को महानगर उपाध्यक्ष बबीता सहोत्रा के नेतृत्व में एसएसपी कार्यालय पर प्रदर्शन किया। उनका कहना था कि दून सट्टे,शराब व नशीले पदार्थो की अवैध बिक्री का केन्द्र बनता जा रहा है। शहर की मलीन बस्तियों में तेजी से फलफूल रहे इन अवैध कारोबारो के कारण न केवल कई परिवार टूट चुके है बल्कि युवा पीडी भी बर्बादी का शिकार हो रही है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए युवा पीडी चोरी व लूट की वारदातों मे लिप्त हो रही है। जिसके चलते आम वर्ग ही नही विशेषकर मलीन बस्ती वासी भी इन अपराधों से त्रस्त है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि शहर के कई क्षेत्रों मे ंपुलिस की मिलीभगत से जुए,सट्टे और शराब के अवैध करोबार चल रहे है। यदि ऐसा होगा तो अपराधी बेखौफ होकर घूंमेगे। जिससे शहर में बदमाशों का राज होगा और कानून व्यवस्था बदहाल होगी। उन्होंने एसएसपी को ज्ञापन देकर शीघ्र ही इस ओर ठोस कार्यवाही करने की मांग की। इस अवसर पर मनोरमा भट्ट, राजेन्द्र अग्रवाल, ममता गर्ग, अजय तिवारी, विनोद ध्यानी, संजीव सरीन, मीना कपूर, सविता वर्मा आदि शामिल थे। 

आपदा के एक वर्ष बाद भी नही सुधरे हालात

उत्तरकाशी, 16 जून (निस)। आपदा के एक वर्ष गुजरने जाने के बावजूद हालात नही सुधरे है। जनपद के पांच गांवों के लोग अब तक गांव तक पहुंचने के लिए उफनती नदियों के ऊपर से धीरे धीरे आवाजाही करने को मजबूर हैं। अभी भी पुल निर्माण को लेकर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। एक साल का यह लंबा समय सबसे ज्यादा ट्राली से नदियों को पार करते हुए ग्रामीणों को अखरा। जरूरत के सामान से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने के लिए भी ट्रॉली ही एक मात्र जरिया बनी हुई है। भागीरथी घाटी में स्याबा, सालू, डिडसारी, बायणा, लौंथ्रू, डिडसारी, चामकोट, दिलसौड़ गांवों की तीन हजार की आबादी इस तरह जीवन यापन कर रही है। बीते साल भागीरथी की बाढ़ के बाद इन गांवों के लोग देश दुनिया से अलग थलग पड़ गए थे। सिंतबर में प्रशासन ने यहां आवाजाही को ट्रालियों का इंतजाम किया, लेकिन पुरानी तरीके से बनी इन ट्रालियों के जरिये उफनती नदियों को पार करने के लिए ग्रामीणों को इसमें लगी रस्सी को खींचते हुए खूब पसीना बहाना पड़ता है। तीन लोगों के बैठने के लिए मुफीद इस लोहे के खांचेनुमा ट्राली से बड़ा सामान गांव तक पहुंचाना आसान नहीं है। भीड़ हो जाने पर ग्रामीणों को पूरा पूरा दिन अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।
 
बूंदी पहुंचा कैलाश मानसरोवर यात्रा का पहला दल 

देहरादून, 16 जून (निस)। 13 जून को कैलाश मानसरोवर यात्रा को रवाना हुआ धारचूला पहुंचने के बाद बूंदी पहुंचा। 14 जून को धारचूला से 45 किमी, सडक एवं 3 किमी पैदल चलकर सिर्खा पहुंचा, 15 जून को सिर्खा से 15 किमी पैदल चलकर गाला पहुंचा उसके बाद सोमवार को 16 जून को गाला से 21 किमी पैदल चलकर बूंदी पहुंच गया है। कैलाश मानसरोवर के दल में इस बार गुजरात के सबसे ज्यादा 16 यात्री हैं। कुल 18 दल इस बार मानसरोवर के लिए गए है।  दल में दिल्ली के 14, महाराष्ट्र के 6, राजस्थान के चार, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, हरियाणा से दो-दो तथा तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, व मध्य प्रदेश के एक-एक यात्री शामिल हैं। दल में 56 लोग थे लेकिन स्वास्थ्य कारणों से एक व्यक्ति अल्मोड़ा से वापस हुआ। अब दल में 14 महिलाओं सहित 55 लोग हैं, जिनका गुंजी में आईटीबीपी कैम्प में स्वास्थ्य परीक्षण किया जायेगा। स्वास्थ्य परीक्षण में स्वस्थ पाये जाने पर तीर्थयात्रियों को कैलाश मानसरोवर दर्शन का मौका मिलेगा। मानसरोवर यात्रियों का दल आज 17 जून को बूंदी से 17 किमी पैदल चलकर गुंजी पहुंचेगा जहां पर एक दिनी विश्राम के साथ यात्रियों का चिकित्सा परीक्षण होगा। यात्रियों का दल 20 जून को गुंजी से 9 किमी चलकर कालापानी और कालापानी से 9 किमी पैदल चलकर नाभीढ़ांग पहुंचेगा तथा 21 जून को नाभीढ़ांग से 7 किमी पैदल चलकर लिपुलेख पहुंचेगा जहां से उसी दिन तिब्बत के ताकलाकोट हेतु प्रस्थान करेगा।  दल में सबसे अधिक उम्र के 77 वर्षीय सेमाभाई शंकर भाई पटेल ‘गुजरात’ के और सबसे कम उम्र के 19 वर्षीय कुंज पटेल ‘सूरत’ के शामिल हैं। 22 दिनो की इस यात्रा में भारतीय क्षेत्र में आवास व भोजन की व्यवस्था कुमाऊ मंडल विकास निगम करता है। यात्रा का विदेश मंत्रालय व कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा संचालित किया जाता है।

मद में पैसा न होने के चलते मुआवजा राशि के चेकों से नहीं हो रहा भुगतान 

मसूरी, 16 जून (निस)। प्रशासन की लापरवाही के चलते आपदा की मार झेल रहे लोगों को एक साल पूरा होने पर भी  मुआवजा नहीं मिल पाया है।  धनोल्टी के सौंटियाल गांव में आपदा में हुए नुकसान के लिए ग्रामीणों को मुआवजा के तौर पर चेक दिया गया था। लेकिन अब जब लोग ग्रामीण बैंक में मुआवजे की राशि के लिए जा रहे हैं। तो निधि न होने की बात कह कर उन्हें वापस खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। गंाव के निवासी गजेन्द्र सिंह, चद्रं सिंह और रामकिशन का कहना है कि उन्हें गत वर्ष आई आपदा के दौरान हुए नुकसान के लिए मुआवजा दिया गया था। मुआवजे में 4000 रूपये, 3500 आदि के चेक मिले थे। ग्रामीणों का कहना है कि चेक मार्च में वितरित कर दिये गये थे। उसके बाद उत्तराखंड ग्रामीण बैंक में कई चक्कर काटे लेकिन हर बार धनराशी न होने का बहाना बताकर ग्रामीणों को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। तो वहीं जब अधिकारियों से इस बाबत बात करनी चाही तो उन्होंने आचार संहिता का बहाना बताया। ग्रामीणों का कहना है कि चेक से ज्यादा तो गांव से बैंक तक आने का खर्चा वहन करना पड़ता है। वहीं सरकार द्वारा आपदा प्रभावितों को पूर्णत मुआवजे मिलने के खोखले दावे किये जाते हैं। तहसीलदार सीएल शाह का कहना है कि आपदा के मुआवजे की राशी ने लिए प्रस्ताव भेजा गया है। संभवत आचार संहिता समाप्त होने के बाद बैंक में धनराशी आ जायेगी और सभी को मुआवजा दिया जायेगा।

श्रद्धाजंलि देने के साथ किया गया वृक्षारोपण

देहरादून/रूद्रप्र्रयाग, 16 जून (निस)। विगत वर्ष जून माह की आपदा में दिवगंत हुए श्रद्धालुओं की स्मृति में केदारनाथ पैदल मार्ग पर रामबाडा में बने स्मारक स्थल पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। श्रद्धांजलि सभा में कृषि मंत्री डाॅ0 हरक सिंह रावत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय एवं केदारनाथ क्षेत्र की विधायक/संसदीय सचिव शैला रानी रावत ने गत् वर्ष की आपदा में दिवगंत हुए श्रद्धालुओं को पुष्प चक्र अर्पित कर श्रद्धाजंलि दी। कृषि मंत्री डाॅ0 हरक सिंह रावत ने कहा कि पिछले वर्ष आई भीषण आपदा में कई लोगों की जान गई। यह स्मारक हमेशा उन लोगों की याद दिलाता रहेगा। उन्होंने मृत आत्माओं की शांति के लिये भगवान से प्रार्थन की। कहा कि अब सरकार की निर्विवाद रूप से यात्रा को सुचारू रूप से संचालित करने की मंशा है। केदारनाथ क्षेत्र की विधायक/संसदीय सचिव श्रीमती शैला रानी रावत ने कहा कि सरकार ने यात्रा को सुचारू रखने के लिये दिन-रात एक कर कार्य किया हैे। उन्होंने कहा कि पूर्व की भांति शीघ्र ही केदारनाथ यात्रा पहले की तरह संचालित होने लगेगी। उन्होंने कहा कि सरकार वैज्ञानिक तरीके से पुर्ननिर्माण का कार्य रही है। इस अवसर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भी आपदा में दिवगंत हुए श्रद्धालुओं को श्रद्धाजंलि अर्पित की। इसके बाद स्मारक स्थल के निकट वृक्षारोपण भी किया गया। इस अवसर पर आयुक्त गढ़वाल मण्डल सीएस नपलच्याल, डीआईजी गढ़वाल अमित सिन्हा, डीआईजी एसटीएफ जीएस मार्तोलिया, जिलाधिकारी डाॅ0 राघव लंगर, पुलिस अधीक्षक बीजे सिंह सहित तीर्थयात्री उपस्थित थे।

एसडीआरएफ ने निकाले अब तक 25 मानव कंकाल

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देहरादून, 16 जून (निस)। पिछले साल केदारनाथ धाम  से ऊपर बने गांधी सरोवर झील ने सैलाब का ऐसा विकराल रूप लिया कि आज तक सैलाब से पीडि़त लोगों के आंखों से आंसू नहीं सूख पा रहे है। इसी के तहत एसडीआरएफ एंव स्थानीय पुलिस ने जंगलचटटी के घने जगंलों से 11 जून से सोमवार तक लगभग 25 शव निकाले। गत वर्ष 16 जून गांधी सरोवर में पानी जमा होने से चोराबड़ी झील टूट गई और बड़े-बड़े बोल्डर और अथाह पानी केदारघाटी में तबाही की यात्रा को निकली। पानी के सैलाब ने पूरी केदारघाटी में भारी तबाही मचाई। साल भर बाद भी यहां मानव कंकालों के मिलने का सिलसिला जारी है। जहां एसडीआरएफ व स्थानीय पुलिस की टीम ने संयुक्त सर्च आपरेशन चलाकर 11 जून से लेकर अब तक 25 मानव कंकाल निकाल चुकी है तो वही एसटीएफ और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के कुशल पर्वतारोही मजदूरों संग पिछले पांच दिन से जंगलचट्टी के घने जंगल में शवों की तलाश अभियान पर जुटी है। इन सभी के भूख और प्यास से मारे जाने की बात कही जा रही। पुलिस हेडक्वार्टर से मिली जानकारी के अनुसार एसडीआरएफ एवं स्थानीय पुलिस ने जंगलचट्टी की पहाडियों में एक संयुक्त सर्च आपरेशन चलाकर  विगत वर्ष आई केदारनाथ में भीषण आपदा में लापता व मृत की तलाश जारी रखी हुई है। अब तक 25 मानव कंकाल मिलने की सूचना प्राप्त की गई है। जिनका डीएनए सैम्पल लेकर एसडीआरएफ द्वारा दाह संस्कार किया गया। एसडीआरएफ टीम को नेतृत्व टीम कमाण्डर भूपाल सिंह रावत द्वारा किया गया।

आपदा के एक वर्ष बाद भी नही सुधरे हालात

उत्तरकाशी, 16 जून (निस)। आपदा के एक वर्ष गुजरने जाने के बावजूद हालात नही सुधरे है। जनपद के पांच गांवों के लोग अब तक गांव तक पहुंचने के लिए उफनती नदियों के ऊपर से धीरे धीरे आवाजाही करने को मजबूर हैं। अभी भी पुल निर्माण को लेकर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। एक साल का यह लंबा समय सबसे ज्यादा ट्राली से नदियों को पार करते हुए ग्रामीणों को अखरा। जरूरत के सामान से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने के लिए भी ट्रॉली ही एक मात्र जरिया बनी हुई है। भागीरथी घाटी में स्याबा, सालू, डिडसारी, बायणा, लौंथ्रू, डिडसारी, चामकोट, दिलसौड़ गांवों की तीन हजार की आबादी इस तरह जीवन यापन कर रही है। बीते साल भागीरथी की बाढ़ के बाद इन गांवों के लोग देश दुनिया से अलग थलग पड़ गए थे। सिंतबर में प्रशासन ने यहां आवाजाही को ट्रालियों का इंतजाम किया, लेकिन पुरानी तरीके से बनी इन ट्रालियों के जरिये उफनती नदियों को पार करने के लिए ग्रामीणों को इसमें लगी रस्सी को खींचते हुए खूब पसीना बहाना पड़ता है। तीन लोगों के बैठने के लिए मुफीद इस लोहे के खांचेनुमा ट्राली से बड़ा सामान गांव तक पहुंचाना आसान नहीं है। भीड़ हो जाने पर ग्रामीणों को पूरा पूरा दिन अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।

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