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जयललिता का हिंदी पर मोदी सरकार के कदम का विरोध

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एनडीए सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर सरकारी एकाउंट में हिन्दी को प्रमुखता दिए जाने का तमिलनाडु में कड़ा विरोध हो रहा है तथा मुख्यमंत्री जयललिता एवं भाजपा के सहयोगियों ने भी इस मामले में किए जा रहे विरोध में डीएमके प्रमुख करुणानिधि के सुर में सुर मिलना शुरू कर दिया है। तमिलनाडु के राजनीतिक दलों को आशंका है कि गैर हिन्दी भाषी वर्गों पर इस भाषा को 'थोपा'जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे एक पत्र में जयललिता ने गृह मंत्रालय के प्रस्ताव को राजभाषा कानून 1963 की मूल भावना के विरूद्ध बताया है।

उन्होंने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि इस बेहद संवेदनशील मुद्दे से तमिलनाडु के लोगों में बेचैनी है। राज्य के लोग अपनी भाषाई विरासत को लेकर बहुत गर्व महसूस करते हैं और उसे लेकर बहुत संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया अपने स्वरूप के कारण न केवल इंटरनेट पर सभी व्यक्तियों की पहुंच के भीतर है, बल्कि 'क्षेत्र सी'सहित भारत के सभी भागों में रह रहे लोगों के लिए संचार का माध्यम है।

जयललिता ने कहा, यदि सार्वजनिक सूचना अंग्रेजी में नहीं हुई, तो 'क्षेत्र सी'में रहने वाले लोगों की पहुंच इस तक नहीं हो पाएगी। 'क्षेत्र सी'में रहने वाले लोगों के लिए भारत सरकार की सूचना अंग्रेजी में होनी चाहिए। लिहाजा यह कदम राजभाषा कानून 1963 की मूल भावना के विरूद्ध है।केंद्र सरकार के इस कदम का तमिलनाडु में कोई समर्थन नहीं कर रहा है और उसके दोनों सहयोगियों पीएमके एवं एनडीएमके ने भी इसका  विरोध किया है।

पीएमके के संस्थापक रामदास ने कहा कि भाजपा ने अपने 2014 के चुनाव घोषणापत्र में वादा किया था कि समृद्ध इतिहास एवं संस्कृति वाली सभी भाषाओं का विकास किया जाएगा। उसने तमिल सहित संविधान की आठवीं सूची में शामिल सभी 22 भाषाओं को राजभाषा घोषित करने को कहा था, ताकि हिन्दी थोपने के विवाद का खात्मा हो सके। उन्होंने कहा कि पूर्व में हिन्दी को थोपने के प्रयासों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया गया था। हालांकि बाद में भी इसी प्रकार के प्रयास किए गए। उन्होंने 'हिन्दी थोपने'के ताजा कदम को इसका नरम संस्करण बनाया।

एमडीएमके प्रमुख वाइको ने मोदी द्वारा सोशल मीडिया को तरजीह देने का हवाला दिया और कहा कि हिन्दी के बारे में केंद्र का परामर्श चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि भारत की सभी भाषाओं को देश की एकता एवं अखंडता के हित में राजभाषा घोषित किया जाए तथा उस समय तक अंग्रेजी को ही राजभाषा बरकरार रखा जाए। भाकपा की राज्य इकाई ने भी इस कदम का विरोध किया है।

डीएमके अध्यक्ष करुणानिधि ने इस कदम को 'हिन्दी थोपने की शुरुआत'बताया। उन्होंने कहा कि हिन्दी को संविधान की आठवीं सूची में शामिल अन्य भाषाओं से अधिक प्राथमिकता क्यों दी जानी चाहिए...हिन्दी को प्राथमिकता देने से माना जाएगा कि गैर हिन्दी भाषी लोगों के बीच भेद कायम करने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की दिशा यह पहला कदम है।

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