वर्ष 2012 में एक अंतरराष्ट्रीय परामर्श तथा प्रबंधन फर्म बूज़ एंड कंपनी द्वारा 128 देश¨ं में महिलाअ¨ं के आर्थिक सशक्तीकरण के स्तर पर एक वैश्विक सर्वेक्षण करवाया। 128 देश¨ं में हुए इस सर्वेक्षण में भारत का स्थान 115वां है। दक्षिणी एशियाई देश¨ं में खुद क¨ एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में पहचान दिलाने वाले भारत के लिए यह स्थान निश्चित ही एक बदनुमा दाग है अ©र यह हालत तब है जब भारत सरकार महिलाअ¨ं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए विभिन्न कल्याणकारी य¨जनाएं लागू कर रही है। जैसे कि पढ़ाई छ¨ड़ चुकी लड़किय¨ं की मदद के लिए राजीव गांधी किश¨र बालिका सशक्तीकरण य¨जना (सबला) जैसी एक सुगठित य¨जना शुरु की गई थी। 1993 में राष्ट्रीय महिला क¨ष की शुरुआत की गई थी जिसका उद्देश्य गैर-सार्वजनिक क्षेत्र की गरीब महिलाअ¨ं के आय स्र¨त था घरेलू काम¨ं के लिए ऋण की सुविधा उपलब्ध करवाना था। प्रियदर्शनी एक स्वयं सहायता समूह आधारित परिय¨जना है जिसका उद्देश्य महिलाअ¨ं अ©र किश¨र कन्याअ¨ं का समग्र विकास है। यह कार्यक्रम महिलाअ¨ं के सशक्तिकरण क¨ अपना प्राथमिक उद्देश्य मानता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाअ¨ं के समग्र स्तर क¨ उपर उठाना अ©र व्यापक आर्थिक प्रगति, गरीबी उन्मूलन अ©र सामाजिक सुरक्षा में य¨गदान देना है। परंतु क्या यह सभी कार्यक्रम महिलाअ¨ं के सभी हिस्से के आर्थिक सशक्तीकरण के काम क¨ बखूबी निभा पा रहे हैं। आइए कुछ ऐसी महिलाअ¨ं से मिलते हैं जिनकी समस्याएं बहुत ही कम कान¨ं तक पहुंच पाती हैं अ©र उसकी वजह है उनका पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी ह¨ना। ये व¨ महिलाएं हैं ज¨ 67 साल पहले हुए बंटवारें का दंश आज भी अपनी जिंदगिय¨ं में महसूस कर रही हैं।
सुनीता जम्मू जिले के एक सुदूर स्थित गांव सूर्यचक में 11वीं कक्षा की छात्रा है। उसने बताया,‘‘मुझे छ¨ड़कर, जिसने अपनी पढ़़ाई जारी रखे हुए है, मेरे भाई बहन¨ं में से क¨ई भी कुछ कक्षाअ¨ं के आगे नहीं पढ़ा है। पैस¨ं की किल्लत की वजह से स्कूल फीस भर पाना हमेशा से भारी रहा।’’ सुनीता के पिता कारीगर अ©र माता तार¨ देवी गृहिणी हैं। हालांकि यह परिवार कभी भी आर्थिक रूप से संपन्न नहीं रहा, फिर भी उन्ह¨ंने कुछ साल¨ं तक अपने सभी बच्च¨ं क¨ स्कूल भेजा। द¨ बड़ी लड़किय¨ं की शादी ह¨ चुकी है अ©र बाकी सभी कम्बल, दरियां अ©र सूट बनाने में पिता की मदद करते हैं। सुनीता ने बताया,‘‘मैंने अपने माता-पिता से कहा मुझे पढ़ना है अ©र मेरी बड़ी बहन¨ं ने मुझे आर्थिक त©र पर मदद दे कर मेरा सहय¨ग किया।’’ सुनीता की मां तार¨ देवी ने बताया,‘‘मैं अपनी बेटिय¨ं क¨ अच्छी से अच्छी शिक्षा देना चाहती थी। हमारा परिवार पाकिस्तान से पलायन करके आया है अ©र हम ज¨ कुछ भी कमाते हैं वह मेरे पति के पिता समेत आठ जन¨ं के परिवार के लिए पूरा नहीं ह¨ता है। हमें कभी भी छ¨टे-छ¨टे एश¨-आराम भी मयस्सर नहीं हुए। सरकार की तरफ से क¨ई मदद नहीं मिलती है अ©र हम अभी भी अपने प्राथमिक अधिकार¨ं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। न त¨ हमारी बच्चिय¨ं क¨ किसी तरह का क¨ई कुशलता प्रशिक्षण मिला है अ©र न ही हमें किसी भी य¨जना से क¨ई लाभ मिला है। उन्हें ज¨ भी प्रशिक्षण मिला है वह अपने पिता से मिला है।
खेपर गांव की पच्चीस वर्षीय तृप्ता देवी केवल नवीं पास हैं। वे आगे पढ़ना चाहती थीं लेकिन उनके अभिभावक¨ं ने उन्हें आगे पढ़ने नहीं दिया। कारण था आर्थिक तंगी। उनके पिता एक दर्जी थे अ©र वह अपने पिता की सिलाई में मदद करती थीं। उनकी शादी एक ड्राइवर से हुई अ©र अपने पति की आर्थिक मदद के लिए उन्ह¨ंने कपड़े सिलना शुरु कर दिया। वह गांव में महिलाअ¨ं के कपड़े सिलने वाली अकेली महिला हैं। बिना हवा वाले एक अंधेरे कमरे में बिजली न ह¨ने की वजह से दरवाजे के पास घंट¨ं तक एक ही स्थिति में बैठे हुए दिन भर कपड़े सिलती हैं। वह अपने काम क¨ अ©र फैलाना चाहती हैं अ©र एक नई सिलाई मशीन भी खरीदना चाहती हैं किंतु सीमित संसाधन¨ं की वजह से वह मजबूर हैं अ©र शादी में अपने पिता से मिली पुरानी सिलाई मशीन पर ही काम करने क¨ मजबूर हैं। यह पूछने पर कि उन्ह¨ंने ल¨न के लिए आवेदन क्य¨ं नहीं भरा, पता चला कि उन्हें यह पता ही नहीं है कि महिलाएं ल¨न ले सकती हैं। उन्ह¨ंने आगे कहा,‘‘गरीब¨ं की क¨ई नहीं सुनता-सिफारिश ह¨ तभी सुनवाई ह¨ती है। हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इन ल¨ग¨ं की जानकारी या प्रशिक्षण के लिए क¨ई भी य¨जना या विभागीय अधिकारी इन जगह¨ं तक नहीं पहुंचता है। इन ल¨ग¨ं की सिर्फ इसलिए अनदेखी की जा रही है क्य¨ंकि राजनीतिक पार्टिय¨ं क¨ इन विस्थापित ल¨ग¨ं की मदद करके कुछ नहीं मिलेगा।
पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी कार्य समिति के अध्यक्ष लाभ राम गांधी ने कहा,‘‘सामाजिक कल्याणकारी य¨जनाएं स्थानीय विधायक¨ं के जरिए आती हैं अ©र उन तक चली जाती हैं ज¨ उन्हें जानते हैं या उनसे संबंधित हैं।’’ विस्थापित¨ं क¨ कभी भी ऐसी किसी य¨जना का क¨ई लाभ नहीं मिलता है अ©र इसका सीधा सा कारण है कि वे पंचायत, विधान सभा, नगर निगम किसी भी चुनाव में व¨ट बैंक नहीं बनते हैं। उन्ह¨ंने कहा कि मैंने विभिन्न मंच¨ं से बहुत बार अनुर¨ध किया कि इन महिलाअ¨ं क¨ प्रत्येक वाॅर्ड में खुलने वाले आंगनवाड़ी केंद्र¨ं मेें समाहित किया जाए किंतु कहीं क¨ई सुनवाई नहीं हुई। बहुत मेहनत के बावजूद अभी तक एक भी स्वयं सहायता समूह इन महिलाअ¨ं के लिए गठित नहीं ह¨ पाया है। उन्हें अपने परिवार के पालन-प¨षण के लिए आर्थिक सहायता की बहुत आवश्यकता है। ये महिलाएं बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं मगर हम फिर भी संगठनबद्ध ह¨कर अपने अधिकार¨ं के लिए लड़ रहे हैं। उनका मानना है कि यह राज्य सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह न केवल सभी केंद्र प्राय¨जित य¨जनाअ¨ं क¨ लागू करे बल्कि इन महिलाअ¨ं क¨ आर्थिक सहायता देने के विकल्प¨ं पर विचार करे फिर वह चाहे कुशलता प्रशिक्षण ह¨ या फिर व्यवसायिक प्रशिक्षण।
केंद्र द्वारा शुरु की गई य¨जनाअ¨ं में महिलाअ¨ं अ©र बच्च¨ं क¨ सुरक्षित वातावरण देने की बात की गई है। किंतु यह बहुत ही दुखद है कि इतनी सारी सरकारी य¨जनाएं ह¨ने के बावजूद पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्ती महिलाएं अभी भी जम्मू कश्मीर राज्य में शामिल नहीं हैं। नरेंद्र म¨दी सरकार अपने कार्यकाल के पहले बजट क¨ ‘‘लेडीज़ स्पेशल’’ बजट कह रही है। ग©रतलब है कि अपने चुनाव प्रचार के द©रान नरेंद्र म¨दी ने पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थिय¨ं के लिए बहुत से वायदे भी किए थे। अब देखना यह है कि नरेंद्र म¨दी का यह बजट पश्चिमी पाकिस्तान की इन शरणार्थी महिलाअ¨ं की समस्याअ¨ं का कितना हल निकाल पाएगी अ©र नरेंद्र म¨दी खुद कितना इन पहचान विहीन शरणार्थिय¨ं क¨ न्याय दिला पाएंगे।
डाक्टर भारती प्रभाकर
(चरखा फीचर्स)