प्रातकाल उठि कै रधुनाथा । मातु पिता गुरू नावहिं माथा ।।
मातु पिता गुरू की वाणी । बिनहिं विचार सदा ष्षुभ जानि ।।
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श्रीराम चरित मानस के रचियता संत तुलसीदास जी ने जो ग्रन्थ की रचना की थी । इस ग्रन्थ में अनेक पुराण, वेद और तन्त्र , ष्षास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलव्ध किया गया श्री रघुनाथ जी श्री राम जी की कथा को तुलसीदास जी ने अपने अन्तः करण के सुख के लिए अन्यन्त मनोहर भाषा रचना में विस्तृत की है । संत तुलसीदास जी परमपिता परमेष्वर के प्रतिनिधि के रूप मानव समाज के कल्याण के लिए जन्मे । उन्होने श्री राम चरित मानस ग्रन्थ की रचना कई सैकड़ों बर्ष पहिले की थी, । लेकिन वह भारत के भविष्य को समझ रहे थें कि ऐसा समय भी आयेगा तथा इस ग्रन्थ का अध्ययन करने वाले ही कलयुग में सुखी रह सकेगें जो परमपिता परमेष्वर अपने ईष्वर, अपने ईष्ट, देवता, माता-पिता, गुरू का सम्मान नही करेगें वह अपने जीवन काल में ही नरक के भागीदार होगे ।
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अनादि काल से ही हर स्त्री-पुरूष, नर-नारी का रिष्ता चला आ रहा है, इस रिष्ते के बाद संतान की इच्छा हर स्त्री-पुरूष की होती है, संतान की उत्पत्ति के लिए प्रत्येक माता पिता कुछ भी त्याग करने के लिए समर्पित होता है । लेकिन संतान पैदा होने के बाद वह अपने माता पिता को किस तरह संतोष सुख प्रदान करता है । बंषावति, कुल संचालन कर्ता की अनेक परिभाषाऐं भी दी गई हैं तथा अनेक महापुरूषों ने लिखा है । लेकिन भगवान श्रीराम ने माता कौषिल्या की कोख से जन्म लेकर दषरथ नंदन होने के अनेक कारण सामने आते है । परमपिता परमेष्वर का रहस्य वही समझ सकता है, क्योकि परम सत्ता का संचालन करने वाला के रहस्य कोई नही जान सका , जो रहस्य को जान लेना है उसे सपने मे भी मोह नही रह जाता है । श्री राम ने एक आदर्ष मानव के रूप में अपने जीवन का निर्वाहन बचपन से ही किया है । उन्होने माता पिता व गुरू के बचनों को बिना विचार किये स्वीकार किए है तथा माता पिता और गुरू का प्रातः काल से विस्तर पर जाने तक हर क्षण आदर व सम्मान किया है । भगवान श्री राम ने अपने गुरू की आज्ञा का पालन किया इसलिए वह सफलला प्राप्त करते रहे । उन्होने अपने जीवन में कभी भी झूठ, छल, धोका, दंभ, अंहकार को स्थान नही दिया । छोटी सी उम्र में जो चमत्कार किए वह आत्मवल था ।
बर्तमान युग की युवापीढ़ी अपने माता पिता व गुरू की वाणी पर विष्वास नही करते है, मित्रों की बातों पर अत्याधिंक भरोसा करते है, मुष्वित व परेषानी का कारण माता-पिता का आदरभाव न करना, उनके बचनों व मार्ग दर्षन को अनदेखा करना, गुरू (अध्यात्मिक साहित्य, ग्रन्थ, वेद पुराणों, ष्षा़स्त्रों के मार्ग दर्षक) पर भरोसा न करना । षिक्षकों का सम्मान न करके उनके चरित्र की हंसी मजाक करना , यही युवाओं के पालन का कारण है । बर्तमान समय में अधिकांष ब्राम्हणों के बच्चें /बच्चियाॅ धार्मिक पुस्तकों, ग्रन्थों से दूरियाॅ बना चुके है जिस कारण ब्राम्हण परिवारों को पथ भृष्ट होने लगे है । उनकी संतानें दुर्जनों की संगत, माॅसाहारी होकर पतन की ओर बढ़ रहे है । इस भौतिकवादी युग में प्रत्येक हिन्दू परिवारों में श्रीराम चरित मानस ग्रन्थ का होना आवष्यक हो गया है तथा प्रत्येक माता-पिता को अपनी संतान के उज्जवल भविष्य के लिए भारतीय संस्कृति-संस्कारों के साथ अपने धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन ज्ञान, महापुरूषों की जीवनी एवं उत्तम संस्कार देने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए । हमें अपना सुधार करना चाहिए तथा अपने घर परिवार में समरसता, एकता की भावना से कार्य करने का संकल्प लेकर यदि परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होकर राय सुमारी से कार्य करने लगे तो भगवान श्री राम के राज्य की कल्पना की जा सकती है ।
आज के इस भौतिकवादी युग में चरित्र पतन, चरित्र हनन, दुराचार, अनाचार, अत्याचार, दमन छल कपट, धोका, आदि आदि घटनाओं के पीछे आर्थिक लाभ, निजि स्वार्थ की पूर्ति ने अपना स्थान बनाया है । इससे बचने के लिए बिलासता पूर्ण जीवन जीने से बचें , प्रतिस्पर्धा फैषन, फिजूली खर्च, दिखावा से दूर रहे तथा मित्रता भी सर्तकता, होषियारी एवं निःस्वार्थ भावना से करे, सहनषीला, गंभीरता के साथ -साथ संदेह को स्थान न दें ।
---संतोष गंगेले---
पत्रकार लेखक,
नौगाॅव जिला छतरपुर
मध्य प्रदेश