दोेनों देशों के हर तबके को न सिर्फ मिलेगा रोजगार बल्कि चाइना का भी टूटेगा वर्चस्व, व्यापार में भी होगी वृद्धि, बिजली-पानी संकट होगा दूर, सुरक्षा संबंधी समस्याएं भी होगी दूर, आतंकवाद पर हो सकेगा नियंत्रण
60 लाख से अधिक नेपाली नागरिक भारत में काम करते है। नेपाल का लगभग 80 फीसदी व्यापार भारत के साथ होता है। हर साल 15 लाख से भी अधिक श्रद्धालुओं का काशी विश्वनाथ, पशुपतिनाथ व सोमनाथ के दर्शन को आना-जाना होता है। करीब सवा लाख भारतीय सैनिक नेपाली नागरिक है। भारत को नेपाल के निर्यात में 11 गुणा बढ़ोत्तरी हुई है। नेपाल के 1024 किमी लबे ईस्ट-वेस्ट हाइवे में 807 किमी लंबी सड़क भारत ने बनाई है। 225 शैक्षणिक संस्थाएं भारत के सहयोग से नेपाल में चल रही है। ऐसे में दोेनों देशों की एक दुसरे से जरुरत है
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेपाल यात्रा बेशक दोनों देशों के लिए एक क्रांतिकारी तो होगी ही, अब बढ़ती जा रही दूरियों पर भी विराम लग जायेगा। जब दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे होंगे तो नेपाल एक बार फिर से मजबूत राष्ट के रुप में तो उभरेगा ही, माओवाद भी बेअसर होगा। और जब माओवाद बेेअसर होगा तो चाइना का वर्चस्व हाशिए पर आने के साथ भारत की सुरक्षा बेहतर होगी। दोनों देशों के लोगों का आना-जाना जब सुगम होगा तो टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। इससे हर तबके को न सिर्फ रोजगार मिलेगा, बल्कि व्यापार में भी इजाफा होगा। कारपेट, खिलौना, रेडीमेड, इलेक्टानिक, साड़ी, जरदोजी, वूल-धागा, रेशम आदि कारोबार बढ़ेगा। काशी सहित पूरे यूपी के जिलों में बिजली-पानी संकट होगा तो दूर होना ही है एक बार फिर से बुद्ध की जन्मस्थली से लेकर कुशीनगर से होता हुआ सारनाथ और बाबा पशुपतिनाथ से लेकर बाबा विश्वनाथ हरा-भरा हो जायेगा। इसके अलावा देश में तेजी से पनप रहे आतंकवाद के साथ सुरक्षा भी हो सकती है बेहतर।
मोदी ने नेपाल को विभिन्न विकास कार्यो के लिए 10,000 करोड़ नेपाली रुपए यानी एक अरब डालर का रियायती ऋण देने का जो एलान किया है, उससे नेपाल बुनियादी ढांचे के विकास के साथ ही ऊर्जा परियोजनाओं के क्षेत्र में काम करेगा। नेपाल के जीवनस्तर में सुधार के लिए भारत किस हद तक उत्सुक है, इसका अंदाजा इससे ही लग जाता है कि नेपाल में आयोडीन की कमी को दूर करने के लिए आयोडीन युक्त नमक की आपूर्ति के लिए दोनों देशों में 6.90 करोड़ नेपाली रुपए के अनुदान का समझौता हुआ है। दूसरा समझौता पंचेश्वर बहुआयामी परियोजना की धारा 17 और 18 में संशोधन के विषय में और तीसरा समझौता दोनों देशों के सरकारी टेलीविजन प्रतिष्ठानों के सहयोग के संबंध में हुआ है। इन समझौतों से दोनों देश परस्पर सहयोग करते हुए सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी कर सकेंगे, इसकी उम्मीद की जा सकती है। मोदी ने नेपाल केे विकास के लिए तीर्थाटन एवं साहसिक प्र्यटन हिमालयी औषधियों के उत्पादन पनबिजली क्षमता का दोहन जैसे काम करने का सुझाव दिया और भारत की ओर से उन्हें इन क्षेत्रो के साथ ही सड़क एवं इंटरनेट सेवाओं का जाल बिछाने में सहयोग की पेशकास की। 5600 मेगावाट पनबिजली उत्पादन के लिए दानों देशों के भीतर सालभर के अंदर काम शुरु करने को कहा गया है। महाकली नदी पर पुल बन जाने से आवागमन सुगम हो जायेगा।
जहां तक भारत और नेपाल के बीच संबंध उतने ही पुराने हैं, जितने गंगा और हिमालय के। पिछले 17 वर्षो से इस संबंध पर धुंध पड़ी हुई थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले वर्षो में इस मैत्री भाव को बढ़ाने का काम न तो भारत की ओर से हुआ और न ही नेपाल की ओर से। जबकि इस दौरान नेपाल के 6 राष्टाध्यक्ष और उनके प्रधानमंत्री 9 बार भारत आ चुके है। संबंध बेहतर न होने की वजह से ही आतंकवादी या माओवादी नेपाल के रास्ते आएं या वहीं से फरार हो गए। भारत के अवांछनीय तत्व व माफिया डान भी नेपाल के रास्ते भागने में सफल होते रहे है, क्योंकि अगर संबंध बेहतर रहेे होते तो नेपाल में चीन निर्णायक स्थिति में प्राप्त करने में सफल न रहा होता। पाकिस्तान अपनी हरकतों का वाया नेपाल अंजाम देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। इन्हीं सब बातों को लेकर भारत व नेपाल के बीच कटूता बढ़ी थी। इसके चलते दोनों देशों के रिश्तों में खटास भी पैदा हुई और दूरियां भी बढ़ती दिखीं। इसके लिए एक हद तक भारत भी जिम्मेदार है और नेपाल भी। चूंकि नेपाल इस बीच उथल-पुथल के दौर से गुजरा और खासकर माओवादी संगठनों की हिंसक गतिविधियों से दो-चार हुआ इसलिए भारतीय नेतृत्व का यह दायित्व बनता था कि वह इस पड़ोसी देश में अपने हितों की रक्षा के प्रति कहीं अधिक सतर्कता के साथ सक्रियता का परिचय देता। नेपाल की धरती से भारतविरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहन व संचालन होते रहना कई दृष्टि से अनुचित है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि सांस्कृतिक -धार्मिक स्तर पर भारत के सबसे निकटतम पड़ोसी देश में किसी भारतीय प्रधानमंत्री को पहुंचने में 17 वर्ष लग गए। यह अंतराल इसी बात को रेखांकित करता है कि दोनों देशों के संबंध जिस तरह से आगे बढ़ने चाहिए थे उनमें अवरोध उत्पन्न हुआ। दोनों देशों के संबंधों में जो खिंचाव पैदा हुआ उसका लाभ चीन ने उठाया।
मोदी से पहले दिवंगत प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल 1997 में नेपाल की यात्रा पर गए थे। 17 वर्षो में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा है। दोनों देशों के बीच 1800 किमी से अधिक लंबी खुली सीमा है। 60 लाख से अधिक नेपाली नागरिक भारत में काम करते है। नेपाल का लगभग 80 फीसदी व्यापार भारत के साथ होता है। नेपाल से बड़ी नदियां भारत क्षेत्र में बहती है। करीब सवा लाख भारतीय सैनिक नेपाली नागरिक है। भारत को नेपाल के निर्यात में 11 गुणा बढ़ोत्तरी हुई है। नेपाल के 1024 किमी लबे ईस्ट-वेस्ट हाइवे में 807 किमी लंबी सड़क भारत ने बनाई है। 225 शैक्षणिक संस्थाएं भारत के सहयोग से नेपाल में चल रही है। ऐसे में दोेनों देशों की एक दुसरे से जरुरत है। अब इसकी शुरुवात हो रही है। देखना यह है कि मोदी सरकार नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने का काम कैसे करती है? उन्होंने अपनी इस यात्र के दौरान नेपाल को यह जो भरोसा दिलाया कि वह एक संप्रभु राष्ट्र है और अन्य किसी को उसे दिशा देने की जरूरत नहीं उसका इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि नेपाल के कुछ लोगों में यह भावना रही है कि भारत उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहा है। इस दुष्प्रचार के आधार पर ही नेपाल का एक वर्ग अपने देश में भारत विरोधी भावना पैदा करने में सफल रहा और इससे कुल मिलाकर नेपाल को ही नुकसान उठाना पड़ा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल को हर क्षेत्र में हरसंभव सहायता देने के वायदे के साथ जो विभिन्न परियोजनाएं दोनों देशों के सहयोग से संचालित हो रही हैं उन्हें पूरा करने की आवश्यकता पर बल दिया है। उनके इस कथन के संदर्भ में देखना यह होगा कि ये लंबित परियोजनाएं किस तेजी से आगे बढ़ पाती हैं, क्योंकि कई परियोजनाएं वर्षो से लंबित हैं और उनकी लागत राशि भी बढ़ चुकी है। इसके विपरीत चीन ने जो परियोजनाएं अपने हाथ में ली हैं उन्हें कहीं अधिक तेजी से पूरा करने का काम कर दिखाया है। यह आवश्यक है कि भारत और नेपाल मिलकर उन परिस्थितियों को दूर करने की दिशा में आगे बढ़ें जो परियोजनाओं को समय रहते पूरा करने में बाधक बन रही हैं। इतने वर्षो के धुंधलके को हटाने के साथ ही मोदी की नेपाल यात्रा पड़ोसी से मैत्री की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की ओर सार्थक कदम भी है।
नरेंद्र मोदी नेपाल को हिट करना चाहते हैं- हिट यानी एच-आई-टी, जिसका मतलब है हाईवेज, आई-वेज और ट्रांसवेज। यानी सोमनाथ का भक्त बाबा विश्वनाथ की नगरी से विजय हासिल करके पशुपतिनाथ तक यात्रा का मकसद सिर्फ मत्था टेकना नहीं बल्कि दोनों देशों के बीच फिर वही पुराने रिश्ते कायम कर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का है। वैसे भी काशी और काठमांडू मतलब बाबा विश्वनाथ, पशुपतिनाथ व सोमनाथ मंदिर का रिश्ता भी बेमिसाल है। इन तीनों मंदिरों में सालों साल से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना होता है। मतलब एक बार फिर से पर्यटकों का आवागमन बढ़ेगा। और जब आवागमन बढ़ेगा तो बड़ी संख्या में चाय-पान, मूंगफली से लेकर हर तबके को रोजगार मिलेगा। नेेपाल में चाइना सामाग्रियों की जगह भारतीय उत्पादों की खपत बढ़ेगी। नेपाल जब आत्म निर्भर होगा तो बिजली उत्पादन भी सुचारु कर सकेगा ओर भारत को भी बिजली मुहैया करायेगा। माओवाद खत्म होगा तो भारत की सुरक्षा भी बेहतर होगी। भारत की मदद से मंदिर परिसर में 400 बिस्तरों वाला एक धर्मशाला भी बनाया जा रहा है। लगता है कि यह यात्र दोनों देशों के बीच के रिश्तों को प्रगाढ़ करने में सहायक होगी। इसके अलावा दोनों देशों में बहुत कुछ ऐसा है जो साझा है और जिसके चलते दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के प्रति मैत्री भाव भी रखते हैं। नेपाल के सनातन धर्मी बने रहने में ही भारत का भी हित है-यह बात नरेन्द्र मोदी के भाषण सुनने-पढने के बाद गोरखा लोगों को भी समझ में आयेगी। इसलिए नए लोकतंत्र की संरचना में जुटे नेपाल के लोगों पर बड़ी जिम्मेदारी है कि वे काशी विश्वनाथ व पशपति नाथ के बीच रागात्मक संबंधों को मूर्त रूप देने की भूमिका बनाएं। नेपाल के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिये भारत पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति के लिये बिहार के मोतिहारी से नेपाल तक 81 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछायेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की अपनी यात्रा के दौरान ईंधन आपूर्ति के लिये 200 करोड़ रुपये की लागत से यह पाइपलाइन बनाने की भारत की इच्छा जताई है। नेपाल पेट्रोल, डीजल, घरेलू एलपीजी सिलेंडर और विमान ईंधन की आपूर्ति के लिये भारत पर निर्भर है। वर्तमान में इंडियन ऑयल के बिहार, रक्सॉल स्थित डिपो से ट्रकों के जरिये नेपाल को इनकी आपूर्ति की जाती है। वर्ष 2006 में रक्सॉल से नेपाल के एमलेखगंज तक 41 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाने का प्रस्ताव किया गया। यह पाइपलाइन इंडियन ऑयल और नेपाल ऑयल कारपोरेशन के बीच 50रू 50 प्रतिशत की भागीदारी से तैयार की जानी थी लेकिन नेपाल की तरफ से उसके हिस्से का योगदान नहीं होने की वजह से योजना पर काम आगे नहीं बढ़ पाया। इंडियन ऑयल ने इस बीच अपने तेल डिपो को रक्सॉल से हटाकर मोतिहारी स्थानांतरित कर दिया। 650 करोड़ से अधिक की लागत भारत नेपाल सीमा रेल परियोजना प्रस्तावित है।
---सुरेश गांधी---