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विशेष : सीसी कैमर की निगरानी में हो पोस्टमार्टम

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  • यूपी ही नहीं देशभर के पोस्टमार्टम हाउसों में लगे सीसी कैमरा 
  • सीसी कैमरे से न सिर्फ डाक्टरों की मनमानी रुकेगी, बल्कि विश्वसनीयता भी बढ़ेगी 
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनउ बेंच में सामाजिक संगठन पीपल्स फोरम ने दायर की पीआईएल 

अक्सर सुनने को मिलता है, हिंसक वारदातों में चिकित्सक ने पोस्टमार्टम दवाब में किया है। पीएम रिपोर्ट सही नहीं है। खासकर मर्डर की घटनाओं में इस तरह के आरोप लगाएं जाते है। अमूक तथ्य को छिपाया गया है। कुछ वारदातों में तो कभी-कभी कब्र से निकालकर दुबारा पोस्टमार्टम की बात होती है, लेकिन जिन शवों को जला दिया जाता है उसमें ऐसी संभावना नहीं रहती। इस तरह के मामले में यूपी ही नहीं पूरे देश में है। ताजा मामला यूपी की राजधानी लखनउ के मोहनलालगंज कांड व बदायूं का है। जहां न सिर्फ जांच अधिकारी बल्कि पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक भी शक के दायरे में है। कहीं किडनी रिपोर्ट व बलात्कार हुए ही नही ंतो कहीं हत्या नहीं आत्महत्या की बात सामने आ रही है। 

हाल के दिनों में एक के बाद एक हुई गैंगरेप व हत्याओं की घटनाओं में पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों पर ही उंगूलिया उठने लगी है। आरोप रहता है कि जांच अधिकारी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी कर किसी बड़े अपराधी या नेता को बचाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गड़बड़ी करते है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ही आधार बनाकर गुनहगारों को बचा लिया जाता है। ऐसे में सीबीआई जांच मांग उठने लगती है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब साक्ष्य ही नहीं है तो चिकित्सक की ही बात को सही मानने की विवशता हो जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसे मामलों की पोस्टमार्टम सीसी कैमरे की निगरानी में हो तो होने वाली गड़बडि़यां रोकी जा सकती है। 

यूपी की राजधानी लखनउ के मोहनलालगंज में गैंगरेप के बाद बड़े ही बेरहमी सेे महिला का कत्ल किया किया गया वह समूचे जनमानस को हिलाकर रख दिया है। बड़ी बात तो यह है कि प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ जनता का सरकार पर जब दवाब बना तो 24 घंटे के अंदर अपने को जाॅबाज कहलाने वाले कतिपय अधिकारियों ने बिल्कूल फिल्म्ी स्टाइल में पटकथा को लिखते हुए सिरे से खारिज कर दिया कि महिला के साथ गैंगेरेप तो दूर बलातकार हुआ ही नहीं है। एक अकेला व्यक्ति ही बाइक चाभी से उसके प्राइवेट पार्ट पर हमला कर महिला की हत्या की है। इस पुलिसिया खुलासे के बाद जनता से लेकर मीडिया तक भौचक रह गयी। सवाल पर सवाल दागे जाने लगे। पोस्टमार्टम के मुताबिक किसी ब्लंट आब्जेक्ट से उसके प्राइवेट पार्ट में कई बार प्रहार किए गए है। अधिक रक्स्राव से महिला की मौत हुई है। उसके शरीर के दोनों किडनी सही थे। शरीर के किसी भी अन्य हिस्से में जख्म नहीं पाएं गए है। लेकिन पुलिस के इस कहानी में जनता को बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा। 

दरअसल, दरिंदगी का शिकार बनी महिला के घर वालों के मुताबिक उसकी एक ही किडनी थी। उसने अपनी दूसरी किडनी पति को दान कर चुकी थी। रिपोर्ट में गुर्दे (दशा और वजन) के सामने लिखा है कि बोथ पेल एनएडी (नथिंग अबनॉर्मल डिटेक्टिंग) 150 ग्राम ईच। मतलब दोनों किडनियों की हालत ठीक। पोस्टमॉर्टम दो फॉरेंसिक एक्सपर्ट समेत 6 डॉक्टरों के पैनल ने किया। जबकि महिला के देवर ने बताया कि 15 अक्टूबर, 2011 को पीजीआई में किडनी ट्रांसप्लांट हुई थी। इस दौरान भाभी ने ही भाई को अपनी किडनी डोनेट की थी। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी 15 जून, 2001 को भाई की किडनी ट्रांसप्लांट हुई थी। तब मां ने किडनी दी थी। पीजीआई के निदेशक डॉ. आरके शर्मा ने बताया कि 15 अक्टूबर, 2011 को महिला और उसके पति का किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन हुआ था। इस सच्चाई को उजागर होने के बाद पीएम रिपोर्ट की विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म होती नजर आ रही है। 

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के जिस हिस्से में डॉक्टरों ने चोटों को लेकर अपनी राय लिखी है उस पेज की लिखावट का अंतर भी कई सवाल खड़े कर रहा है। रिपोर्ट में महिला के प्राइवेट पार्ट में चोटों का जहां जिक्र है वह हिस्सा काफी हल्के से लिखा गया है, जबकि उस पेज की बाकी रिपोर्ट गहरे रंग में साफ लिखी है। विशेषज्ञ के मुताबिक रिपोर्ट एक ही डॉक्टर द्वारा लिखी जाती है। उसे कार्बन पेपर लगाकर लिखते हैं। इसलिए लिखावट एक सी आती है। पोस्टमॉर्टम में महिला के शरीर पर मिलीं दो चोटें भी पुलिस की कहानी से मेल नहीं खा रहीं। पुलिस के मुताबिक आरोपी रामसेवक ने चाबी, हेलमेट और हाथ से चोटें पहुंचाईं, जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक पोस्टमॉर्टम में मिली दो चोटें चाबी, हाथ या हेलमेट से नहीं पहुंचाई जा सकतीं। रिपोर्ट में करीब 3 सेमी गहरे पंचर्ड बोन के बारे में लिखा गया है। यह चोट चाभी से नहीं लग सकती। चाभी से घाव एक सेमी से अधिक नहीं हो सकता। प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग होने लगी। मतलब साफ है, पोस्टमार्टम ही गलत तरीके से किया गया या रिपोर्ट गलत तैयार कराई गयी। ऐसे में पोस्टमार्टम की विश्वसनीयता व निष्पक्षता बनाएं रखने के लिए सभी मर्चरी घरों से लेकर पोस्टमार्टम हाउस में सीसी कैमरा लगाया जाना बेहद जरुरी हो जाता है। 

सामाजिक संगठन पीपल्स फोरम की कर्ताधर्ता श्रीमती नूतन ठाकुर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच में पीआईएल दायर कर प्रदेश के सभी पोस्ट मोर्टम हाउस में सीसीटीवी कैमरा लगाए जाने और इनका सही रख-रखाव सुनिश्चित किये जाने की मांग की है। पीआईएल में कहा गया है कि जिस प्रकार से लखनऊ पुलिस ने मामले का अनावरण किया है वह पूरी तरह से अविश्वसनीय है और मृतिका के परिवार वाले भी इस पर पूरी तरह सन्देश कर रहे हैं। पीआईएल में तमाम कारण बताते हुए घटनाक्रम की सीबीआई जांच की मांग की गयी है। पीआईएल में सभी इन्टरनेट प्रोवाइडर को इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी (इन्टरमिडीयरी गाइडलाइन्स) रूल्स 2011 के अनुसार निश्चित रूप से शिकायत अधिकारी नियुक्त किये जाने की प्रार्थना की गयी है ताकि इस मामले पीडि़ता के निर्वस्त्र फोटोग्राफ के काफी प्रसारित हो जाने जैसी घटनाओं को रोका जा सके।  यूपी पुलिस को यौन अपराध के मामलों में बेहतर ढंग से बर्ताव और कार्य कर सकने के लिए आवश्यक ट्रेनिंग और कौशल विकास कराये जाने हेतु निर्देशित करने की भी प्रार्थना की गयी है। 





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---सुरेश गांधी---

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