Quantcast
Channel: Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

विशेष आलेख : अधर में लटकता बच्चों का भविष्य

$
0
0
षिक्षा हम सभी का मौलिक अधिकार है। बावजूद इसके आज भी देष की एक बड़ी आबादी अपने इस मूलभूत अधिकार से वंचित है। 2009 में जब षिक्षा का अधिकार कानून लाया गया तो चार¨ं तरफ प्रषंसा हुई कि यह देष में अमीरों और गरीबों के बीच षिक्षा की दूरी को पाटने का काम करेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य षिक्षा का अधिकार एक अप्रैल 2010 को लागू किया गया था। षिक्षा के अधिकार कानून को लागू हुए चार साल से भी ज़्यादा का लंबा समय बीत चुका है लेकिन देष के दूर दराज़ क्षेत्रों में आज भी बुनियादी षिक्षा की हालत खराबही है।  षिक्षा की गुणवत्ता परखने वाली असर-रिपोर्ट के मुताबिक 2007 में 8.22 प्रतिषत छात्र ऐसे थे जो अंक पहचानने में सक्षम नहीं थे लेकिन 2013 में यह कम होने के बजाय बढ़कर 11.20 प्रतिषत हो गया। इसी तरह कुछ भी न पढ़ने वाले छात्रों की फीसद इस अवधि में 9.88 से बढ़कर 14.10  हो गया। सरकारी स्कूलों में षिक्षा की  गुणवत्ता निम्न स्तर की होने के कारण माता-पिता का सरकारी स्कूलों से मोह भंग होता जा रहा है। इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि  2007 में सरकारी स्कूलों में 79.63 फीसदी नामांकन था जो 2013 में घटकर 70.90 रह गया। आंकड़े चीख-चीख कर षिक्षा के अधिकार की कहानी खुद ब खुद बयां कर रहे हैं। भारत में षिक्षा की गुणवत्ता के निम्न स्तर का अंदाज़ा इसी बात़ से लगाया जा सकता है कि विष्वस्तरीय 100 षीर्श स्कूलों में भारत का एक भी स्कूल नहीं हैं। सरकार की ओर से देष में षिक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए योजनाएं तो बहुत सारी चल रही हैं लेकिन कोई योजना ज़मीनी स्तर पर दिखाई नहीं देती है। इसके लिए षिक्षा की लचर व्यवस्था जि़म्मेदार है। देष के दूरदराज़ क्षेत्रों में ऐसे स्कूलों की एक बड़ी तादाद है जो अध्यापकों और बच्चों की कमी की मार को झेल रहे हैं। कुछ स्कूलों के हालात तो ऐसे हैं कि जहां बच्चे हैं तो  अध्यापक नहीं या फिर जहां अध्यापक हैं तो बच्चे नहीं। इसके अलावा स्कूल की बिल्डिंग का खस्ताहाल होना या न होना या फिर स्कूल में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी षिक्षा में रूकावट का एक बड़ा कारण है। 
           
बिहार के मुज़फ्फरपुर जि़ले के  अंर्तगत साहेबगंज ब्लाक के हुस्सेपुर परनी छपड़ा गांव के राजकीय माध्यमिक विद्यालय का हाल भी कुछ इसी तरह का है। भूमि की कमी चलते इस स्कूल के भवन का अभी तक निर्माण नहीं हो पाया है। तीन सौ बच्चों की संख्या वाले इस स्कूल में कक्षा आठ तक की पढ़ाई होती है। विद्यालय में तीन कमरे हैं जबकी इनमें से एक कमरे में नाममात्र का कार्यालय चलता है। दो कमरों में स्कूल के तीन सौ बच्चों का पढ़ पाना मुष्किल ही नहीं नामुमकिन है। इसलिए स्कूल की कक्षांए पेड़ की छाया के नीचे चलती हैं। विद्यालय के प्रभारी षिक्षक सुरेन्द्र पटेल का कहना है कि हम लोगों ने एक बार आम सभा बैठाकर ग्रामीणों से स्कूल के लिए ज़मीन देने के लिए बात की थी मगर कोई स्कूल भवन निर्माण के लिए ज़मीन देने को तैयार नहीं हुआ। इस पर कुछ ग्रामीणों का कहना था कि नज़दीक में सरकारी ज़मीन पड़ी हुई है उस ज़मीन पर स्कूल के भवन का निर्माण हो सकता है। इस विद्यालय के भवन निर्माण के लिए आए हुए पैसे को एक बार लौटाया भी जा चुका है। स्कूल भवन निर्माण के लिए पैसा उस वक्त आया था जब स्कूल के प्रभारी नंद कुमार थे पर उनके बाद की प्रभारी स्मिता कुमारी पैसे को लौटा दिया था। इस बारे में पूछने परस्मिता कुमारी कहती हैं कि हमने बैठक करके ब्लाक एजूकेषन आॅफिसर को भी बुलाया था, पर स्कूल के भवन निर्माण को लेकर कोई भी निर्णय न हो सका, जिसकी वजह से मैंने पैसा लौटा दिया था। 
              
स्कूल के भवन का निर्माण न होने की वजह से मीड डे मील खुले आसमान के नीचे बनता है। ऐसे में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी भगवान भरोसे रहता है। यहां के स्थानीय निवासी महेन्द्र कुमार कहते हैं कि मैंने इसकी जानकारी यहां के सांसद रामा सिंह को दी है , मगर अभी तक इस समस्या का कोई हल नहीं निकला है। वह आगे कहते हैं कि इस तरह के न जाने ऐसे कितने विद्यालय हैं जिनका निर्माण भूमि के अभाव में नहीं हो पा रहा है। जिसका खामियाज़ा सिर्फ स्कूली बच्चों को अपना भविश्य दांव पर लगाकर उठाना पड़ रहा है। षिक्षा के बिना किसी भी सभ्य समाज की परिकल्पना बेईमानी है। देष के विकास में षिक्षा की भूमिका को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। भारत में भी सभी समुदाय के लोग षिक्षा की महत्ता को समझते हैं और वह अपने बच्चों को पढ़ लिखकर आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। लेकिन देष में षिक्षा का आधारभूत ढ़ाचा इस कदर लचर है कि लोगों के यह सपने चकनाचूर होते जा रहे हैं। 30 जनवरी 2014 को हिंदुस्तान में प्रकाषित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गरीब परिवारों के स्कूल जाने वाले 90 प्रतिषत बच्चे निरक्षर हैं। यह हाल उन बच्चों का है जो स्कूल में पिछले चार साल से पढ़ाई कर रहे हैं। हमारे देष में निरक्षर वयस्कों की तादाद सबसे ज़्यादा है जो 28.70 करोड़ है और यह संख्या वैष्विक तादाद का 37 प्रतिषत है। एक ओर हम षाइनिंग इंडिया का सपना देख रहे हैं वहीं षिक्षा की दृश्टिकोण से हमारा देष निरंतर पिछता जा रहा रहा है। सवाल यह है कि हमारे देष में क्या षिक्षा की स्थिति कभी बेहतर हो पाएगी या फिर देष की आने वाली पीढ़ी अज्ञानता के अंधकार के साए में अपनी जिंदगी जीएगी? देष में नवनिर्वाचित सरकार के लिए देष के दूरदराज़ के क्षेत्रों तक न सिर्फ षिक्षा पहुचाना बल्कि गुणवत्ता वाली षिक्षा पहुंचाना एक मुख्य लक्ष्य होना चाहिए तभी हम विकास की राह पर गामज़न होकर षाइनिंग इंडिया का सपना देख सकते हैं। 





live aaryaavart dot com

खुशबु कुमारी
(चरखा फीचर्स)

Viewing all articles
Browse latest Browse all 78528

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>